मेवाड़ महाराणा उदयसिंह (भाग – 20)

23 फरवरी, 1568 ई. – “अकबर द्वारा जयमल राठौड़ को गोली मारना”

23 फरवरी की रात्रि को जयमल राठौड़ दुर्ग की मरम्मत करवा रहे थे, तभी अकबर की नजर उन पर पड़ी। अकबर ने जयमल राठौड़ के हज़ारमेखी सिलह (एक प्रकार के जिरहबख्तर) को देखकर अंदाजा लगाया कि ये कोई विशेष व्यक्ति होगा और उसने बिना समय गंवाए चित्तौड़ी बुर्ज से अपनी संग्राम नामक बन्दूक से जयमल राठौड़ पर निशाना साधा। गोली जयमल राठौड़ के पैर में लगी और वे बुरी तरह जख्मी हो गए। राजपूत लोग जयमल राठौड़ को महलों में ले गए।

अकबर ने आमेर के राजा भगवानदास और शुजाअत खां से कहा कि “ये गोली जरुर उस आदमी को लगी है, क्योंकि जब मेरी बन्दूक की गोली शिकार पर लगती है, तो मुझे मालूम पड़ जाता है”। अकबर के सिपहसालारों ने कहा कि “हुजूर ये आदमी यहां बहुत बार आया है और अब अगर ना आए, तो समझ लेना चाहिए कि जरुर मारा गया होगा”

थोड़ी देर बाद अकबर के पास ख़बर आई कि चित्तौड़ी बुर्ज़ पर कोई व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा है। इसलिए अकबर ने मान लिया कि जयमल राठौड़ मारे जा चुके हैं।जयमल राठौड़ के पैर में गोली लगने से चित्तौड़ी बुर्ज़ की रक्षा में ढीलापन आया। किले में रसद (खाने-पीने का सामान) अभी भी थी, लेकिन राजपूतों ने विचार किया कि अब ये दुर्ग मुगलों द्वारा अवश्य ही जीता जाएगा, क्योंकि इनकी तोपों के गोले रुक नहीं रहे हैं। किले में रहकर खुलकर लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है, इस ख़ातिर अब आमने-सामने की लड़ाई लड़कर मुगलों का जितना हो सके उतना नुकसान करना चाहिए।

(मुगल लेखकों ने लिखा है कि “अकबर की बंदूक की गोली से जयमल राठौड़ की मौत हो गई थी”। निश्चित ही मुगल लेखकों ने पक्षपात किया है, क्योंकि राजपूताने की कई ख्यातों और ग्रंथों में जयमल जी के पैर में गोली लगने व बाद में कल्लाजी के कंधों पर बैठकर वीरगति प्राप्त करने का स्पष्ट उल्लेख है। सबसे बड़ा प्रमाण तो हनुमानपोल व भैरवपोल के मध्य में स्थित जयमल जी की छतरी है, जो उसी स्थान पर बनवाई गई थी, जहां जयमल जी वीरगति को प्राप्त हुए थे। यदि जयमल जी बिना लड़े ही अकबर की बंदूक की गोली से मारे जाते, तो फ़तहनामा-ए-चित्तौड़ में अकबर जयमल जी की तुलना एक हज़ार घुड़सवारों से नहीं करता और ना ही जयमल जी की मूर्ति आगरा में बनवाता)

23-24 फरवरी, 1568 ई. “चित्तौड़ का तीसरा जौहर”

“नारी जद जौहर करे, नर देवण सिर होड़। मरणो अठे मसखरी, यो मेवाड़ी चित्तौड़।।” अर्थात जहां नारियां जौहर करती हैं, जहां नरों में अपने सिर देने की होड़ लगी रहती है, मरना तो जैसे एक मज़ाक के समान हो, वह चित्तौड़ की धरा है।

