ग्रन्थ वीरविनोद के अनुसार महाराणा प्रताप की 11 रानियाँ व 17 पुत्र थे व कोई भी पुत्री नहीं थी। लेकिन महाराणा प्रताप के समकालीन ख्यातों से उनकी 18 रानियाँ, 18 पुत्र व 6 पुत्रियों की जानकारी मिलती है।
महाराणा प्रताप की 18 रानियां व उनके 18 पुत्र :- 1) महारानी अजबदे बाई :- 1557 ई. में बिजौलिया के सामन्त राम रख/माम्रख पंवार की पुत्री अजबदे बाई से महाराणा प्रताप का विवाह हुआ।
आगे चलकर अजबदे बाई मेवाड़ की महारानी बनीं। महाराणा प्रताप की सभी रानियों में उनका सबसे अधिक साथ इन्होंने ही दिया। अजबदे बाई के गुरु मथुरा के विट्ठल जी थे।
गोंडवाना की रानी दुर्गावती व आमेर की हीर कंवर (जोधा बाई के नाम से मशहूर) ने भी इन्हीं गुरु से शिक्षा प्राप्त की। गुरु विट्ठल जी को कृष्ण भक्ति के कारण मुगल यातनाएं भी सहनीं पड़ी।
गोंडवाना की रानी दुर्गावती ने इन गुरु को 108 गांव प्रदान किए। पुत्र :- १) महाराणा अमरसिंह :- अगले महाराणा बने २) कुंवर भगवानदास :- इन्होंने एक ग्रन्थ की रचना की थी।
2) रानी प्यार कंवर/पुरबाई सोलंकिनी :- पुत्र :- १) कुंवर गोपाल २) कुंवर साहसमल :- ये महाराणा प्रताप के तीसरे पुत्र थे। धरियावद के रावत इन्हीं के वंशज हैं। ये धरियावद के पहले कुंवर साहब भी हैं।
3) रानी फूलबाई राठौड़ :- ये मारवाड़ के राव मालदेव की पौत्री व रामसिंह की पुत्री थीं। पुत्र :- १) कुंवर चंदा सिंह :- ये महाराणा प्रताप के दूसरे पुत्र थे। इन्हें आंजणा (दरिया के पास) की जागीर दी गई।
२) कुंवर शेखासिंह :- ये महाराणा प्रताप के चौथे पुत्र थे। इन्हें बहेड़ा, नाणा, बीजापुर (गोडवाड़) की जागीर दी गई।
4) रानी चम्पाबाई झाली :- पुत्र :- १) कुंवर कचरा/काचरा सिंह :- इन्हें गोगुन्दा तहसील में स्थित जोलावास की जागीर दी गई। २) कुंवर सांवलदास :- इनको उदयपुर की सलूम्बर तहसील में स्थित स्थित जामुडा की जागीर दी गई। ३) कुंवर दुर्जन सिंह
5) रानी जसोदाबाई चौहान :- ये करमसेन चौहान की पुत्री थीं। पुत्र :- १) कुंवर कल्याणदास/कल्याणसिंह :- इन्हें उदयपुर के निकट परसाद नामक जागीर दी गई।
6) रानी शाहमती/सेमता बाई हाडा :- ये बूंदी के राव सुरतन/सुल्तान हाडा की पुत्री थीं। पुत्र :- १) कुंवर पुरणमल :- ये महाराणा प्रताप के 11वें पुत्र थे। इन्हें मांगरोप, गुरलां, गाडरमाला, सींगोली की जागीर दी गई।
इनके वंशज पुरावत कहलाते हैं। महाराणा अमरसिंह के शासनकाल में पुरणमल जी द्वारिका यात्रा पर गए। इसी दौरान जूनागढ़ के मुस्लिम सूबेदार ने लूनावाडे के सौलंकी राजा पर हमला किया।
रास्ते में पुरणमल जी को पता चला तो उन्होंने मुस्लिम सूबेदार को पराजित कर लूनावाडे के राजा की मदद की। सौलंकी राजा ने खुश होकर पुरणमल जी के बेटे सबलसिंह जी को अपने यहीं रख लिया और मलिकपुर, आडेर आदि जागीरें दीं।
पुरणमल जी उदयपुर पहुंचे, तो महाराणा अमरसिंह ने उनको मांगरोप की जागीर दी। पुरणमल जी ने मांगरोप में जंगल साफ करवाकर गांव बसाया। पुरणमल जी की उपाधि महाराज (बाबा) है।
7) रानी आशाबाई/आसबाई खींचण :- ये रायभाण जी की पुत्री थीं। पुत्र :- १) कुंवर हाथी सिंह :- इन्हें बोडावास, दांतड़ा व गेंडल्या की जागीर दी गई। २) कुंवर रामसिंह :- इन्हें उडल्यावास व मानकरी का जागीर दी गई।
8) रानी आमोलक/आलमदे बाई चौहान :- ये बेदला के राव प्रतापसिंह चौहान की पुत्री थीं। पुत्र :- १) कुंवर जसवन्त सिंह :- इन्हें जालोद व कारुंदा की जागीर दी गई।
9) रानी रतन कंवर/रत्नावती पंवार :- ये राव जगमाल पंवार की पुत्री थीं। पुत्र :- १) कुंवर माल सिंह 10) रानी अमर बाई राठौड़ :- पुत्र :- १) कुंवर नाथा सिंह
11) रानी लखा बाई राठौड़ :- पुत्र :- १) कुंवर रायभाण सिंह 12) रानी रणकंवर राठौड़ :- ये पृथ्वीराज राठौड़ की पुत्री थीं। 13) रानी रत्नकंवर राठौड़ :- ये राव मानसिंह राठौड़ की पुत्री थीं।
14) रानी भगवत कंवर राठौड़ :- ये चावण्ड के राव लाखा राठौड़ की पुत्री थीं। 15) रानी माधो कंवर राठौड़ :- ये राव अखैराज राठौड़ की पुत्री थीं। 16) रानी फूलकंवर राठौड़ द्वितीय :- ये भोजराज राठौड़ की पुत्री थीं।
17) रानी भटियानी जी :- इन रानी का नाम नहीं मिल पाया है। ये जैसलमेर के महारावल भीम की बहन थीं। 18) रानी देवल जी :- इन रानी का भी नाम नहीं मिल पाया है। ये लोयणा के ठाकुर रायधवल देवल की पुत्री थीं।
* मुंहणौत नैणसी ने अपनी ख्यात में महाराणा प्रताप के करमसी नाम के एक पुत्र का जिक्र किया है, पर ये नाम अन्य किसी भी ख्यात या ग्रन्थ में नहीं मिलता।
“महाराणा प्रताप की पुत्रियां”
ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है कि महाराणा प्रताप की कोई पुत्री नहीं थी, लेकिन कुछ इतिहासकारों के अनुसार महाराणा प्रताप की 6 पुत्रियाँ थीं, जिनके नाम इस तरह हैं :-
1) आशाकंवर जी :- इनका विवाह बड़ी सादड़ी के राजराणा झाला मान के पुत्र राजराणा झाला देदा से हुआ। 2) सुककंवर जी 3) रखमावती जी 4) रमा/राम कंवर जी 5) कुसुमावती जी 6) दुर्गावती जी
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)
Great knowledge sir but from where the Shahpura line came into existence are they direct descendents of maharana
बहुत सुंदर वर्णन है ।