“कुँवर प्रताप को तलहटी में भेजना” :- महाराजकुमार प्रतापसिंह को महाराणा उदयसिंह ने तलहटी में रहने भेजा। (इस घटना का विस्तृत हाल महाराणा प्रताप के भाग में लिखा जाएगा)
“कुँवर शक्तिसिंह को दरबार से बाहर निकालना” :- एक दिन महाराणा उदयसिंह दरबार लगाए बैठे थे कि तभी तलवार बेचने वाला आया। महाराणा ने तलवार की धार देखने के लिए एक महीन कपड़ा तलवार पर फेंका जिससे कपड़े के दो टुकड़े हो गए।
कुंवर शक्तिसिंह तलवार की धार देखने के लिए अपना ही अंगूठा चीर कर बोले “वाकई, तलवार में धार है“। राजमर्यादा तोड़ने पर महाराणा उदयसिंह ने क्रोधित होकर कुंवर शक्तिसिंह को दरबार से बाहर निकाल दिया।
इस बात से कुंवर शक्तिसिंह जीवनभर महाराणा से नाराज रहे। कुंवर शक्तिसिंह को सत्ता का कोई लोभ नहीं था, उनकी नाराजगी केवल महाराणा उदयसिंह से थी। कुंवर शक्तिसिंह के वंशज ‘शक्तावत’ कहलाए।
1552-53 ई. – “महाराणा उदयसिंह द्वारा जैसलमेर की सहायता करना” :- 1550 ई. में जैसलमेर पर कंधार के अमीर अली ने फ़ौज समेत हमला कर दिया, जिससे जैसलमेर के कई वीर वीरगति को प्राप्त हुए।
इस घटना के अगले ही वर्ष जैसलमेर महारावल लूणकरण भाटी का देहांत हो गया। लूणकरण भाटी के पुत्र मालदेव जैसलमेर की गद्दी पर बैठे, तब भी अफगानों द्वारा छुटपुट हमले किए जाते थे।
महारावल मालदेव भाटी ने महाराणा उदयसिंह के पास अपनी बहन के लिए विवाह का प्रस्ताव भेजा। महाराणा उदयसिंह ने ये प्रस्ताव स्वीकार किया और जैसलमेर की तरफ पधारे। मार्ग में कई जगह पड़ाव हुआ।
महाराणा उदयसिंह और रानी धीरबाई भटियाणी का विवाह संपन्न हुआ, तब महारावल मालदेव ने अपनी समस्या महाराणा को बताई।
महाराणा उदयसिंह ने जैसलमेर में अफगानों की इन फ़ौजी टुकड़ियों को परास्त करने में महारावल मालदेव की भरपूर सहायता की। तब एक कवि ने ये दोहा लिखा :-
“तो आंगमण नमो सांगातण, रढ़ रावण मेवाड़ा राण। पमगां अणी दुरग पींजरिया, खत्रवट तो खड़तां खुमाण।।” अर्थात हे सांगा के पुत्र, तुम्हारे पराक्रम को नमस्कार है।
हे रावण के समान हठ करने वाले खुमाणवंशी मेदपाटेश्वर, तूने क्षत्रिय मार्ग पर चलकर अपने घोड़ों की सेना से जैसलमेर के शत्रुओं के गढ़ों को क़ैद कर लिया है।
1553 ई. – “भारमल कावड़िया का मेवाड़ आगमन” :- महाराणा उदयसिंह ने भारमल कावड़िया को अलवर से मेवाड़ बुला लिया। भारमल कावड़िया अपने पुत्र भामाशाह के साथ मेवाड़ आए, जहां महाराणा उदयसिंह ने उनको 1 लाख की आमदनी वाली जागीर दी।
1554 ई. – “जगमाल का जन्म” :- इस वर्ष महाराणा उदयसिंह व रानी धीरबाई भटियाणी के पुत्र जगमाल का जन्म हुआ।
1554 ई. – “बूंदी के राव सुल्तान हाड़ा को पद से बर्खास्त करके राव सुर्जन को बूंदी का शासक बनाना” :- महाराणा उदयसिंह के मामा बूंदी के अर्जुन हाडा (चित्तौड़ के दूसरे शाके में वीरगति पाने वाले) के पुत्र सुर्जन हाडा महाराणा की तरफ से लड़ते हुए जगनेर नामक स्थान पर घायल हुए।
तो महाराणा ने सुर्जन हाडा को 12 गाँवों समेत फूलिये का परगना जागीर में दिया। कुछ समय बाद महाराणा उदयसिंह ने किसी कारणवश राव सुर्जन हाड़ा से फूलिया का परगना लेकर उसके बदले बदनोर का परगना जागीर में दे दिया।
इस समय बूंदी पर राव सुल्तान हाड़ा का राज था, जिन्होंने किसी नाराजगी के सबब से अपने सामंत सहसमल हाड़ा व सांतल की आँखें फुड़वा दीं।
राव सुल्तान से नाराज होकर बूंदी के बहुत से सामंत अपनी-अपनी जागीरों में रहने लगे और एक सामंत दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी के दरबार में चले गए।
इन सब बातों से नाराज होकर महाराणा उदयसिंह ने राव सुर्जन हाड़ा को आदेश दिया कि “हम राव सुल्तान को बूंदी की गद्दी से खारिज करते हैं, आप बूंदी पर कब्जा कर लेवें”।
