महाराणा प्रताप से सम्बन्धित दिलचस्प जानकारियाँ :- * वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के अश्व का मूल नाम “चेटक” था, जो कि बलीचा के ताम्रपत्र में भी स्पष्ट वर्णित है, परन्तु कालांतर में यह “चेतक” हो गया।
* महाराणा प्रताप ने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में 300 से अधिक मुगल चौकियां ध्वस्त कीं व 21 बड़े युद्ध लड़े, जिनका वर्णन आगे के भागों में विस्तार से लिखा जाएगा।
* महाराणा प्रताप एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिनकी प्रशंसा उनके शत्रु पक्ष के लेखकों ने भी मुक्तकंठ से की है। इससे पता चलता है कि महाराणा प्रताप किस दर्जे के महावीर रहे होंगे।
* महाराणा प्रताप की गजसेना में लगभग 100 हाथी थे, जिनमें रामप्रसाद, लूणा, चक्रबाप, खांडेराव आदि प्रमुख थे। इनमें से रामप्रसाद हाथी उस दौर के हिंदुस्तान के सर्वाधिक चर्चित हाथियों में से एक था।
* महाराणा प्रताप के लिखे पत्रों पर भाले का चिन्ह अंकित किया जाता, जिसे हस्ताक्षर रुप में स्वीकार किया जाता था।
* महाराणा प्रताप को राणा कीका, पाथळ, पत्ता, हल्दीघाटी का शेर, नीला घोड़ा रो असवार, मेवाड़ केसरी आदि नामों से भी जाना जाता है, लेकिन महाराणा प्रताप को उस जमाने में राणा प्रताप से भी अधिक राणा कीका नाम से जाना जाता था।
फारसी तवारिखों में अबुल फजल, अब्दुल कादिर बंदायूनी ने भी इन्हें राणा कीका ही कहा है। ये नाम भीलों ने महाराणा के बचपन में रखा था। कीका का अर्थ होता है “बेटा”।
* युद्धभूमि में चेतक को मुगल हाथियों से भी मुकाबला करना पड़ता था, इसलिए हाथियों को भ्रमित करने लिए महाराणा प्रताप चेतक के मुख पर हाथी की नकली सूंड लगा दिया करते थे।
* महाराणा प्रताप और अकबर ने पूरे जीवन में कभी एक-दूसरे को नहीं देखा। कुछ किस्सों में बताया जाता है कि अकबर ने महाराणा प्रताप को देखा था या उनसे मिला था, पर ये सही नहीं है।
* महाराणा प्रताप को बड़े पैमाने पर जन-सहयोग मिला। मेवाड़ की प्रजा उनका बहुत आदर करती थी। * कविराज श्यामलदास के अनुसार महाराणा प्रताप अनुशासन के पक्के थे।
* संघर्ष के दिनों में महाराणा प्रताप कई-कई दिनों तक अपने ज़िरह-बख्तर को पहने रखते थे। माना जाता है कि ये ज़िरह-बख्तर आज उदयपुर सिटी पैलेस में रखा हुआ है।
* महाराणा प्रताप जैन आचार्यों का भी बहुत सम्मान करते थे। जब तपागच्छ के पट्टधर का उदयपुर आना हुआ, तो महाराणा प्रताप उनकी आगवानी के लिए तेलियों की सराय (वर्तमान में बी.एन. कॉलेज) तक पधारे थे।
* अकबर के दरबारी कवि दुरसा आढ़ा की नजर में घोर अंधकार से परिपूर्ण अकबर के शासन में जब सब राजा ऊँघने लग गए किन्तु जगत का दाता राणा प्रताप पहरे पर जाग रहा था।
महाराणा प्रताप के प्रण, पराक्रम व पुरुषार्थ पर मुग्ध कवि ने लिखा :- अकबर घोर अंधार, उंघाणा हींदू अवर। जागै जगदातार, पोहरै राणा प्रतापसी।।
* महाराणा प्रताप के बारे में वीरविनोद के लेखक कविराज श्यामलदास लिखते हैं “इन महाराणा का जीवन ज़िरहबख्तर पहिने हुए व तलवार हाथ में लिए बड़े ही बहादुराना बर्ताव के साथ गुजरा”
* चावण्ड में मिले साक्ष्यों से पता चलता है कि महाराणा प्रताप वास्तुशास्त्र में भी विश्वास रखते थे। चावंड के महल वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरण हैं।
* महाराणा प्रताप के समय चावण्ड चित्रशैली प्रसिद्ध हुई, जिसमें प्रमुख चित्रकार नसीरुद्दीन थे, जिनकी “रागमाला” बड़ी प्रसिद्ध है। हालांकि रागमाला का मुख्य कार्य महाराणा अमरसिंह जी के शासनकाल में सम्पन्न हुआ था।
* डॉक्टर श्रीकृष्ण जुगनू लिखते हैं कि आत्म प्रशंसा में लिखने के नाम पर महाराणा प्रताप ने अपने पास कुछ नहीं माना अन्यथा उनके दरबार में भी काेई अबुल फज़ल और फैजी होता। याद नहीं कि महाराणा ने अपनी प्रशंसा में काेई ग्रंथ लिखवाया हो।
उनके जीवनकाल में प्रशंसा की कोई पुष्पिका तक नहीं मिलती, हां चक्रपाणि मिश्र ने जरूर एकाध श्लोक महाराणा प्रताप की प्रशंसा में लिखा।
महाराणा प्रताप के समय विद्वान चक्रपाणि मिश्र ने कुछ ग्रन्थ लिखे, जिनमें से कुछ इस तरह हैं :- १) विश्व वल्लभ २) राज्याभिषेक पद्धति ३) मुहुर्तमाला ४) व्यवहारादर्श
* महाराणा प्रताप अकबर को ना तो बादशाह कहते थे और ना उसका नाम लेते। वे अकबर को सदैव “तुर्क” कहा करते थे।
* महाराणा प्रताप का कद लम्बा, आँखें बड़ी, चेहरा भरा हुआ और प्रभावशाली, मूंछें बड़ी, छाती चौड़ी, बाहु विशाल और रंग गेहुँआ था। पुराने रिवाज के अनुसार दाढ़ी नहीं रखते थे। आज भी इन महाराणा की तस्वीर देखकर हर एक आदमी पर रौब छा जाता है।
उदयवत आज दुनियाण सह ऊपरा, साररो तार लागो सबांहीं। हंस राखै जिकां नीर अलगो हुवै, नीर राखै जिकां हंस नाहीं।।
अर्थात हे महाराणा उदयसिंह के पुत्र महाराणा प्रतापसिंह, संसार में आपके श्रेष्ठ खड्ग (तलवार) का ताप सबको लगता है, अतः जो शत्रु जीव रखना चाहते हैं, उनमें पराक्रम नहीं रहता और जो शत्रु पराक्रम रखते हैं, उनका जीव नहीं रहता।
* अगले भाग में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप द्वारा लड़े गए पहले युद्ध “जैताणा के युद्ध” का वर्णन किया जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
We are humbly grateful to you for Maharana Pratap related history.