वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 25)

हल्दीघाटी युद्ध का नामकरण :- इस प्रसिद्ध युद्ध को सर्वप्रथम कर्नल जेम्स टॉड ने हल्दीघाट का युद्ध कहा। तत्पश्चात कविराजा श्यामलदास ने इसे हल्दीघाटी की लड़ाई कहा।

जेम्स टॉड ने इसे हल्दीघाट कह दिया, जिसके चलते यदुनाथ सरकार ने भी इसे हल्दीघाट ही कहा। पहाड़ों के बीच का यह संकरा स्थान वास्तव में एक घाटी है। यहां की मिट्टी हल्दी के समान पीली है, इस कारण इसे हल्दीघाटी नाम मिला।

आजादी के बाद हल्दीघाटी में पक्की सड़क बनवाई गई और हल्दीघाटी के मुहाने पर ऐतिहासिक पुराना द्वार हटा दिया गया, जिस कारण हल्दीघाटी ने अपना मूल रूप कुछ खो दिया।

हल्दीघाटी युद्ध की वास्तविक तिथि :- विद्वानों ने इस तिथि को विवाद का विषय बना दिया है। कर्नल जेम्स टॉड ने जुलाई, 1576 ई. लिखा है। गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने जून, 1576 ई. लिखा है।

हल्दीघाटी

अकबरनामा में हिजरी संवत है, जिसके अनुसार तारीख 18 जून, 1576 ई. निकलती है, जो कि वर्तमान समय में सर्वमान्य है। वीरविनोद ग्रंथ में कविराज श्यामलदास ने 31 मई लिखा है।

गोपीनाथ शर्मा ने 21 जून लिखा है, जो कि वर्तमान में दूसरी सबसे सर्वमान्य तिथि मानी जाती है। हल्दीघाटी के मूल स्थानों पर लगे कुछ बोर्ड पर 21 जून लिखा है, परन्तु हमारे विचार से हल्दीघाटी युद्ध की सही तिथि 18 जून, 1576 ई. को ही मानी जानी चाहिए।

कुरान की आयत 25 में हल्दीघाटी युद्ध व महाराणा प्रताप के विरोध में लिखा है कि “उनसे जंग करो, जो अल्लाह और कयामत के दिन में यकिन नहीं करते। जो कुछ अल्लाह और उसके पैगम्बर ने निषेध कर रखा है, उसका

निषेध नहीं करते। उस रास्ते पर नहीं चलते, जो सच का रास्ता है और जो उन लोगों का है, जिन्हें कुरान दी गई है। तब तक उनसे जंग करो, जब तक वे तोहफे ना दें, पूरे झुका न दिए जाएँ, नेस्तनाबूद न कर दिए जाएँ”

18 जून, 1576 ई. :- आधी रात को मोलेला गांव से राजा मानसिंह ने खमनौर की तरफ कूच किया। लोसिंग से महाराणा प्रताप हल्दीघाटी पहुंचे। महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी दर्रे पर अपने 5000 सैनिकों को जमा किया।

सेना सहित महाराणा प्रताप

हल्दीघाटी दर्रे से एक बार में केवल 1-2 व्यक्ति ही जा सकते थे। “हळदीघाटी हरोळ, घमंड करण अरी घणा। आरण करण अडोल, पहोच्यो राण प्रतापसी।।”

लोसिंग एक ऐसा स्थान था, जो सामरिक दृष्टि से सुदृढ, सुरक्षित और सुविधाजनक होने के साथ-साथ लोहे जैसी मजबूती दिखा सकता था, यह एक प्राकृतिक किले की तरह था।

हल्दीघाटी से 9 मील दक्षिण-पश्चिम में बसे इस गांव में महाराणा प्रताप की सेना ने पड़ाव डाला था। महाराणा प्रताप चाहते थे कि मुगल सेना हल्दीघाटी दर्रा पार कर भीतर आ जाए, इसलिए उन्होंने लोसिंग में पड़ाव डालकर प्रतीक्षा की।

