1559 ई.
“महाराणा उदयसिंह द्वारा उदयपुर की स्थापना का निर्णय लेना”
16 मार्च 1559 ई. को मचीन्द गांव (वर्तमान राजसमन्द जिले में स्थित) में महाराजकुमार प्रतापसिंह व कुंवरानी अजबदे बाई के पुत्र भंवर अमरसिंह का जन्म हुआ
महाराणा उदयसिंह अपने पौत्र के जन्म की खुशी में एकलिंग जी के दर्शन करने कैलाशपुरी पधारे
महाराणा उदयसिंह कैलाशपुरी से लौटते वक्त आहड़ के पास आखेट हेतु पधारे, जहां उनकी नज़र बेड़च नदी और विस्तृत पर्वतमाला पर पड़ी। महाराणा ने अपने मंत्री को आदेश दिया कि इन पहाड़ी नाकों को बांधकर एक बांध का निर्माण किया जाए।
महाराणा उदयसिंह ने अपने सामंतों से विचार विमर्श किया और कहा कि “चित्तौड़ का किला काफ़ी मज़बूत है लेकिन ये एक ही पहाड़ी पर बना हुआ है, इसलिए अगर इस किले को एक बार घेर लिया जाए, तो वीरगति ही एकमात्र उपाय शेष रह जाता है। अलाउद्दीन खिलजी और बहादुरशाह के हमलों में ऐसा हो भी चुका है। यदि हम बेड़च किनारे अपनी राजधानी बनाएं, तो न कभी रसद की कमी होगी और ना ही शत्रु हमें कभी घेर पाएंगे। हमें पहाड़ी लड़ाई लड़ने का मौका मिलेगा”
सभी सामंतों ने महाराणा उदयसिंह के इस विचार की काफी सराहना की
महाराणा उदयसिंह ने एक छोटी पहाड़ी पर महल बनवाना शुरू किया। लेकिन ये महल आधे ही बने थे कि तभी ऐसी घटना घटी कि महाराणा को निर्माण कार्य रुकवाना पड़ा।
(वर्तमान में ये अधूरा महल ‘मोती महल’ के नाम से जाना जाता है, जो फतहसागर झील किनारे एक पहाड़ी पर स्थित है। इस महल के कारण इस पहाड़ी का नाम भी ‘मोती मगरी’ पड़ गया)
महाराणा उदयसिंह एक दिन शिकार करने निकले, तो पीछोला झील किनारे एक योगी पर नज़र पड़ी।
(पीछोला झील महाराणा लाखा के समय एक बनजारे ने बनवाई थी)
महाराणा घोड़े से उतरे और योगी को प्रणाम किया। इन योगी का नाम योगी प्रेमगिरि था। इनके बारे में प्रसिद्धि थी कि इनकी कही हुई हर बात सच होती है।
योगी प्रेमगिरि ने महाराणा उदयसिंह से कहा कि “तुम यहाँ नगर बसाकर इसे अपनी राजधानी बनाओ, तो ये वंश और ये नगर कभी तुम्हारे और तुम्हारे वंशजों के हाथों से नहीं जाएगा”
महाराणा उदयसिंह ने योगी की सलाह मानकर मोती महल का काम रुकवा दिया और पीछोला किनारे जहां योगी बैठे थे, वहीं नींव का एक पत्थर रखा और मंत्रियों को हुक्म दिया कि यहां भव्य महल बनवाया जावे
अगले दिन महाराणा उदयसिंह जब वहां पहुंचे, तो उन्हें योगी प्रेमगिरी नजर नहीं आए।
“उदयपुर सिटी पैलेस के वे हिस्से जो महाराणा उदयसिंह द्वारा बनवाए गए”
* नौचोक्या महल :- धूनी (जहां योगी प्रेमगिरि बैठते थे) की जगह एक महल बनवाया गया, जहां चारों तरफ तीन-तीन दालान होने के कारण उसका नाम नौचोक्या रखा गया। महाराणा उदयसिंह ने आदेश दिया कि आगे से मेवाड़ के महाराणाओं का राजतिलक यहीं किया जावे। नौचोक्या महल मुख्य रूप से रानियों के रहने हेतु बनवाया गया।
* नेका की चौपाड़ :- महाराणा ने नौचोक्या महल के सामने एक और महल बनवाया, जिसे आज ‘नेका की चौपाड़’ या ‘पांडे की ओवरी’ कहते हैं। ये महल भी रानियों के रहने हेतु बनवाया गया। बाद में इस महल का निचला हिस्सा ‘मर्दाना महल’ कहा जाने लगा।
* मर्दाना महल :- नेका की चौपाड़ महल के निचले हिस्से में कुछ बदलाव करके इसे पुरुषों के रहने के लिए तैयार किया गया। नेका की चौपाड़ महल का निचला हिस्सा ‘मर्दाना महल’ कहा जाने लगा।
