वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 21)

1576 ई. “हल्दीघाटी का युद्ध” :- “वनि घोर युद्ध अथोर पातल मान हरदीघाट पै, तब क्रोध बोधहि सोध शाह अनेक जोधन दाट पै”

मुगल फौज के सेनापति राजा मानसिंह कछवाहा :-
अकबर ख्वाजा की मजार पर दुआ मांगने और महाराणा प्रताप को पराजित करने के उद्देश्य से अजमेर पहुंचा।

अकबर ने युद्ध की तैयारियां करने व मुगल फौज का सेनापति चुनने में 15 दिन लगा दिये। आमेर के 26 वर्षीय कुंवर मानसिंह कछवाहा को मुगल फौज का सेनापति चुना गया।

मुगल सल्तनत के इतिहास में पहली बार किसी राजपूत को सेनापति बनाया गया। इससे अकबर के कुछ मुस्लिम सिपहसालारों जैसे नकीब खां, शैख अब्दुल नबी वगैरह ने मानसिंह के नेतृत्व में जाने से मना कर दिया।

महाराणा प्रताप

हालांकि राजा मानसिंह ने पहली बार सेना का नेतृत्व इसी युद्ध में किया, लेकिन स्वयं मुगल इतिहासकारों ने भी ये स्वीकार किया है कि राजा मानसिंह इस युद्ध के लिए उपयुक्त सेनापति थे।

अबुल फजल लिखता है “राणा कीका (राणा प्रताप) में बगावत और खुदएतमादी बहुत बढ़ गई थी। उसका पाखण्ड और कपट सब हदें पार कर चुका था। उसके लिए हंसते-हंसते मरने वाले बहादुर राजपूतों ने उसकी आँखों

पर पर्दा डाल रखा था। राणा शहंशाह के भाग्य में लिखे चमत्कारों को नहीं समझ रहा था। शहंशाह के हुक्मों को न मानकर वह रास्ते से भटक गया था। सब राजा-महाराजाओं में सिर्फ राणा की आज़ादी शहंशाह से बर्दाश्त

नहीं हो रही थी। शहंशाह ने उसे जड़ समेत उखाड़ फेंकने की ओर ध्यान लगाया। इस जंग का मकसद राणा और उसके वतन को पूरी तरह खत्म करना था। कुंवर मानसिंह, जिसे शहंशाह ने फर्जन्द (बेटा) के खिताब से नवाज़ा था,

जिसकी बहादुरी के बराबर दरबार में कोई दूसरा नहीं था, उसे ये काम सौंपा गया। शहंशाह ने मानसिंह को विदा करते वक्त कम लफ्जों में हिदायत दी कि जंग के दौरान किस मुसीबत से कैसे निपटना है”

राजा मानसिंह कछवाहा

(अबुल फजल के लिखे अनुसार इस युद्ध का उद्देश्य केवल महाराणा प्रताप को परास्त करना नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मेवाड़ को नष्ट करना था।)

‘सवानीह-ए-अकबरी’ में लिखा है कि “उस वक्त शाही दरबार में मानसिंह ही ऐसा शख्स था जो प्रताप से सामना होने पर प्रताप के खौफ से न भागे”

मौतमिद खां ‘इकबालनामा-ए-जहांगिरी’ में लिखता है “मानसिंह राणा की ही बिरादरी का था। मानसिंह और उसके बाप-दादे हमारे मातहत होने से पहले राणा के बाप-दादों के मातहत (अधीन) और खिराजगुजार (करदाता)

रहे। मानसिंह को भेजने से बादशाह का मतलब ये था कि राणा इसे अपने सामने छोटा और मातहत समझकर अपने रुतबे के खयाल से उससे लड़ने सामने जरुर आएगा और मारा जाएगा”

(मौतमिद खां के इस कथन का आशय ये है कि आमेर के राजा भगवानदास 1562 से पहले मेवाड़ राजदरबार में उपस्थिति दर्ज करा चुके थे,

महाराणा प्रताप

राजा पृथ्वीराज कछवाहा खानवा में महाराणा सांगा के ध्वज तले लड़े थे। इसलिए महाराणा प्रताप के सामने अकबर ने राजा मानसिंह को भेजा।)

अब्दुल कादिर बंदायूनी लिखता है “मेरी मौजूदगी में शहंशाह ने अजमेर की ख्वाजा साहब की दरगाह पर मानसिंह को बुलाया और खिलअत व सजा सजाया घोड़ा

देकर कहा कि राणा कीका (राणा प्रताप) के शैतानी इलाके गोगुन्दा पर फतह हासिल करो। एक हिन्दु इस्लाम की मदद खातिर तलवार खींचता है।”

मीर बख्शी आसफ़ खां :- अकबर ने आसफ़ खां को हल्दीघाटी युद्ध के लिए मीर बख्शी बनाया। गोंडवाना की रानी दुर्गावती को आसफ़ खां ने ही पराजित किया था, उसके बाद चित्तौड़ के तीसरे विध्वंस में भी आसफ़ खां ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

आसफ़ खां ने हल्दीघाटी युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से जिहाद की संज्ञा दी। बख्शी बनाने से आशय ये है कि वह सेना का खर्च चलाता था व उसका हिसाब रखता था। इस अभियान पर जो भी खर्चा हुआ, उसकी जिम्मेदारी आसफ खां की थी।

मेवाड़ की तत्कालीन राजधानी गोगुन्दा के राजमहल

कर्नल जेम्स टॉड लिखता है :- “उस अवधि में जो जगमगाते काम महाराणा प्रताप ने किए, वे अब भी हर घाटी में जीवित हैं, वे हर राजपूत के हृदय के सिंहासन पर सुशोभित हैं और अनेक विजेताओं के इतिहासों में सदा के

लिए अंकित हो गए हैं। उन सबको गिनाना अथवा जो कष्ट उन्होंने सहन किए, उन्हें सुनाना ऐसी भावुकता मानी जाएगी, जो उस भूमि में उदित ही नहीं हुई, जहां आज भी परंपराओं में उनकी उपलब्धियां स्वयं प्रस्फुटित हो रही हैं।

उनके सामन्तों के वंशजों से, जो श्रद्धापूर्वक अपने पूर्वजों के कृत्यों की स्मृतियां संजोए हुए हैं। आज भी जब बातें होती हैं, तो वे विवरण सुनाते-सुनाते द्रवित हो जाते हैं, आंसू उनकी आंखों से गिरने लगते हैं”

ओछो केम कहां उदावत, अकबर कहर तणो तप ईष। अकबर सूं रहियो अणनमियो, सुरताणा ग्रहियां सारीष।। अर्थात “हे उदय सिंह के पुत्र, तुम्हें तुम्हारे पूर्वजों से कम तो कैसे कहें।

माना कि वे बादशाहों को पकड़ कर छोड़ दिया करते थे, परंतु अकबर के कहर और उसकी उग्रता को देखते हुए उसके सामने सिर ना झुकाना ही बादशाहों को पकड़ कर छोड़ देने के बराबर है”

चावंड में महाराणा प्रताप द्वारा निर्मित चामुंडा माता मंदिर

अगले भाग में हल्दीघाटी युद्ध के सही स्थान व कर्नल जेम्स टॉड द्वारा हल्दीघाटी को थर्मोपल्ली कहने के बारे में लिखा जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)

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