28 फरवरी, 1572 ई. :- होली के दिन महाराणा उदयसिंह का देहान्त हुआ। महाराणा उदयसिंह ने अपने देहान्त से पहले अपनी प्रिय रानी धीरबाई भटियाणी के प्रभाव में आकर अपने 9वें पुत्र कुंवर जगमाल को महाराणा घोषित किया।
मेवाड़ में रिवाज था कि उत्तराधिकारी अपने पिता के दाह संस्कार में भाग नहीं लेता है, इसलिए जगमाल गोगुन्दा के महल में राजगद्दी पर बैठ गया। “वसु नैन अंग शशांक वत्सल रान ऊदल पात भौ। जगमाल गद्दीय बैठ ताहि उठाय पातल नाथ भौ।।”
सभी सामन्त जब महाराणा का दाह संस्कार करने गए, तो वहां राजा रामशाह तोमर ने जगमाल के छोटे भाई सागर से पूछा कि “जगमाल जी नहीं आए ?” सागर ने कहा कि “क्या आप नहीं जानते कि दाजीराज ने उनको राज्य का मालिक बनाया है”
रावत कृष्णदास चुण्डावत, राजा रामशाह तोमर, रावत सांगा, मानसिंह सोनगरा चौहान आदि सामन्त इकट्ठे हुए और मंत्रणा की।
(वीरविनोद में मानसिंह सोनगरा के स्थान पर उनके पिता अखैराज सोनगरा चौहान का नाम लिखा है, क्योंकि इस ग्रन्थ के मुताबिक महाराणा प्रताप के नाना अखैराज सोनगरा चौहान इस वक्त जीवित थे।
अखैराज सोनगरा चौहान के सुमेलगिरि युद्ध में वीरगति पाने का उल्लेख मिलता है, इसलिए इस वक्त उनके पुत्र व कुंवर प्रताप के मामा मानसिंह सोनगरा चौहान का नाम ज्यादा सही लगता है)
रावत कृष्णदास चुण्डावत और रावत सांगा ने कहा कि “पाटवी, हकदार और बहादुर प्रतापसिंह किस कसूर से खारिज समझा जाए ?” सभी सामंत कुँवर प्रताप के पास गए, जहां राजा रामशाह तोमर और रावत कृष्णदास चुंडावत ने कुँवर प्रताप से कहा कि आप दरीखाने पधारें।
कुंवर प्रताप को महाराणा बनाने का निर्णय लिया गया। रावत कृष्णदास चुण्डावत और राजा रामशाह तोमर ने जगमाल का एक-एक हाथ पकड़ा और राजगद्दी से उठाकर सामने बिठा दिया और कहा कि “आपका स्थान राजगद्दी पर नहीं, बल्कि यहां सामने है”
गोगुन्दा में स्थित महादेव जी की बावड़ी में भीलू राणा पूंजा ने अपना अंगूठा चीरकर कुंवर प्रताप का राजतिलक किया और मेवाड़ महाराणा प्रताप के जयकारों से गूंज उठा। झाला राजपूतों के राजपुरोहित मसलिया रावत द्वारा भी महाराणा प्रताप का राजतिलक किया गया।
रावत कृष्णदास चुण्डावत ने महाराणा प्रताप की कमर में राजकीय तलवार बांधी। मेवाड़ के सभी सामन्तों ने महाराणा प्रताप को नज़्रें दीं।
जगमाल पल्ला झटक कर उठा और अपनी पत्नी समेत जहांजपुर चला गया, जहां अजमेर के मुगल सूबेदार ने उसे रहने की इजाजत दे दी। महाराणा प्रताप गुहिल वंश (मेवाड़) के 54वें व सिसोदिया वंश के 12वें शासक बने।
“अहेड़ा का उत्सव” :- होली के दिन मेवाड़ में महाराणा व उनके सामन्तों द्वारा अहेड़ा का उत्सव मनाया जाता था, जिसमें जंगली सूअर का शिकार किया जाता था।
सामन्तों ने महाराणा प्रताप से कहा कि यदि अहेड़ा न मनाया गया, तो हर होली पर मेवाड़ में स्वर्गीय महाराणा उदयसिंह का शोक रहेगा। महाराणा प्रताप ने अपने सामन्तों की बात मानकर अहेड़ा का उत्सव मनाया।
“विधिवत राज्याभिषेक” :- महाराणा प्रताप का विधिवत राज्याभिषेक कुम्भलगढ़ में मनाया गया। इस समारोह में मारवाड़ के राव चन्द्रसेन भी पधारे थे। महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ में इस अवसर पर मेवाड़ को स्वाधीन करने की प्रतिज्ञा की।
* प्रसिद्ध इतिहासकार मुंशी देवीप्रसाद लिखते हैं :- “महाराणा प्रताप ऐसे वीर और गंभीर थे कि लगातार विपदाओं और लड़ाइयों के जारी रहने पर भी हृदय से मजबूत और बात के धनी बने रहे और हज़ारों फौज खप गई तो भी घबराए नहीं।
उनका बर्ताव कैसा अच्छा था कि जब उनके पास कुछ नहीं होता था तो सिर्फ मिलनसारी से हृदय जीत लेते। उनकी खैरख्वाही में बहुत से आदमियों ने जान गंवाई, फिर भी प्रजा उनको वैसा ही चाहती थी”
* महाराणा प्रताप के बारे में सरदार वल्लभ भाई पटेल लिखते हैं :- “राणा प्रताप ने ज़िंदगी भर कोशिश की राजपूताने को एक बनाने के लिए। संयुक्त राजपूताने का एकीकरण करने के लिए जितना कार्य और कोशिश राणा प्रताप ने की, उतनी किसी ने नहीं की।
उनका संकल्प आज परिपूर्ण करने का सौभाग्य हम लोगों को प्राप्त हुआ है। जो संकल्प उन्होंने किया था और वह संकल्प जिस मतलब से किया था, उसी मतलब से हम उसको परिपूर्ण करें”
* महाराणा प्रताप के समकालीन चारण कवि दुरसा जी आढा द्वारा रचित दोहा :- “गढ़ ऊंचो गिरनार, नीचो आबू ही नहीं। अकबर अघ अवतार, पुन अवतार प्रतापसी।।”
अर्थात ऊँचेपन में गिरनार का गढ़ ऊंचा है तो क्या आबू का गढ़ उससे नीचा है ? पाप का अवतार होने में अकबर ऊंचा है, तो पुण्य का अवतार होने में महाराणा प्रताप क्या उससे न्यून है ?
* अगले भाग में महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक के समय के सामन्तों व सहयोगियों का विस्तृत वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)
बहुत बढ़िया लेख है