“महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक (1572 ई.) के समय मेवाड़ के प्रमुख सामन्त व सहयोगी” :- राजराणा बींदा झाला/झाला मान :- ये 150 झाला राजपूतों समेत महाराणा प्रताप व मेवाड़ की खातिर हर वक्त तैयार थे।
इनके पिता राजराणा सुरतन सिंह झाला चित्तौड़गढ़ दुर्ग के सूरजपोल द्वार पर अकबर के हमले (1568 ई.) के समय काम आए थे।
पानरवा के राणा पूंजा :- महाराणा प्रताप के पूर्व के शासकों के भीलों से सम्बन्ध इतने गहरे नहीं थे, लेकिन महाराणा प्रताप ने अपने राज्याभिषेक से पहले ही भीलों का दिल जीत लिया था।
भीलों की सेना का नेतृत्व पानरवा के राणा पूंजा ने किया। राणा पूंजा की अगुवाई में भील महाराणा प्रताप की खातिर अपना सर्वस्व देने को तत्पर थे।
रावत कृष्णदास चुण्डावत :- ये सलूम्बर के 7वें रावत साहब थे। ये चित्तौड़ के तीसरे साके में वीरगति पाने वाले रावत साईंदास चुण्डावत के भाई रावत खेंगार के पुत्र थे। रावत कृष्णदास चुण्डावत को शुरुआत में भांजगढ़ की जागीर मिली थी।
पाली के मानसिंह सोनगरा चौहान :- ये महाराणा प्रताप के सबसे बड़े मामा थे। ये 1564 ई. में मारवाड़ छोड़कर मेवाड़ आए थे। ये अखैराज सोनगरा चौहान के पुत्र थे।
बेगूं के पहले रावत गोविन्ददास चुण्डावत :- ये रावत खेंगार के दूसरे पुत्र थे। इनका अपने बड़े भाई रावत कृष्णदास चुण्डावत से जागीर सम्बन्धी विवाद हुआ, तो महाराणा ने इनको बेगूं की जागीर दे दी।
कानोड़ के 5वें रावत नैतसिंह सारंगदेवोत :- ये अकबर के आक्रमण के समय महाराणा उदयसिंह के साथ चित्तौड़ छोड़कर चले गए थे। रावत नैतसिंह के पिता रावत नरबद सारंगदेवोत बहादुरशाह गुजराती के हमले में चित्तौड़ के पाडनपोल दरवाजे पर काम आए।
देलवाड़ा के मानसिंह झाला :- ये जैतसिंह झाला के पुत्र व महाराणा प्रताप के बहनोई थे। बेदला के बलभद्र सिंह चौहान :- ये महाराणा प्रताप के ससुर प्रतापसिंह चौहान के पुत्र थे।
बिजौलिया के राव शुभकरण पंवार व इनके भाई पहाडसिंह पंवार :- ये दोनों महारानी अजबदे बाई के भाई थे।
ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर व इनके पुत्र शालिवाहन तोमर :- शालिवाहन तोमर महाराणा प्रताप के बहनोई थे। ये पाण्डवों के वंशज थे।
भामाशाह कावडिया व ताराचन्द कावडिया :- ये दोनों सगे भाई थे व भारमल कावडिया के पुत्र थे। मेवाड़ राजघराने की सम्पत्ति को सम्भालकर ये उसमें से मेवाड़ का खर्च चलाया करते थे। साथ ही साथ ये दोनों भाई छापामार युद्धकला में भी निपुण थे।
बीसलपुर के जागीरदार राव कल्ला देवड़ा :- ये महाराणा प्रताप के भाणजे थे। इनका वर्णन अगले भाग में सिरोही के युद्ध में किया जाएगा।
बदनोर के ठाकुर मुकुन्ददास मेड़तिया राठौड़ व उनके भाई रामदास राठौड़ :- ये दोनों चित्तौड़ के तीसरे साके में काम आने वाले वीरवर जयमल राठौड़ के पुत्र थे।
घाणेराव के ठाकुर गोपालदास राठौड़ :- ये वीर जयमल राठौड़ के भाई प्रताप राठौड़ के पुत्र थे। प्रताप राठौड़ चित्तौड़ के तीसरे साके में काम आए थे। ठाकुर गोपालदास ने महाराणा प्रताप का भरपूर साथ दिया। इनके शरीर पर कईं घाव थे।
सरदारगढ़ के 8वें ठाकुर भीमसिंह डोडिया :- इनके पिता ठाकुर सांडा जी थे, जो चित्तौड़ के तीसरे साके में काम आए।
आमेट के पहले रावत कर्णसिंह चुण्डावत :- ये चित्तौड़ के तीसरे साके में वीरगति पाने वाले वीरवर पत्ता चुण्डावत के पुत्र थे। ठाकुर कल्याणसिंह चुण्डावत :- ये पत्ता चुण्डावत के ज्येष्ठ पुत्र थे, लेकिन किसी कारण से आमेट की गद्दी पर इनके छोटे भाई कर्णसिंह बैठे।
देवगढ़ के पहले रावत सांगा चुण्डावत :- ये रावत चुंडा जी के पुत्र रावल कांधल जी के पुत्र थे। धमोतर के दूसरे ठाकुर कांधल जी सिसोदिया :- ये प्रतापगढ़ के रावत सूरजमल जी के छोटे पुत्र ठाकुर सहसमल जी के पुत्र थे व धमोतर के दूसरे ठाकुर थे।
जवास के 9वें रावत बाघसिंह खींची :- ये रावत रायमल के पुत्र थे। कोठारिया के 5वें रावत तातार खान चौहान :- ये चित्तौड़ के तीसरे शाके में वीरगति को प्राप्त होने वाले कोठारिया रावत खान के पुत्र थे।
* चारण कवि दुरसा आढा जी द्वारा रचित दोहा :- पातल पाघ प्रमाण, सांची सांगाहर तणी। रही सदा लग राण, अकबर सूं ऊभी अणी।। अर्थात महाराणा संग्राम सिंह के पौत्र महाराणा प्रताप सिंह की पगड़ी ही गिनती में सच्ची है, जो कि अकबर के सामने अनम्र रहने के कारण ऊंची रही।
* कविवर रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं :- “महाराणा प्रताप की वीरता उस भावना का प्रतीक है, जिससे अधीन जातियां अन्यायियों की सत्ता के विरुद्ध बगावत करती हैं और मनुष्य जुल्मों के आगे गर्दन झुकाने से इनकार कर देता है”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)