मेवाड़ महाराणा उदयसिंह (भाग – 14)

1566 ई.

जेम्स विन्सेट अपनी किताब ‘दी ग्रेट मुगल अकबर’ में लिखता है “अकबर ने चित्तौड़ पर अपनी थोड़ी-बहोत सेना भेजी, पर राणा उदयसिंह की एक पासवान रानी ने अचानक मुगल फौज पर हमला कर दिया, जिससे मुगल फौज के पाँव उखड़ गए”

(जेम्स विंसेंट द्वारा लिखी इस बात का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, इसलिए यह घटना असत्य मालूम पड़ती है)

1567 ई.

“अकबर की चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर चढ़ाई के कारण”

* महाराणा उदयसिंह ने अकबर के शत्रुओं को अपने यहां शरण दी। महाराणा ने मेड़ता के जयमल राठौड़, मालवा के बाज बहादुर, ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर और शालिवाहन तोमर को शरण देकर अकबर को खुली चुनौती दी। महाराणा यहीं नहीं रुके। उन्होंने बिहार के अफगानों को भी अपने यहां शरण दी।

लंदन से 1677 ई. में प्रकाशित एक पुस्तक का वर्णन प्रोफेसर रामचंद्र तिवारी ने लिखा। उस पुस्तक के अनुसार :- “मेवाड़ के राणा उदयसिंह ने अपने सैनिकों को मुगल राज्य पर छुटपुट हमले करने के लिए उत्साहित किया। राणा उदयसिंह ने मुगल दरबार से भागे हुए लोगों को न केवल शरण दी, बल्कि उन लोगों को अकबर के विरुद्ध लड़ने के लिए मेवाड़ की फ़ौज में भर्ती भी किया। बिहार के कुछ अफगान भी मेवाड़ आए, जिनको राणा उदयसिंह ने अपनी फ़ौज में भर्ती कर लिया। ये अफगान अच्छे बंदूकची और तोपची थे। इस प्रकार मेवाड़ मुगलों के विरुद्ध कार्यवाही का एक प्रमुख केंद्र बन गया”

* अंग्रेज इतिहासकार फ्रेडरिक लिखता है :- “आधा अधूरा काम करने की अकबर की आदत नहीं थी। विद्रोह का केंद्र बन चुके मेवाड़ को जीतना उसके लिए आवश्यक हो गया था। अकबर ने विचार किया कि मेवाड़ के गर्वीले (घमंडी) राणा के पैतृक दुर्ग (चित्तौड़गढ़) में प्रवेश करके राणा को नीचा दिखाया जाए”

महाराणा उदयसिंह

* इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा लिखते हैं :- “श्रद्धा और शक्ति की दृष्टि से अधिकांश राजस्थानी नरेश मेवाड़ का नेतृत्व स्वीकार करते थे। मुगल बादशाह अकबर ने विचार किया कि यदि चित्तौड़गढ़ दुर्ग जीत लिया जाए, तो बचे हुए राजस्थानी राज्यों पर प्रभाव स्थापित करना आसान रहेगा”

* ग्रंथ राणा रासो के अनुसार अकबर अपने मंत्री से कहता है कि “घर के दरवाज़े के पास सामने वाले कुंए में सांप, आंगन में मुंह फाड़े हुए सिंह और पहनने के कपड़ों में लगी फांस की तरह मेवाड़ का राणा मुझे चुभने लगा है”

(अकबर के चित्तौड़ अभियान के दौरान जो तैयारियां अकबर ने की उनका विवरण मैंने फ़ारसी तवारीखों से ही लिखा है। जो तैयारियां मेवाड़ वालों ने की, उनका वर्णन मेवाड़ के इतिहास की पुस्तकों से लिखा है)

1567 ई.

“अकबर का राजधानी से प्रस्थान”