जौहर :- राजपूताने में कई जौहर हुए हैं, जिनमें सबसे बड़े व सर्वाधिक जौहर के लिए चित्तौड़गढ़ प्रसिद्ध है। राजपूताने का जब कोई दुर्ग बाहरी आक्रान्ताओं द्वारा घेर लिया जाता और विजय की कोई संभावना शेष नहीं रह जाती थी, तब राजपूत स्त्रियां विवाह का जोड़ा पहनकर अग्नि में प्रवेश कर जाती थीं, ताकि शत्रुओं की कुदृष्टि उन पर न पड़े व सतीत्व की रक्षा की जा सके। चित्तौड़गढ़ का पहला जौहर 1303 ई. में रानी पद्मिनी के नेतृत्व में हुआ था, जब अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया था। चित्तौड़गढ़ का दूसरा जौहर 1534 ई. में महारानी कर्णावती के नेतृत्व में हुआ था, जब गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने आक्रमण किया था।

अर्द्धरात्रि को चित्तौड़ का तीसरा जौहर हुआ, जिसका नेतृत्व रावत पत्ता चुण्डावत की पत्नी फूल कंवर ने किया।ये जौहर दुर्ग में 3 अलग-अलग स्थानों पर हुआ :- 1) रावत पत्ता चुण्डावत के महल में 2) रावत साहिब खान के महल में 3) ईसरदास के महल में

रावत पत्ता चुंडावत का महल

अबुल फजल लिखता है “हमारी फौज 2 दिन से भूखी-प्यासी होने के बावजूद सुरंगों को तैयार करने में लगी रही। रात को अचानक किले से धुंआ उठता नजर आया। सभी सिपहसालार अंदाजा लगाने लगे कि अंदर क्या हुआ होगा, तभी आमेर के भगवानदास ने शहंशाह को बताया कि किले में जो आग जल रही है, वो जौहर की आग है और राजपूत लोग केसरिया के लिए तैयार हैं, सो हमको भी तैयार हो जाना चाहिए”

अबुल फजल ने 3 स्थानों में से सबसे बड़ा जौहर ईसरदास के महल में होना लिखा है, जहां अबुल फजल ने जौहर करने वाली वीरांगनाओं की संख्या 300 बताई है। रावत पत्ता चुण्डावत की माता सज्जन कंवर, 9 पत्नियों, 5 पुत्रियों व 2 छोटे पुत्रों ने जौहर किया। कुछ इतिहासकार रावत पत्ता चुण्डावत की माता सज्जन कंवर व पहली पत्नी जीवा बाई सोलंकिनी के युद्ध में लड़ते हुए वीरगति पाने का उल्लेख करते हैं, जो कि सही नहीं है।

“दुर्ग में जौहर करने वाली कुछ प्रमुख राजपूत वीरांगनाएं” :- * रानी फूल कंवर :- इन्होंने चित्तौड़ के तीसरे जौहर का नेतृत्व किया। ये रावत पत्ता चुण्डावत की पत्नी थीं। * सज्जन बाई सोनगरी :- (रावत पत्ता चुण्डावत की माता) * रानी मदालसा बाई कछवाही (सहसमल की पुत्री) * जीवा बाई सोलंकिनी (सामन्तसी की पुत्री व रावत पत्ता चुण्डावत की पत्नी) * रानी सारदा बाई राठौड़ * रानी भगवती बाई (ईसरदास जी की पुत्री) * रानी पद्मावती बाई झाली * रानी बगदी बाई चौहान * रानी रतन बाई राठौड़ * रानी बलेसा बाई चौहान * रानी बागड़ेची आशा बाई (प्रभार डूंगरसी की पुत्री)

* चित्तौड़ के तीसरे जौहर के प्रमाण स्वरुप भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने समिद्धेश्वर मन्दिर के पास सफाई करवाई तो राख और हड्डियां बड़ी मात्रा में मिलीं

* अगले भाग में चित्तौड़ के तीसरे शाके में वीरगति को प्राप्त होने वाले योद्धाओं का विस्तृत वर्णन लिखा जाएगा

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

error: Content is protected !!