9 मई, 1540 ई. – “महाराणा प्रताप का जन्म” :- एक ओर चित्तौडगढ़ के दुर्ग पर मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह का पुन: अधिकार हुआ, तो दूसरी ओर इसी शुभ घड़ी में कुम्भलगढ़ दुर्ग के एक भाग कटारगढ़ में महारानी
जयवन्ता बाई के गर्भ से महाराजकुमार प्रतापसिंह का जन्म हुआ। महाराणा प्रताप का एक जन्म स्थान पाली में स्थित जूनी कचहरी में भी बताया जाता है, जो कि सही नहीं है।
विक्रमी संवत के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया (रविवार) को सूर्योदय से 47 घड़ी 13 पल गये हुआ था। (ग्रंथ वीरविनोद में महाराणा प्रताप की जन्मतिथि संवत 1596 ज्येष्ठ सुदी त्रयोदशी दी हुई है, जो कि गलत है)
“माई एहड़ा पूत जण, जेहड़ा राणा प्रताप। अकबर सूतो औंझके, जाण सिराणे सांप।।” अर्थात हे माता, यदि आप पुत्र को जन्म दें तो वह महाराणा प्रताप जैसा हो, जिनका नाम सुनकर अकबर सोते हुए ऐसे जाग जाता है जैसे सिरहाने कोई सांप रख दिया हो।
“भाग हूँ न ई भड़ मिले, मिले न तप रे ताप। अणगिण माँ जीवित जले, जद जनमे परताप।।” अर्थात भाग्य से कुछ हासिल नहीं होता, बिना तपस्या (मेहनत) के फल की प्राप्ति नहीं होती। अनगिनत माताएं शत्रुओं से रक्षा हेतु अग्नि में समर्पित होते हुए जौहर करती हैं, तब कहीं जाकर एक महाराणा प्रताप जन्म लेते हैं।
“माता :- महारानी जैवन्ता बाई” :- ये महाराणा उदयसिंह की पत्नी व मेवाड़ की पटरानी थीं। इनका नाम विवाह से पूर्व जीवन्त कंवर था। ये पाली के अखैराज सोनगरा चौहान की पुत्री थीं।
इन्होंने अपने वैवाहिक जीवन में कईं कष्ट देखे। ये कुंवर प्रताप की आदर्श थीं। ‘जैवंता’ नाम का शुद्ध रूप ‘जयवंता’ है, जिसका अर्थ है “विजयी व पताका”।
“पिता :- महाराणा उदयसिंह” :- इनका जन्म 1522 ई. में हुआ। ये महाराणा सांगा व महारानी कर्णावती के पुत्र थे। इनका आरम्भिक जीवन काफी कष्टप्रद रहा। महाराणा उदयसिंह के बारे में ब्लॉग पर पहले ही विस्तार से लिखा जा चुका है।
“गुरु” :- एक धारावाहिक में महाराणा प्रताप के गुरु राघवेंद्र का ज़िक्र किया गया है, जो कि गलत है। वास्तव में गुरु राघवेंद्र महाराणा प्रताप के नहीं, बल्कि पंडित चक्रपाणि मिश्र के गुरु थे।
महाराणा प्रताप ने युद्धकला वीरवर जयमल जी राठौड़ व सलूम्बर रावत साईंदास जी चुंडावत से सीखी। महाराणा ने शास्त्रों का ज्ञान स्वयं अपनी माता महारानी जैवन्ता बाई जी से प्राप्त किया।
“कुंवर शक्तिसिंह” :- इनका जन्म 1540 ई. में हुआ। बचपन से इनकी अपने पिता महाराणा उदयसिंह से अनबन थी। हालांकि इन्हें राजगद्दी का कोई मोह नहीं था। इनके वंशज शक्तावत कहलाए।
“वीरमदेव” :- ये कुंवर शक्तिसिंह के सगे भाई थे। इनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। जब महाराणा प्रताप छापामार युद्धों में व्यस्त थे, उस कठिन समय में 15 वर्षों तक वीरमदेव ने महाराणा प्रताप के परिवार की रक्षा की।
इनके पास 500 सैनिक हमेशा रहते थे। वीरमदेव ने महाराणा प्रताप के परिवार के किसी भी सदस्य को आंच तक नहीं आने दी। इनको घोसुण्डा की जागीर मिली।
1542 ई. :- मुगल बादशाह हुमायूं की बेगम हमीदा बानो ने अमरकोट में जलाल को जन्म दिया, जो बाद में अकबर के नाम से मशहूर हुआ। अकबर आयु में महाराणा प्रताप से 2 वर्ष छोटा था।
1544 ई. – “गिरीसुमेल का युद्ध” :- ये युद्ध अफगान बादशाह शेरशाह सूरी और मारवाड़ के राव मालदेव के बीच हुआ। मारवाड़ की पराजय हुई। पाली मारवाड़ का हिस्सा था,
इसलिए पाली के अखैराज सोनगरा चौहान (महाराणा प्रताप के नाना) मारवाड़ की ओर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। (हालांकि कुछ इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक के समय तक अखैराज सोनगरा चौहान का जीवित रहना लिखा है)
“अखैराज सोनगरा चौहान के 6 पुत्र / महाराणा प्रताप के मामा” :- 1) मानसिंह सोनगरा :- मुगल फौज ने जब जोधपुर का किला घेरा, तब मानसिंह सोनगरा ने राव चंद्रसेन राठौड़ का साथ दिया था।
मानसिंह सोनगरा ने ही मेवाड़ के अन्य सर्दारों के साथ मिलकर जगमाल को राजगद्दी से हटाकर महाराणा प्रताप को मेवाड़ का शासक बनाया। मानसिंह सोनगरा हल्दीघाटी युद्ध में काम आए थे। इनके पुत्र जसवन्त सोनगरा हुए।
2) भाण सोनगरा :- ये कुम्भलगढ़ युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से लड़ते हुए काम आए। इनकी एक पुत्री का विवाह मारवाड़ के मोटा राजा उदयसिंह से हुआ। भाण सोनगरा के पुत्र :- १) नारायणदास २) केशोदास ३) कल्याणदास
3) उदयसिंह सोनगरा :- इनके पुत्र सूरजमल हुए। 4) भोजराज सोनगरा :- ये कूंपा महाराजोत के यहां रहते थे व उन्हीं के साथ किसी लड़ाई में काम आए। भोजराज के पुत्र सिंह हुए।
5) जयमल सोनगरा :- ये बीकानेर रहते थे। इनको रिणी के पास वाय गांव पट्टे में मिला। इनके पुत्र अचलदास व सारंगदे हुए। 6) रतनसी सोनगरा :- ये जसवन्त मानसिंहोत के यहां रहते थे। इनके पुत्र कान्ह हुए।
24 जून, 1547 ई. :- इस दिन भारमल जी कावड़िया के पुत्र भामाशाह जी कावड़िया का जन्म हुआ। अगले भाग में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप से सम्बंधित ग्रंथों के बारे में लिखा जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (मेवाड़)
बहुत अच्छी जानकारी दे रहे है।
बहुत सुंदर और महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की आपने। इसी तरह अपने सभी पूर्वजो के बारे में अपनी आने वाली पीढियों को जानकारी देनी है। जिससे उन्हें अपना इतिहास ज्ञात हो सके।
कुंवर समीर शाही
एडिटर इन चीफ
चक्रव्यूह इण्डिया
अयोध्या धाम
उत्तर प्रदेश
9625801311