* अकबर का दरबारी लेखक अबुल फजल अकबरनामा में लिखता है :-

“शहंशाह की गद्दीनशीनी के बाद हिन्दुस्तान के जिन शासकों ने घमण्ड से अपने सर उठा रखे थे और जिन्होंने कभी किसी सुल्तान के आगे सर नहीं झुकाया, वे सब बादशाही दरबार की चौखट चूम चुके थे, पर राणा उदयसिंह ने ऐसा नहीं किया। हिन्दुस्तान भर में उससे ज्यादा घमण्डी कोई दूसरा नहीं था। वह जिद्दी और काफी बहादुर था। बादशाही हुकूमत से बर्खिलाफी उसे अपने बाप-दादों से विरासत में मिली। राणा उदयसिंह ने बुलन्द पहाड़ों और मजबूत किलों पर घमण्ड करते हुए सबसे बड़ी बादशाही हुकूमत से मुंह मोड़ रखा था। उसका दिमाग शैतानी खयालों से भरा रहता था। वह अपने जमीन-जायदाद और बहादुर राजपूत फौज से मगरुर होकर रास्ते से भटक गया था। शहंशाह ने उसे रास्ते पर लाने के लिए चित्तौड़ फ़तह करने का इरादा किया। इस तरह के मामलों में जल्दबाज़ी से काम नहीं चलता। बहुत एहतियात और ढंग से काम करने की जरूरत पड़ती है। चित्तौड़ के किले को उस पहाड़ी ने मज़बूती दे रखी है, जिस पर यह किला बना है। इसके अलावा चित्तौड़ के किले की किलेबंदी, किले में मौजूद रसद और फ़ौजी तादाद ने भी इस किले को मज़बूती दे रखी है। यह किला राणा की ताकत की नींव है और यही उसके मुल्क (मेवाड़) का सबसे अहम हिस्सा है। बड़े पहाड़ पर खड़ा यह किला ऐसा लगता है जैसे इस किले ने चौथे आसमान तक अपना सिर उठा रखा हो। ख़्वाबों का परिंदा तक चित्तौड़ के किले पर नहीं पहुंच सकता। किसी को भी इस किले की ख़ासियत नहीं मालूम है। शहंशाह के रुतबे का यह तकाज़ा (मांग) था कि राणा को रास्ते पर लाने वे लिए वह स्वयं चित्तौड़ जाए, इस ख़ातिर शहंशाह ने चित्तौड़ की तरफ़ कूच किया”

अकबर

* अकबर का दरबारी लेखक अब्दुल क़ादिर बंदायूनी मुन्तख़ब उत तवारीख में लिखता है

“मेवाड़ का राणा उदयसिंह न सिर्फ अपनी आज़ादी थामे हुए था, बल्कि पड़ौसी मुल्कों को भी आज़ाद होने को उकसाता रहता था, इसीलिए उस पर बादशाह ने चढ़ाई की”

* अंग्रेज इतिहासकार स्मिथ लिखता है :- “समस्त उत्तरी भारत का एकछत्र स्वामी बन जाने का संकल्प रखने वाला अकबर ऐसे शासक की स्वतंत्रता कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता था, जो (राणा) दुर्गम पहाड़ और सुदृढ़ दुर्ग होने के कारण अभिमानी था। जिस (राणा) ने अकबर के आदेशों की पालना करने से मुंह मोड़ लिया था”

अगस्त, 1567 ई.

“शिकार के बहाने अकबर का धौलपुर पहुंचना”

अबुल फ़ज़ल लिखता है :- “शहंशाह शिकार के बहाने राजधानी से रवाना हुए थे, लेकिन मक़सद चित्तौड़ फ़तह था। बड़े-बड़े अमीर, सिपहसलार, फ़ौजी आदमी धीरे-धीरे शाही खेमे की तरफ़ आने लगे। हालांकि शाही फ़ौज शुरुआत में कम रखी गई थी और मालूम था कि बहुत जल्द शाही फ़ौज की तादाद बढ़ जाएगी। शहंशाह यही चाहते कि राणा उदयसिंह तक ख़बर जाएगी कि शाही फ़ौज की तादाद कम है, तो वह किले से बाहर निकलकर लड़ने आ जाएगा, जिससे आसानी से उस (राणा) का ख़ात्मा किया जा सकेगा”

आशय यह है कि अकबर चित्तौड़ पर हमला करने के लिए निकला, तब वह आगरा से शिकार के बहाने निकला था। वह ऊपर-ऊपर से यह जताना चाहता था कि चित्तौड़ जीतना उसके लिए कोई बड़ा काम नहीं है, पर वह मन ही मन जानता था कि चित्तौड़ फतह करना बड़ा मुश्किल है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का भीतरी दृश्य

* अगले भाग में अकबर व कुँवर शक्तिसिंह की मुलाकात, अकबर का माण्डलगढ़ पर हमला, अकबर के चित्तौड़गढ़ पहुंचने के बारे में लिखा जाएगा

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

2 Comments

  1. हार्दिक शर्मा
    December 17, 2020 / 2:55 pm

    जय महाराणा उदयसिंह जी 🙏

  2. रुद्र प्रताप सिंह
    December 17, 2020 / 3:25 pm

    जय महाराणा ।

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