परन्तु राजा मानसिंह हल्दीघाटी दर्रा पार कर नहीं आना चाहते थे। हल्दीघाटी का दर्रा संकरा होते हुए भी उन दिनों आवागमन का बहुप्रचलित साधन था।

मुगलों के लिए इस स्थान पर विजय प्राप्त करना अतिआवश्यक था, क्योंकि गुजरात इसी मार्ग से जाया जाता था और मक्का की यात्रा के लिए भी यही मार्ग पार करना पड़ता था।

हल्दीघाटी म्यूजियम

राजा मानसिंह मोजेरा गांव तक पहुंच गए, फिर भी हल्दीघाटी दर्रे के भीतर प्रवेश नहीं किया, क्योंकि यहां से बड़े-बड़े पहाड़ अंदर की ओर सभी तरफ जाते हैं।

यदि मुगल सेना इसके भीतर प्रवेश कर जाती, तो महाराणा प्रताप द्वारा बुरी तरह परास्त कर दी जाती। ये पहली बड़ी लड़ाई थी, जिसमें राजा मानसिंह को नेतृत्व का भार मिला था, इसलिए राजा मानसिंह कोई भूल नहीं करना चाहते थे।

मुगल खुले मैदानों में लड़ने के अभ्यस्त होते थे। साथ ही खुले मैदानों में तोपों का उपयोग आसान होता था। राजा मानसिंह खमनौर में ही रुके।

प्रतीक्षा के उपरांत भी मुगल सेना द्वारा दर्रा पार कर न आने के कारण महाराणा प्रताप ने ही खमनौर की रणभूमि में जाकर खुले में लड़ना तय किया। महाराणा प्रताप राजा मानसिंह की कूटनीति से भली-भांति परिचित थे, परन्तु अब ये रण आवश्यक हो गया था।

महाराणा प्रताप की बादशाह बाग पर विजय :- हल्दीघाटी युद्ध की शरुआत में मुगल फौज की एक टुकड़ी बादशाह बाग में जमा हुई। सूरज उगते ही बादशाह बाग पर महाराणा प्रताप ने आक्रमण कर मुगल फौजी टुकड़ी को खदेड़ा।

बादशाह बाग में लगा बोर्ड, जहां युद्ध की तिथि 21 जून दे रखी है

मुगल फौजी टुकड़ी भागकर खमनौर में पहुंची, जहां कुल मुगल फौज जमा थी। राजा मानसिंह ने सूरज उगने से पहले खमनौर के मैदान में अपनी फौज को जंग के मुताबिक जमाना शुरु कर दिया।

महाराणा प्रताप हल्दीघाटी दर्रे से निकलकर खमनौर गाँव के पास की समतल भूमि में जा पहुंचे, जो कि वर्तमान में रक्त तलाई के नाम से प्रसिद्ध है।

कर्नल जेम्स टॉड लिखता है “अपने राणा का अनुसरण करते हुए सब वहीं पहुंच रहे थे, जहाँ युद्ध सबसे भयंकर होना था। वंश के वंश प्रचण्ड निर्भीकता के साथ आगे बढ़ रहे थे”

यदि हम कल्पना भी करें तो क्या महान दृश्य रहा होगा वो, जब महाराणा प्रताप रणबांकुरी सेना सहित मुगल बादशाह अकबर द्वारा भेजी गई सेना का सामना करने के लिए प्रस्थान कर रहे थे।

क्या सौभाग्यशाली रहे होंगे वे लोग जिन्हें इस सेना के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ होगा। ‘जय मेवाड़’ के जयकारों, हाथियों की चिंघाडों और घोड़ों के चलने से उड़ती धूल ने सम्पूर्ण मार्ग को युद्धमय बना दिया होगा।

महाराणा प्रताप

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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