विभिन्न-विभिन्न ग्रंथों से हमें महाराणा प्रताप के 18 में से 16 ससुर जी की जानकारी प्राप्त हो पाई है, जो कुछ इस तरह है :-
1) बिजौलिया के राव राम रख/माम्रख पंवार :- ये मेवाड़ की महारानी अजबदे बाई के पिता थे। ये बिजौलिया के तीसरे राव थे। राव माम्रख जी के तीन पुत्र / महारानी अजबदे बाई के भाई :- १) राव डूंगरसिंह पंवार :- ये बिजौलिया के चौथे राव थे।
ये चित्तौड़ के तीसरे साके में काम आए। २) राव शुभकरण पंवार :- ये बिजौलिया के पाँचवे राव थे। इन्होंने महाराणा प्रताप व महाराणा अमरसिंह का साथ दिया। ३) पहाडसिंह पंवार :- इन्होंने हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ दिया।
2) बेदला के प्रतापसिंह चौहान :- ये बेदला के तीसरे राव थे। इनके पुत्र बलभद्र सिंह हुए। 3) ईडर के राव नारायणदास राठौड़ :- ये ईडर के 16वें राव थे। इन्होंने छापामार युद्धों में महाराणा प्रताप का भरपूर साथ दिया।
महाराणा प्रताप और राव नारायणदास मिलकर ईडर में मुगलों के विरुद्ध 2 युद्ध लड़े, जिनका हाल मौके पर लिखा जाएगा। राव नारायणदास के 3 पुत्र व 2 पुत्रियां हुईं। दूसरी पुत्री का विवाह देवलिया रावत भानुसिंह से हुआ, जो मेवाड़ के खिलाफ थे।
4) बूंदी के राव सुरतन/सुल्तान हाडा :- इन्होंने अपने ही सामन्तों की आँखें निकलवा ली थीं, इसलिए महाराणा उदयसिंह ने इनको 1554 ई. में गद्दी से खारिज कर राव सुर्जन हाडा को बूंदी का मालिक बनाया था।
इस घटना के कुछ वर्षों बाद महाराणा प्रताप का विवाह राव सुरतन/सुल्तान की पुत्री रानी शाहमती बाई हाडा से हुआ।
5) जैसलमेर के हरराय भाटी :- इन्होंने अकबर के नागौर दरबार (1570 ई.) में मुगल अधीनता स्वीकार की। इनके देहान्त के बाद महारावल भीम ने अपनी बहिन का विवाह महाराणा प्रताप से करवा दिया।
6) मारवाड़ के राव रामसिंह राठौड़ :- इन्होंने भी मुगल अधीनता स्वीकार की। ये महाराणा प्रताप की रानी फूल कंवर के पिता थे।
7) लोयणा के ठाकुर रायधवल देवल :- इन्होंने छापामार युद्धों के समय महाराणा प्रताप की सहायता की थी। महाराणा प्रताप ने प्रसन्न होकर लोयणा ठाकुर को “राणा” की उपाधि दी थी। महाराणा ने लोयणा में एक बगीचा और बावड़ी का भी निर्माण करवाया।
8) बड़ी सादड़ी के राजराणा सुरतन सिंह झाला :- ये 1568 ई. में चित्तौड़गढ़ के तीसरे साके में अकबर की फौज से लड़ते हुए सूरजपोल द्वार पर वीरगति को प्राप्त हुए। इनके पुत्र वीर झाला मानसिंह हुए।
(9-16) रायभाण खींचण, पृथ्वीराज राठौड़, भोजराज राठौड़, राव जगमाल पंवार, राव अखैराज राठौड़, करमसेन चौहान, राव मानसिंह राठौड़, राव लाखा राठौड़
* महाराणा प्रताप के प्रमुख बहनोई :- 1) ग्वालियर के कुंवर शालिवाहन तोमर :- ये ग्वालियर नरेश रामशाह तोमर के पुत्र थे। कुंवर शालिवाहन तोमर हल्दीघाटी युद्ध में सबसे अन्त में वीरगति को प्राप्त हुए थे।
2) बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ :- ये महाराणा प्रताप के बहनोई थे, लेकिन किसी इतिहासकार ने इनको महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह का दामाद लिख दिया। पृथ्वीराज राठौड़ उम्र में शक्तिसिंह से भी बड़े थे, इसलिए ये उनके दामाद नहीं हो सकते।
शक्तिसिंह की पुत्री और पृथ्वीराज राठौड़ की पत्नी द्वारा आगरा के मीना बाजार में अकबर की छाती पर पैर रखने की कथा भी काल्पनिक मात्र है। ऐसी ही एक कथा गुजरात की किसी राजकुमारी के नाम से भी मशहूर है।
पृथ्वीराज राठौड़ के 3 विवाह हुए थे, जिनमें से एक महाराणा प्रताप की बहन से हुआ। पृथ्वीराज राठौड़ अकबर के दरबार में उच्च कोटि के कवि थे। इन्होंने ‘वेली किसन रुक्मिणी री’ नामक रचना की।
3) बीकानेर के राजा रायसिंह राठौड़ :- ये अकबर के प्रमुख राजपूत मनसबदारों में से एक थे। राजा रायसिंह ने महाराणा प्रताप के विरुद्ध मुगल सैन्य अभियानों में भाग लिया था। राजा रायसिंह ने बीकानेर का प्रसिद्ध जूनागढ़ दुर्ग बनवाया।
4) मारवाड़ के राव चन्द्रसेन राठौड़ :- इन्हें मारवाड़ का राणा प्रताप भी कहा जाता है। इन्होंने छापामार युद्धों में महाराणा प्रताप का साथ दिया। राव चंद्रसेन राठौड़ आजीवन स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत रहे व अंतिम श्वास तक स्वाधीन रहे।
5) देलवाड़ा के राज राणा झाला मानसिंह :- ये हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। इनके पुत्र शत्रुसाल झाला हुए, जो महाराणा प्रताप के भाणजे थे। राजराणा झाला मानसिंह की पुत्री मान कँवर का विवाह बनेड़ा के राजा सुरतन सिंह से हुआ।
6) सिरोही के राव उदयसिंह देवड़ा :- 1562 ई. में शीतला (चेचक) की बीमारी के करना राव उदयसिंह देवड़ा का देहांत हुआ।
7) जैसलमेर के कुंवर मालदेव भाटी :- इन्होंने अमीर अली को मारकर जैसलमेर के अर्द्धसाके में विजय प्राप्त की थी।
* अगले भाग में 1558 ई. से 1567 ई. तक कुंवर प्रताप के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में लिखा जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)
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