1559 ई.
“उदयसागर झील का निर्माण”
महाराणा उदयसिंह ने जिस वर्ष उदयपुर की स्थापना की, उसी वर्ष एक झील बनवाने का भी आदेश दिया
ग्रंथ राणा रासो में लिखा है कि “महाराणा उदयसिंह ने नदी को चारों ओर से बांधकर एक सुंदर सरोवर (उदयसागर) बनवाया, जिसने मानसरोवर झील का मान घटा दिया। यह सरोवर मछलियां, कछुए, सारस, बत्तख, हंस आदि का विश्रामगृह बन गया था”
मुहणौत नैणसी लिखते हैं :- “उदयसागर तालाब 10 कोस के घेरे में है। इस तालाब की पाल 500 गज लंबी है। यह पाल 250 गज ऊंची है, जिसमें से 70 गज पानी के भीतर पक्की बनी हुई है।”
उदयसागर झील को बनने में 5 वर्ष लगे। 4 अप्रैल, 1565 ई. को उदयसागर झील की प्रतिष्ठा महोत्सव में महाराणा उदयसिंह अपनी रानियों समेत उदयसागर झील पर पहुंचे।
महाराणा ने अपने हाथों से उदयसागर झील की प्रतिष्ठा की। प्रतिष्ठा के बाद तुला आदि दान किए गए।
प्रतिष्ठा लक्ष्मीनाथ के छोटे भाई छीतू भट्ट ने करवाई, जिसे महाराणा उदयसिंह ने उसी समय भूरवाड़ा गांव प्रदान किया।
महाराणा उदयसिंह ने पालकी में बैठकर रानियों सहित इस झील की परिक्रमा की।
राजप्रशस्ति के अनुसार :- “महाराणा उदयसिंह ने उदयसागर तालाब बनवाने से पहले एक अन्य तालाब बनवाने का प्रयास किया था, लेकिन यह तालाब बन नहीं पाया। फिर महाराणा अमरसिंह ने भी प्रयास किया, परंतु फिर भी यह तालाब नहीं बन पाया। आखिर में महाराणा राजसिंह ने उस स्थान पर तालाब बनवाया और उसका नाम राजसमन्द रखा”
“पीछोला का जीर्णोद्धार”
इन्हीं दिनों महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर में पीछोला झील की पाल का जीर्णोद्धार करवाया।
यह झील महाराणा लाखा के समय एक बनजारे ने बनवाई थी।
1559 ई.
“महाराणा उदयसिंह द्वारा बैरम खां को सहायता देने से इनकार”
जिन दिनों महाराणा उदयसिंह मेवाड़ को मज़बूती प्रदान कर रहे थे, उन्हीं दिनों अकबर सर्वोच्च सत्ता प्राप्त करने में लगा हुआ था। अकबर बैरम खां से छुटकारा पाना चाहता था। बैरम खां अकबर का संरक्षक, गुरु व पिता समान था। बैरम खां ने ही पानीपत की लड़ाई जीतकर अकबर को मुगल बादशाह की गद्दी दिलाई थी, इसीलिए बैरम खां को ‘मुगल सल्तनत की नींव’ कहा जाता है। अकबर व बैरम खां में मनमुटाव हुआ और आखिरकार बात युद्ध तक पहुंची।
बैरम खां ने बीकानेर नरेश कल्याणमल राठौड़ और मारवाड़ नरेश राव मालदेव राठौड़ से सहायता मांगी पर इन्होंने सहायता देने से इनकार कर दिया।
फिर बैरम खां ने महाराणा उदयसिंह से सहायता मांगी और दूत भेजकर कहलवाया कि “आप मुझको शरण दो, तो मैं आपके पास आऊं”
महाराणा उदयसिंह शरणागत रक्षा का धर्म भलीभांति जानते थे, परंतु वे ये भी जानते थे कि बैरम खां का पद इतना बड़ा है, कि यदि उसे शरण दी गई, तो अकबर इसी समय मेवाड़ पर आक्रमण कर देगा और मेवाड़ इस समय ऐसे बड़े आक्रमण का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हुआ है। इसलिए महाराणा ने दूत के ज़रिए बैरम खां से कहलवाया कि “तुम अकबर के बड़े उमराव हो, इसलिए हम तुम्हें अपनी शरण में नहीं रख सकते”
1560 ई. में तिलवाड़ा का युद्ध हुआ, जिसमें अकबर ने फौज भेजकर बैरम खां को पराजित किया
1561 ई. में अकबर ने बैरम खां को हज की यात्रा के लिए भेज दिया, जहां रास्ते में अफगान मुबारक खां ने बैरम खां का कत्ल कर दिया
(‘महाराणा प्रताप धारावाहिक’ में दिखाया गया है कि कुँवर प्रताप बैरम खां की मदद ख़ातिर जाते हैं, लेकिन वास्तविकता ये है कि बैरम खां की मदद ख़ातिर मेवाड़ से कोई नहीं गया था)
बैरम खां की मृत्यु के बाद अकबर ने बैरम खां की बेगम सलीमा सुल्तान से निकाह कर लिया
1559 ई.
“ग्वालियर नरेश को चित्तौड़ में शरण देना”
अकबर ने ग्वालियर पर हमला किया और फ़तह हासिल की
ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर व उनके पुत्र शालिवाहन तोमर चित्तौड़ आए, जहां महाराणा उदयसिंह ने उनको शरण दी
महाराणा उदयसिंह ने रामशाह तोमर को वारांदसीर की जागीर दी और अपनी पुत्री का विवाह रामशाह तोमर के पुत्र शालिवाहन तोमर से कर दिया
ग्वालियर नरेश को शरण देना मुगल बादशाह अकबर को मेवाड़ की तरफ़ से पहली चुनौती थी
1560 ई.
“अकबर का रणथंभौर पर हमला”
अकबर ने रणथम्भौर दुर्ग पर सेना भेजी। महाराणा उदयसिंह द्वारा नियुक्त राव सुर्जन हाडा ने दुर्ग पर कब्जा बनाए रखा। अकबर ने बिना सफलता के अपनी फौज वापस बुला ली।
“मेवा सांखला को जागीर देना”
1540 ई. में महाराणा उदयसिंह ने मेवा सांखला के ज़रिए मल्ला सोलंकी को ताणा में मरवाया था। महाराणा ने मेवा सांखला को 84 गांवों समेत नारोका व ताणा की जागीर दे दी।
“अकबर की गागरोन विजय”
अकबर ने गागरोन दुर्ग पर चढाई कर किला घेर लिया, तो गागरोन के राजा ने बिना लड़े ही दुर्ग की चाबियाँ अकबर को सौंप दीं
इस तरह अकबर ने अजमेर, मेवात, नागौर, जैतारण, गागरोन जीतकर राजपूताने में अपनी जड़ें जमा लीं
* अगले भाग में सिरोही के बखेड़े, महाराणा उदयसिंह द्वारा सिरोही महाराव मानसिंह की रियासत के गांव ज़ब्त करने, बाज बहादुर और जयमल राठौड़ को मेवाड़ में शरण देने के बारे में लिखा जाएगा
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
इतिहास की बेहतरीन व्याख्या
जय महाराणा उदयसिंह जी
जय मेवाड़
Jay rajputana 🚩 Jay shree ram
जै हो सनातन धर्म के रक्षक जै हो🚩🚩🚩🚩🙏🚩🚩🚩🚩
आभार