मेवाड़ महाराणा उदयसिंह (भाग – 29)

28 फरवरी, 1572 ई. – “महाराणा उदयसिंह का देहान्त”

होली के दिन महाराणा उदयसिंह का देहान्त हुआ।महाराणा उदयसिंह ने अपनी प्रिय रानी धीरबाई भटियानी के प्रभाव में आकर अपने 9वें पुत्र कुंवर जगमाल को मेवाड़ का उत्तराधिकारी घोषित किया। मेवाड़ के रिवाज के मुताबिक उस वक्त उत्तराधिकारी को उसके पिता के दाह संस्कार में जाने की अनुमति नहीं थी।

महाराणा उदयसिंह के दाहसंस्कार का दृश्य

सभी राजपूत सर्दार महाराणा के दाह संस्कार के बाद गोगुन्दा रावले में पधारे। गोगुन्दा में महाराणा उदयसिंह की छतरी बनी हुई है। बस्ती से यह स्थान लगभग 1 मील दक्षिण में है।

गोगुन्दा स्थित महाराणा उदयसिंह की 8 खंभों की छतरी

* महाराणा उदयसिंह की एक बहिन का विवाह सांचोर के शासक जयसिंह चौहान से हुआ। महाराणा की एक और बहिन का विवाह बूंदी के राव सूरजमल हाडा से हुआ।

“महाराणा उदयसिंह जी द्वारा जारी किए गए ताम्रपत्र”

* विजन गांव का ताम्रपत्र :- यह ताम्रपत्र 1539 ई. में जारी किया गया था। इस ताम्रपत्र से महाराणा उदयसिंह जी के शासनकाल के प्रारंभिक वर्षों की जानकारी प्राप्त होती है।

* मिश्रों की पीपली का ताम्रपत्र :- यह ताम्रपत्र महाराणा उदयसिंह ने 8 जुलाई 1556 ई. (बुधवार) को जारी किया था। इस ताम्रपत्र के अनुसार महाराणा उदयसिंह ने मथुरासी डूंगरसी मिश्र को चित्तौड़गढ़ के पास स्थित पीपली गांव दान में दिया।

* लावा का ताम्रपत्र :- यह ताम्रपत्र 1558 ई. में जारी किया गया था। इस ताम्रपत्र में भोला नामक एक ब्राम्हण को आदेश दिया गया है कि वह भविष्य में कन्याओं के विवाह के अवसर पर ‘मापा’ नामक कर (टैक्स) ना लेवे।

* बेडवास का ताम्रपत्र :- यह ताम्रपत्र महाराणा उदयसिंह जी ने 1559 ई. में जारी किया था। इस ताम्रपत्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि उदयपुर की स्थापना 1559 ई. में ही हुई थी।

* महाराणा उदयसिंह के प्रति कुछ इतिहासकारों के मत यहां रखे जाते हैं, जिनमें से कुछ ने उनको कमजोर बताया है, तो कुछ ने उनकी तारीफ की है :- * मुहणौत नैणसी लिखते हैं “महाराणा उदयसिंह महाप्रतापशाली व बड़े उग्र तेज वाले शासक थे”

* कर्नल जेम्स टॉड लिखता है “राणा उदयसिंह ने चित्तौड़ छोड़कर अपने कुल की गरिमा पर कलंक लगाया”

* वीरविनोद में कविराजा श्यामलदास लिखते हैं “इन महाराणा के मिजाज़ में स्थिरता बहुत कम थी और ये अक्ल व बहादुरी में अपने बाप महाराणा सांगा के चौथे हिस्से भी नहीं थे, परन्तु विक्रमादित्य से अच्छे थे, इसलिए इनकी निन्दा नहीं हुई। कर्नल टॉड साहिब ने महाराणा उदयसिंह को कायर कहा है, पर महाराणा ने अक्सर लड़ाईयों वगैरह में बहादुरी दिखाई, इसलिए बहुत कायर भी नहीं थे”

* राणा रासौ ग्रन्थ में लिखा है “राणा उदयसिंह विशेष उदार था। कलंकित पुरुषों के लिए वह केदारेश्वर, पापियों के लिए प्रयाग तीर्थ, खूनियों की लज्जा रखने के लिए वाराणसी और मदिरापान करने वालों के लिए मंदाकिनी था। वह बादशाहों का विरोध करने वाला व पृथ्वी का भार कम करने वाला था। वह सिक्काधारी बादशाओं को उखाड़ने वाला व निर्बलों की सहायता करने वाला महान शासक था। राणा उदयसिंह, जो निर्भीक और बलशाली योद्धा था, युद्ध क्रीड़ा करते हुए शत्रुओं के मुख खंडन करने लगा। एक और समूचे जम्बू द्वीप की सेना थी और दूसरी ओर केवल खुमाण पदधारी राणा उदयसिंह, परन्तु उसने अपने खड्ग के गौरव को गिरने नहीं दिया”

* अंग्रेज इतिहासकार फ्रेडरिक महाराणा उदयसिंह के लिए लिखता है “समस्त राजपूत राजाओं में मेवाड़ का राणा उदयसिंह सबसे शक्तिशाली और सबसे अधिक ख्याति प्राप्त था। उसका कुल यह अभिमान करता था कि उसने कभी मुसलमानों से सम्बन्ध स्थापित करके अपने रक्त को अपवित्र नहीं किया है, बल्कि उनके प्रति सदा उत्तेजक विरोध बनाए रखा है”

* निजामुद्दीन अहमद बख्शी (अकबर का दरबारी लेखक) तबकात-ए-अकबरी में लिखता है “तकरीबन हिन्दुस्तान के सारे राजा-महाराजाओं ने बादशाही मातहती कुबूल कर ली थी, पर मेवाड़ का राणा उदयसिंह मजबूत किलों और ज्यादा फौज से मगरुर होकर सरकशी (बगावत) करता था”

महाराणा उदयसिंह

“लेखक का निजी मत”

निष्कर्ष रुप में यह कहा जा सकता है कि महाराणा उदयसिंह न तो बहादुरी में पीछे थे और न अक्लमन्दी में।बनवीर, शम्स खां, हाजी खां, राव मालदेव, मुगलों से लड़ाईयां लड़कर महाराणा उदयसिंह ने बहादुरी का परिचय दिया।

युद्ध के समय चित्तौड़ के आसपास फसलों की बर्बादी करना, उदयपुर नगर की स्थापना करने जैसे कईं काम महाराणा ने ऐसी अक्लमंदी से किए, जो भविष्य में काफी मददगार साबित हुए। अकबर के शत्रुओं जयमल राठौड़, बाज बहादुर, रामशाह तोमर व शालिवाहन तोमर, पचायण के राव मालदेव, बंगाल के पठानों को अपने यहां शरण देकर महाराणा उदयसिंह ने हिम्मत और दरियादिली दिखाई।

एक समय था जब महाराणा उदयसिंह के पास मेवाड़ तो दूर की बात, सर छुपाने के लिए छत भी कुम्भलगढ़ में नसीब हुई और वहां से महाराणा उदयसिंह ने सम्पूर्ण मेवाड़ पर ही नहीं, आसपास के सिरोही, अजमेर जैसे नगरों पर भी अपना वर्चस्व जमाया।

* अगले भाग में महाराणा उदयसिंह जी की संक्षिप्त जीवनी लिखी जाएगी। अगला भाग महाराणा उदयसिंह जी के इतिहास का अंतिम भाग होगा।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

error: Content is protected !!