“मेवाड़ महाराणा उदयसिंह जी की संक्षिप्त जीवनी”
1522 ई. में महाराणा सांगा व रानी कर्णावती के पुत्र कुंवर उदयसिंह का जन्म हुआ। 1528 ई. में जब कुंवर उदयसिंह 6 वर्ष के थे, तब पिता महाराणा सांगा का देहांत हुआ। 1534 ई. में कुंवर उदयसिंह 12 वर्ष के थे, तब माता कर्णावती जी समेत हज़ारों क्षत्राणियों ने जौहर किया।
1535 ई. में दासीपुत्र बनवीर द्वारा महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी गई, बनवीर का चित्तौड़गढ़ पर कब्ज़ा हो गया व उसने कुंवर उदयसिंह को मारने का प्रयास किया, महाबलिदानी माता पन्नाधाय द्वारा पुत्र चंदन का बलिदान करके कुंवर के प्राणों की रक्षा की गई।
1537 ई. में कुंभलगढ़ दुर्ग में सामंतों द्वारा महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक किया गया। 1538-39 ई. में महाराणा उदयसिंह व महारानी जयवंता बाई का विवाह हुआ।
1540 ई. में कुंवर प्रताप का जन्म हुआ, मावली के युद्ध में 18 वर्षीय महाराणा उदयसिंह द्वारा बनवीर के सेनापति कुंवरसिंह की पराजय हुई, महाराणा की ताणा विजय हुई, महाराणा ने कूटनीति से बनवीर को चित्तौड़गढ़ के युद्ध में पराजित कर गढ़ पर अधिकार किया।
1544 ई. में अफगान बादशाह शेरशाह सूरी की चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई की ख़बर सुनकर महाराणा उदयसिंह ने कूटनीति से दुर्ग की चाबियां उसके पास जहाजपुर भिजवा दी, शेरशाह ने शम्स खां को फौज देकर चित्तौड़ भेजा। शम्स खां किले की तलहटी में फौज समेत रहने लगा, जिससे महाराणा के अधिकार सीमित हो गए।
1546 में महाराणा उदयसिंह ने मीराबाई जी को चित्तौड़गढ़ लाने के लिए ब्राम्हणों को भेजा, पर मीराबाई जी नहीं आईं।
1546 ई. में महाराणा उदयसिंह द्वारा सही समय आने पर शम्स खां की फौज पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की गई।
1554 ई. में महाराणा उदयसिंह ने बूंदी के शासक राव सुल्तान हाड़ा को बर्खास्त कर राव सुर्जन हाड़ा को बूंदी की गद्दी पर आसीन किया।
1555-57 ई. में महाराणा उदयसिंह द्वारा कुंवर प्रताप को सेनापति बनाकर वागड़, छप्पन व गोडवाड़ के क्षेत्र विजित कर मेवाड़ में मिलाना।
1557 ई. :- अफगान हाजी खां की वजह से मेवाड़ महाराणा उदयसिंह व मारवाड़ नरेश राव मालदेव के बीच युद्ध। इस लड़ाई में महाराणा के ललाट पर तीर लगा।
1559 ई. :- अकबर की ग्वालियर विजय। महाराणा उदयसिंह द्वारा अकबर के शत्रु राजा रामशाह तोमर को चित्तौड़ दुर्ग में शरण देना व अपनी पुत्री का विवाह कुंवर शालिवाहन तोमर से करवाना।
इसी वर्ष महाराणा द्वारा विश्व के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक ‘उदयपुर’ की स्थापना की गई। महाराणा द्वारा नौचोक्या महल, नेका की चौपाड़, जनाना रावला, राज आंगन, मोती महल, उदयसागर झील का निर्माण।
1560 ई. :- बैरम खां व अकबर के बीच हुए तिलवाड़ा युद्ध से पूर्व बैरम खां द्वारा महाराणा उदयसिंह से फौजी सहायता की मांग व महाराणा द्वारा फौज देने से इनकार।
1561 ई. :- अकबर की मालवा विजय। अकबर के शत्रु मालवा के बाज बहादुर को महाराणा उदयसिंह ने शरण दी।
1562 ई. :- अकबर की मेड़ता विजय। महाराणा उदयसिंह द्वारा अकबर के शत्रु वीर जयमल जी को मेवाड़ में बदनोर की जागीर देना। इसी वर्ष सिरोही के मानसिंह जी देवड़ा ने मेवाड़ में शरण ली।
इसी वर्ष महाराणा ने सादड़ी पर अधिकार किया। इन्हीं दिनों महाराणा उदयसिंह ने अकबर के अफगान शत्रुओं को मेवाड़ में शरण देकर मेवाड़ की फौज में भर्ती किया।
1563 ई. :- महाराणा उदयसिंह की भोमट के राठौड़ों पर विजय। 1565 ई. :- महाराणा उदयसिंह द्वारा उदयसागर झील की प्रतिष्ठा।
1567 ई. :- अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण, महाराणा उदयसिंह सामंतों की सलाह पर राजपरिवार सहित राजपीपला चले गए, दुर्ग में वीर पत्ताजी व जयमलजी के नेतृत्व में केसरिया, रानी फूल कंवर जी के नेतृत्व में जौहर, अकबर द्वारा 30000 नागरिकों का कत्लेआम। अकबर के 30000 सिपाहियों की मृत्यु।
1568 ई. :- बाज बहादुर की मांग को लेकर अकबर ने उदयपुर पर कुछ सैनिक टुकड़ियां भेजीं, छुटपुट लड़ाइयां भी हुईं, फिर भी महाराणा ने बाज बहादुर को अकबर के हवाले नहीं किया।
1570 ई. :- महाराणा उदयसिंह द्वारा कुंभलगढ़ में नई फौज तैयार करके गोगुन्दा पधारना व गोगुन्दा को मेवाड़ की राजधानी घोषित करना। इसी वर्ष अकबर का नागौर दरबार हुआ, जिसमें महाराणा उदयसिंह ने जाने से इनकार किया।
1571 ई. :- अकबर द्वारा राजा भारमल के ज़रिए महाराणा उदयसिंह को संधि प्रस्ताव भिजवाना व महाराणा द्वारा अधीनता स्वीकार करने से इनकार। 28 फरवरी, 1572 ई. :- होली के दिन महाराणा उदयसिंह जी का देहांत।
इस प्रकार महाराणा उदयसिंह ने मेवाड़ को बनवीर के चंगुल से आज़ाद किया, शम्स खां को परास्त किया, हाजी खां से युद्ध लड़े, राव मालदेव से युद्ध लड़े, उदयपुर की स्थापना की, छापामार प्रणाली अपनाई, मुगल सल्तनत को न केवल चुनौती दी, बल्कि अपनी अंतिम श्वास तक मुगल अधीनता स्वीकार नहीं की।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)