1558 ई. :- महाराणा प्रताप के ससुर जी बेदला के प्रतापसिंह चौहान का देहान्त हो गया। इनके पुत्र बलभद्र सिंह चौहान बेदला के शासक बने। इन्होंने आगे चलकर महाराणा प्रताप का छापामार युद्धों में साथ दिया।
1559 ई. :- अकबर ने ग्वालियर पर हमला करके प्रसिद्ध किला जीत लिया। ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर ने चित्तौड़ में शरण ली। राजा रामशाह तोमर के पुत्र शालिवाहन तोमर महाराणा प्रताप के बहनोई थे।
इसी वर्ष 16 मार्च को गाँव मचीन्द (राजसमन्द) में महाराणा प्रताप व महारानी अजबदे बाई के पुत्र कुंवर अमरसिंह का जन्म हुआ।
1560 ई. :- तिलवाड़ा के युद्ध में अकबर ने मुनीम खां को भेजकर अपने ही संरक्षक बैरम खां को पराजित किया।इसी वर्ष 23 अप्रैल को मारवाड़ के शासक राव मालदेव के तीसरे पुत्र चन्द्रसेन जी का विवाह महाराणा प्रताप की बहन सूरजदे कंवर से हुआ।
1561 ई. :- अकबर ने बैरम खां को हज जाने की सलाह दी। रास्ते में एक अफगान मुबारक खां ने बैरम खां का कत्ल कर दिया।
इस वक्त बैरम खां का बेटा अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना (रहीम) भी वहीं खड़ा था, लेकिन बचने में कामयाब रहा। (रहीम ने बाद में महाराणा प्रताप के विरुद्ध लड़ाईयों में भाग लिया)
इसी वर्ष अकबर ने गागरोन दुर्ग पर कब्जा किया। गागरोन के राजा ने बिना लड़े ही आत्मसमर्पण किया। इसी वर्ष अकबर ने आदम खां को मालवा भेजकर बाज बहादुर पर फतह हासिल की।
1562 ई. :- अकबर ने मेड़ता जीत लिया। मेड़ता के वीर जयमल राठौड़ चित्तौड़ पधारे। इसी वर्ष अकबर द्वारा दास प्रथा की समाप्ति की गई। इसी वर्ष राव मालदेव का देहान्त हुआ। उनके पुत्र राव चन्द्रसेन (महाराणा प्रताप के बहनोई) मारवाड़ की राजगद्दी पर बैठे।
1563 ई. :- महाराणा उदयसिंह की भोमट के राठौड़ों पर विजय। इस युद्ध में कुंवर प्रताप भी लड़े, लेकिन नेतृत्व महाराणा उदयसिंह ने किया।
इसी वर्ष अकबर ने तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति कर दी। इसी वर्ष बीकानेर शासक के पुत्र रायसिंह राठौड़ का विवाह महाराणा प्रताप की बहन जसवन्तदे कंवर से हुआ। जसवन्तदे कंवर बाद में बीकानेर की महारानी बनी थीं।
रायसिंह राठौड़ ने अकबर का साथ देते हुए महाराणा प्रताप के विरुद्ध सैनिक अभियानों में भाग लिया, जिनका हाल मौके पर लिखा जाएगा।
इसी वर्ष अकबर के एक सिपहसालार मिर्जा शरीफुद्दीन हुसैन ने आमेर के राजा भारमल के भतीजे राव खंगार कछवाहा को बन्दी बना लिया।
तकरीबन एक वर्ष बाद अकबर को पता चला, तो उसने राव खंगार को कैद से छुड़वाया और अपनी सेवा में रख लिया। (राव खंगार ने बाद में महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी व मांडल के युद्धों में मुगल फौज का साथ दिया)
1564 ई. :- “अकबर की गोंडवाना विजय” :- अकबर ने आसफ खां को 10,000 की फौज समेत भेजा।गोंडवाना की रानी दुर्गावती के अथक प्रयासों के बावजूद उन्हें पराजय मिली।
किले में जौहर हुआ, रानी दुर्गावती की 2 रिश्तेदार महिलाओं ने जौहर नहीं किया, इन दोनों को शाही हरम में भेजा गया।
इस विजय से मुगलों को 1000 हाथी मिले, पर आसफ खां ने धोखाधड़ी करते हुए सिर्फ 200 हाथी ही अकबर को नज़र किए। (इसी आसफ खां ने मानसिंह के साथ हल्दीघाटी युद्ध का नेतृत्व किया)
इसी वर्ष अकबर ने पूरे हिन्दुस्तान में जजिया कर माफ किया। इसी वर्ष अकबर ने हुसैन कुली खां को मारवाड़ पर आक्रमण करने भेजा।
राव चन्द्रसेन पराजित हुए व मोटा राजा उदयसिंह मारवाड़ के शासक बने। इसी दौरान महाराणा प्रताप के मामा पाली के मानसिंह सोनगरा चौहान सदा-सदा के लिए मारवाड़ छोड़कर मेवाड़ आ गए।
* प्रसिद्ध क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी लिखते हैं :- “प्रताप। हमारे देश का प्रताप। हमारी जाति का प्रताप। दृढ़ता और उदारता का प्रताप। वे आज नहीं हैं, पर उनका यश और कीर्ति है।
जब तक यह देश है और जब तक संसार में दृढ़ता, उदारता, स्वतंत्रता और तपस्या का आदर है, तब तक हम ही नहीं, सारा संसार आपको आदर की दृष्टि से देखेगा।
संसार के किसी भी देश में आप जन्मे होते, तो आपकी पूजा होती और आपके नाम पर लोग अपने आप को न्योछावर करते”
महाराणा प्रताप के समकालीन बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ ने यह दोहा लिखा :- “जासी हाट बाट रहसी जग, अकबर ठग जासी एकार। रह राखियो खत्री धर्म राणो, सारा ले बरते संसार।।”
अर्थात क्षत्रिय धर्म की धारणा मुझ (पृथ्वीराज) से अधिक महाराणा प्रताप कर रहे थे। महाराणा प्रताप को हिंदुआ सुल्तान, राव हीदवां, हीदूनाथ, रावा तिलक हीदवां कहा जाता है”
अगले भाग में 1568 ई. से 1571 ई. तक की घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)