1572 ई. – इस वर्ष महाराणा प्रताप ने अरब व्यापारियों से घोड़े खरीदे। महाराणा ने घोड़ों की परख ली, जिसमें नाटक नामक एक घोड़ा मर गया, महाराणा को इसका बड़ा रंज हुआ।
महाराणा के खरीदे हुए घोड़ों में एक श्वेत अश्व चेतक भी शामिल था। चेतक की आँखें नीली होने के कारण उसे नीला घोड़ा भी कहा जाता है। (गुजरात के इतिहास में चेतक को काठियावाड़ी नस्ल का अश्व बताया गया है)
“महाराणा प्रताप की छप्पन विजय” :- चित्तौड़ के विध्वंस के बाद महाराणा की ताकत को कमजोर समझकर मेवाड़ के कुछ मातहत (अधीन) राजपूतों ने भी महाराणा की आज्ञा न मानकर खुद का स्वतंत्र राज्य स्थापित करना चाहा।
छप्पन के इलाके में राठौड़ों ने विद्रोह कर दिया। महाराणा प्रताप ने सफलतापूर्वक इस विद्रोह का दमन किया और छप्पन पर पुन: अधिकार किया। (ये छप्पन पर महाराणा प्रताप की दूसरी विजय थी। इससे पहले 1555-56 ई. में भी इन्होंने छप्पन जीता था)
“महाराणा प्रताप की मन्दसौर विजय” :- मेवाड़ की उत्तर, पूर्व व पश्चिम सीमा पर मुगलों का अधिकार था। जिस वक्त मेवाड़ में तैनात मुगल छावनियां महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक से सचेत हो गईं,
वहीं महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की दक्षिण दिशा से निकलकर मेवाड़ के बाहर स्थित दशपुर (वर्तमान में मन्दसौर) पर हमला कर दिया। मुगलों को दूर-दूर तक अनुमान नहीं था कि महाराणा प्रताप ऐसी कार्रवाई कर देंगे।
महाराणा प्रताप दशपुर (मन्दसौर) में तैनात मुगल छावनियों को तहस-नहस कर शाही सूबेदारों को लूटते हुए मेवाड़ पधारे।
(महाराणा प्रताप की मन्दसौर विजय के बारे में बूंदी के कवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने अपने ग्रन्थ वंश भास्कर में लिखा है)। विपरीत परिस्थितियों में मंदसौर पर आक्रमण महाराणा प्रताप की तरफ से मुगल सल्तनत को पहली चुनौती थी।
ये वो बिगुल था, जिसने अकबर के कानों तक अपनी बुलंद आवाज से यह चेतावनी पहुंचा दी कि मेवाड़ अभी स्वाधीन है।
इसी वर्ष अकबर की एक रखैल से अकबर के बेटे दानियाल का जन्म हुआ, जो आगे चलकर बड़ा शराबी हुआ। दानियाल अकबर का सबसे चहेता बेटा था। 5 वर्ष की उम्र में ही दानियाल को 6000 की मनसबदारी दे दी गई।
“जगमाल का मुगल सेवा में जाना” :- महाराणा प्रताप के भाई जगमाल को राजगद्दी से हटा दिया गया था, जिस वजह से वह महाराणा प्रताप का घोर विरोधी बन गया।
इसी वर्ष अकबर की शरण में गया। अकबर के लिए तो यह बड़ी खुशी की बात थी कि मेवाड़ के शासक का भाई मेवाड़ से बगावत करके उसके यहां आया। अकबर ने उसे अजमेर का फौजदार बनाया।
बैरम खान के बेटे रहीम ने अकबर से सिफारिश कर जगमाल को जहांजपुर का परगना भी दिलवा दिया। जहांजपुर मेवाड़ का हिस्सा था, जिस पर अकबर का अधिकार था।
बनास नदी के दोनों ओर के प्रदेश को खौराड़ कहते हैं। इस प्रदेश पर कभी बरड़ गोत्रीय मीणों का राज था, जिसकी राजधानी गोरमगढ़ थी। महाराणा प्रताप के भाई जगमाल ने यह राज्य मीणों से छीन लिया।
“शक्तिसिंह जी” :- एक बार किसी बात पर महाराणा प्रताप का उनके भाई शक्तिसिंह के साथ झगड़ा हो गया। बीच-बचाव करने आए राजपुरोहित नारायणदास पालीवाल ये लड़ाई रोक नहीं पाए, तो उन्होंने लड़ाई रोकने के लिए आत्महत्या कर ली।
(एक मत ये भी है कि शक्तिसिंह की तलवार के वार से अनजाने में नारायणदास जी का देहान्त हुआ, जिससे नाराज होकर महाराणा प्रताप ने शक्तिसिंह को मेवाड़ से निर्वासित किया)।
इन राजपुरोहित जी के 4 पुत्र हुए, जिनमें से 2 हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। मेवाड़ के शक्तिसिंह 1572 ई. से 1576 ई. तक डूंगरपुर रावल आसकरण की सेवा में रहे, फिर डूंगरपुर में किसी जगमाल नाम के मंत्री का वध कर देने पर इन्हें डूंगरपुर छोड़ना पड़ा।
“गाड़िया लोहारों द्वारा प्रतिज्ञा पालन” :- जब चित्तौड़गढ़ पर मुगल आधिपत्य स्थापित हो गया, तब मेवाड़ के गाड़िया लोहारों ने वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप व उनकी सेना के लिए हथियार बनाने शुरू कर दिए
और प्रतिज्ञा ली कि जब तक चित्तौड़गढ़ मुगलों की अधीनता से मुक्त नहीं हो जाता, तब तक वे घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करेंगे। इस प्रण को गाड़िया लोहार आज तक निभा रहे हैं।
एक अज्ञात कवि द्वारा रचित दोहा :- करा खग झाल दुहुँ राह मातौ कलह, दूठ लागौ खला येण दावे। जीव री आस तो प्रसण नह गहै जल, जल गहै प्रसण तो जीव जावे।।
अर्थात जो शत्रु अपने प्राणों की रक्षा चाहता है, उसको अपना सम्मान महाराणा प्रताप की तलवार के सम्मुख समर्पित करना पड़ता है और जो शत्रु अपना सम्मान रखने का प्रयास करता है, उसे अपने प्राण गंवाने पड़ते हैं।
* अगले भाग में अकबर द्वारा महाराणा प्रताप को संधि हेतु मनाने के लिए भेजे गए जलाल खां कोरची व राजा मानसिंह के संधि प्रस्तावों का विस्तृत वर्णन किया जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)
Nice