महाराणा उदयसिंह ने अपने हाथों से राव सुर्जन हाड़ा का राजतिलक किया और फौज देकर बूंदी के लिए विदा किया। राव सुल्तान हाड़ा को परास्त कर बूंदी जीतने के बाद राव सुर्जन हाड़ा रणथंभौर गए।
महाराणा उदयसिंह ने राव सुर्जन को रणथम्भौर की किलेदारी भी सौंप दी थी।राव सुल्तान हाड़ा महाराणा उदयसिंह के ही एक सामंत रायमल खींची के यहां चले गए और वहीं रहने लगे।
राव सुर्जन हाडा रणथम्भौर पहुंचे, जहां सामन्तसिंह हाडा ने किले से बाहर निकलकर राव सुर्जन को दुर्ग की चाबियां सौंप दी। (रणथंभौर पर पहले मेवाड़ का ही अधिकार था,
लेकिन 1543 में शेरशाह सूरी ने दुर्ग मेवाड़ से छीना और सामंतसिंह हाड़ा को वहां का किलेदार नियुक्त कर दिया। महाराणा उदयसिंह चाहते थे कि रणथंभौर पर पुनः मेवाड़ का प्रभुत्व स्थापित हो जाए, इसलिए उन्होंने राव सुर्जन को वहां की किलेदारी सौंपी।)
राव सुर्जन हाडा ने सामन्तसिंह हाडा से कहा कि “फिलहाल तो हम बूंदी में रहते हैं और आप हमारे अधीन रहते हुए रणथम्भौर दुर्ग सम्भालें”।
राव सुर्जन हाड़ा ने अपने द्वारा की गई इन कार्यवाहियों के परिणाम का एक संदेश महाराणा उदयसिंह को लिख भेजा, जिससे महाराणा बड़े प्रसन्न हुए।
“सगारथ झल्लन के हित सोध, बढ्यो मरुमाल महीप विरोध। पदच्युत बुन्दियतें सुल्तान, दियो नृप सुर्जन को वह थान।।”
1555 ई. –“जैताणा व छप्पन की लड़ाइयां” :- डूंगरपुर रावल आसकरण के खिलाफ महाराणा उदयसिंह ने महाराजकुमार प्रतापसिंह के नेतृत्व में एक फौज भेजी।महाराजकुमार प्रतापसिंह ने वागड़ पर विजय प्राप्त की।
इन्हीं दिनों में महाराणा उदयसिंह ने महाराजकुमार प्रतापसिंह को फौज समेत भेजकर छप्पन के इलाके पर अधिकार किया। (इन युद्धों का हाल महाराणा प्रताप के भाग में लिखा जाएगा)
1555 ई. – “महाराणा उदयसिंह की सूझबूझ” :- मारवाड़ के राव मालदेव ने मेड़ता के जयमल्ल राठौड़ को पराजित करने के लिए राजकुमार चन्द्रसेन व देवीदास जैतावत को फौज समेत मेड़ता भेजा।
इसी समय महाराणा उदयसिंह बारात लेकर बीकानेर विवाह करने जा रहे थे, तो मेड़ता में पड़ाव डाला। महाराणा उदयसिंह ने देखा कि मारवाड़ के राजपूत आपस में ही लड़ रहे हैं, तो उन्होंने लड़ाई रुकवाकर सभी को अपने खेमे में बुलवाया।
महाराणा ने कुँवर चंद्रसेन व देवीदास जैतावत को समझा-बुझाकर फिर से जोधपुर भेज दिया। महाराणा ने विचार किया कि कहीं मेरे जाने के बाद फिर से लड़ाई न होने लगे, इसलिए वे जयमल राठौड़ को अपने साथ बारात में शामिल करके बीकानेर ले गए।
1556 ई. – “सागरसिंह का जन्म” :- महाराणा उदयसिंह व रानी धीरबाई भटियाणी के दूसरे पुत्र सागरसिंह का जन्म हुआ।
अगले भाग में मेवाड़-मारवाड़ टकराव व राव मालदेव राठौड़ की कुंभलगढ़ पर चढ़ाई का वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
Shaktisingh ji kya sach m tej or उग्र स्वभाव के थे
Author
बिल्कुल
उग्र स्वभाव के थे
जी thanks
जय महाराणा उदय सिंह जी
आपके द्वारा इतिहास की अनछुए पहलुओं को भी शामिल करना अनुपम उदाहरण है।
Author
बहुत बहुत धन्यवाद सा
बहुत अच्छा
Author
धन्यवाद सा
आपका प्रयास बहुत सराहनीय है
Author
धन्यवाद सा
आप बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं
Author
धन्यवाद सा
धन्यवाद सर आप का लेख बहुत अच्छा है। जो इतिहास का ज्ञान प्रदान करता है।
Author
आभार आपका
Bahut hi archi jankari hai hukum 🙏🙏🙏
Author
धन्यवाद सा
आपका यह पुरातन इतिहास की जानकारी एक अच्छा प्रशंसनीय कार्य है
Author
धन्यवाद सा
Nice and geat writer of the Historical movement
તમે ખુબ જ સરસ માહિતી આપી છે, ઈતિહાસ અને સંસ્કૃતિ જાણવી ખુબ જ જરૂરી છે, અત્યાર ના આ ડિજિટલ જમાનામાં તે બહું ઉપયોગી થાય છે. જય માતાજી ભાઈ 🙏