* राज आंगन :- नौचोक्या और नेका की चौपाड़ के बीच में पत्थरों का एक चौक बनवाया गया, जिसे राज आंगन कहा गया। ये रानियों के लिए बनवाया गया।
* जनाना रावला :- महाराणा उदयसिंह ने यहां एक जनाना रावला भी बनवाया, जहां वर्तमान में कोठार है।
* पाणेरा की नौचौकियाँ
* सिलहखाना
* कोठार का मकान
“उदैपुर और उदैसर थाप।
तहां प्रसरयो निज वंश प्रताप।।”
अर्थात
महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर नगर बसाया और उदयसागर झील बनवाई, जहां इस प्रतापी वंश ने अपना प्रताप फैलाया।
“ग्रंथ राणा रासो में महाराणा उदयसिंह द्वारा उदयपुर बसाने का वर्णन”
उदयपुर बसाने के कुछ वर्ष बाद लिखे गए ग्रंथ राणा रासो में यह वर्णन काव्यात्मक रूप से लिखित है, जिसका कुछ उपयोगी वर्णन इस तरह है :-
“महाराणा उदयसिंह ने एक नगर बसाया जिसका नाम उदयपुर रखा। उसमें चारों ओर सुंदर चौक बनवाए। दुकानें बनवाईं। सेना के रहने का सुंदर स्थान बनवाया। राजप्रासाद (राजा के महल) और अन्तःपुर (रानियों के महल) बनवाए। ये राजप्रासाद भगवान विष्णु के महलों के समान थे। एक विशाल सभा भवन बनवाया गया। विशेष अवसरों पर यहां भीड़ इतनी ज्यादा होती थी, मानो पूरा संसार एक जगह एकत्र हो गया हो। महाराणा उदयसिंह से जो कोई दरिद्र व्यक्ति एक बार भिक्षा मांग लेता, उसे अपने जीवन में दोबारा भिक्षा मांगने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। महाराणा उदयसिंह अक्सर स्वर्णदान किया करते थे”
उदयपुर बसाने के करीब 100 वर्ष बाद मुहणौत नैणसी लिखते हैं :- “राणा उदयसिंह ने गिरवा की पहाड़ियों में अपने नाम से उदयपुर नगर बसाया। नगर के निकट ही ‘माछला’ नाम की एक पहाड़ी है, जिसके उत्तर की तरफ 2 कोस के घेरे में यह नगर बसा है। दीवाण (महाराणा) के महल पीछोला की पाल पर हैं। पश्चिम में तालाब के निकट ही नगर है, जिसके एक तरफ माछला और दूसरी तरफ सीसारमा की पहाड़ियां हैं। उदयपुर नगर में 20 शैव मंदिर और 15 जैन मंदिर हैं। यहां करीब 20,000 घर हैं, जिनमें से 2000 घर ओसवाल, महेसरी, हूमड़, चित्तौड़ा, नागदा और नरसिंहपुरा महाजनों के हैं। 1500 घर ब्राम्हणों के, 500 घर पंचोली, भटनागर आदि के, 60 घर भोजकों के, 500 घर भीलों के, 1500 घर राजपूतों के, 5000 घर महल वाले लोगों के व 8000 घर अन्य जातियों के हैं”
* अगले भाग में महाराणा उदयसिंह द्वारा उदयसागर झील के निर्माण, महाराणा द्वारा बैरम खां को शरण देने से इनकार, महाराणा द्वारा ग्वालियर नरेश को शरण देने के बारे में लिखा जाएगा
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
Nice post
history padho
उदयपुर स्थापना का प्रमाणित वर्णन।
मतलब मोती महल का किस्सा योगी जी से मिलने से पहले ही हो गया था
Author
जी
महाराणा प्रताप सिंह की जीवनियों की चित्रकारी श्री अमरसिंह भाटी ने किया जो कि मेरे काकोसा थे
Very informative
ऐतिहासिक सिरीज़ तो ठीक चल रही है, उसके लिए साधुवाद! भंवर अमर सिंह का जन्म मचिंद में हुआ?संदर्भ से अवगत कराने का कष्ट करें। प्रताप सिंह झाला, तलावदा।
Author
आभार हुकम।
पुस्तक :- महाराणा प्रताप से संबंधित स्रोत एवं स्थान (महाराणा प्रताप स्मारक समिति उदयपुर)