मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह (भाग – 3)

1540 ई. “ताणा विजय” :- महाराणा उदयसिंह ने मावली में युद्ध जीतने के बाद ताणा को घेर लिया। ताणा पर बनवीर का साथ देने वाले मल्ला सोलंकी का अधिकार था। 1 महीने तक दुर्ग घेरे रखा, पर फौजी कमी से महाराणा ताणा पर फतह नहीं पा सके। मल्ला सोलंकी को महादेव का इष्ट था।

एक दिन पहाड़ी की खोह में मल्ला सोलंकी पूजा कर रहा था। इसका पता चलते ही महाराणा उदयसिंह ने मेवा सांखला के जरिए मल्ला सोलंकी का कत्ल करवा दिया। महाराणा उदयसिंह ने ताणा पर विजय प्राप्त की।

ताणा दुर्ग

“चित्तौड़ विजय” :- महाराणा उदयसिंह ने चित्तौड़ दुर्ग की तरफ कूच किया।फौजी कमी से महाराणा न तो चित्तौड़ दुर्ग को घेर सके और न तोपखाना होने से किले की दीवारें तोड़ पाए।

महाराणा उदयसिंह को एक दूरदृष्टि शासक भी कहा जाता है। महाराणा उदयसिंह ने आशा देपुरा से सलाह कर इसका तोड़ निकाला। आशा देपुरा ने महाराणा के कहे मुताबिक बनवीर के प्रधान चील महता से हाथ मिला लिया।

आशा देपुरा ने चील महता से कहा कि “तुम भी महाराणा सांगा के नौकर हो। यह समय खैरख्वाही ज़ाहिर करने का है”

किले में भी बहुत से आदमी महाराणा उदयसिंह को शासक बनाना चाहते थे। चील महता ने बनवीर से कहा कि “दुर्ग में अन्न वगैरह खत्म होने को आया है, इसलिए रात को मंगवाया जावे तो बेहतर रहेगा”

बनवीर ने आवश्यक समझकर चील महता को रात के समय अन्न मंगवाने की आज्ञा दे दी। आधी रात को चील महता ने दुर्ग के दरवाजे खोल दिए।

500 से 1000 भैंसों पर सामान लादकर जब दुर्ग में पहुंचाया जा रहा था, तभी महाराणा उदयसिंह और उनके सैनिकों ने दरवाजों पर कब्जा कर हल्ला बोल दिया।

दोनों तरफ के बहुत से राजपूतों ने बलिदान दिया। बनवीर लाखोटा बारी के रास्ते से भाग निकला और दुर्ग पर महाराणा उदयसिंह ने विजय प्राप्त की।

महाराणा उदयसिंह का चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रवेश

“मिले महिपालहि कुम्भलमेर, निकार दियौ बनवीरहि फेर। सिरोहियकी धर दावन सार, कियो नृप ऊदल मन्द विचार।।”

“महाराणा उदयसिंह की चित्तौड़गढ़ विजय का परिणाम” :- चित्तौड़गढ़ जैसे विशाल दुर्ग पर विजय प्राप्त करते ही महाराणा उदयसिंह का रुतबा समूचे राजपूताने में कायम हो गया। अनेक विपत्तियों से उबरकर महाराणा उदयसिंह ने गाजे बाजों के साथ चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रवेश किया।

चित्तौड़गढ़ में महाराणा उदयसिंह का भव्य स्वागत हुआ और इस समय अनेक गीत बनाए गए और गाए गए। ये गीत महाराणा उदयसिंह के बाद भी मेवाड़ में कई वर्षों तक गाए गए।

महाराणा उदयसिंह की कुंभलगढ़ से विदाई व चित्तौड़गढ़ में स्वागत से संबंधित बने कुछ गीत तो स्वयं कर्नल जेम्स टॉड ने 19वीं सदी में सुने थे।

“बनवीर के शिलालेख व सिक्के” :- बनवीर ने 1536 ई. में चित्तौड़गढ़ दुर्ग के रामपोल दरवाजे पर एक शिलालेख खुदवाया, जिसमें उसने ख़ुद को ‘महाराणा’ की उपाधि दी।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग से ही बनवीर का एक अन्य शिलालेख भी मिलता है। बनवीर ने 5 वर्ष तक चित्तौड़गढ़ पर राज किया और अपने नाम से सिक्के भी चलाए।

“बनवीर का आखिरी समय” :- मुहणौत नैणसी लिखते हैं कि बनवीर भागकर गुजरात की तरफ चला गया। कर्नल जेम्स टॉड लिखता है कि बनवीर भागकर दक्षिण की तरफ चला गया, जहां उसके वंशज हुए, जो भोंसला कहलाए। वास्तविकता ये है कि बनवीर उस युद्ध में मारा गया या भाग गया या भागकर कहाँ गया, ये कोई नहीं जानता।

“बनवीर द्वारा चित्तौड़ दुर्ग में निर्मित मन्दिर व महल” :- तुलजा भवानी का मन्दिर :- चित्तौड़ दुर्ग में स्थित इस मन्दिर का निर्माण बनवीर ने तुलादान करके करवाया। कहा जाता है कि इसी मंदिर में बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या की थी।

तुलजा भवानी माता मंदिर (चित्तौड़गढ़)

नौ कोठा महल :- बनवीर को किले वाले राजपूतों पर भरोसा नहीं था, इसलिए उसने चित्तौड़ के राजमहलों के उत्तर की तरफ एक छोटा सा मजबूत किला बनवाना शुरु किया, ताकि मुसीबत के वक्त उसमें रहकर बचाव किया जा सके।

ये महल पूरा नहीं बन सका, केवल इसकी दक्षिणी दीवार ही खड़ी हो सकी, जो अब तक किले में मौजूद है। आज ये नौ कोठा महल के नाम से जाना जाता है।

“महाराणा उदयसिंह का कुंभलगढ़ प्रस्थान” :- चित्तौड़ दुर्ग पर सारे बन्दोबस्त करके महाराणा उदयसिंह कुम्भलगढ़ पधारे।

17 मई, 1540 ई. – “बिलग्राम का युद्ध” :- मुगल बादशाह हुमायूं और अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के बीच बिलग्राम की लड़ाई हुई, जिसमें हुमायूं की 40 हज़ार की फ़ौज शेरशाह सूरी की 10 हज़ार की फ़ौज के सामने नहीं टिक सकी। हुमायूं को जान बचाकर भागना पड़ा और दिल्ली की गद्दी पर शेरशाह सूरी बैठा।

“राव मालदेव की कूटनीति” :- मारवाड़ के राव मालदेव राठौड़ ने 4000 की फ़ौज भेजकर महाराणा उदयसिंह की मदद की। लेकिन इन्हीं दिनों राव मालदेव ने मेवाड़ राज्य के अंतर्गत आने वाले टोंक व जहाजपुर में थाने बैठा दिए।

इसी तरह रणथंभौर और बूंदी जाने वाली घाटी में भी थाने बिठा दिए और राठौड़ राजपूतों को वहां तैनात कर दिया गया।

अगले भाग में महाराणा उदयसिंह की सभी रानियों व पुत्रियों का उल्लेख किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)

12 Comments

  1. हार्दिक शर्मा
    December 6, 2020 / 12:59 pm

    बहुत बढ़िया

    Very nice work hukum

    जय महाराणा उदयसिंह जी

    • December 6, 2020 / 1:09 pm

      Thank you hardik

  2. Jitendra Singh Badgujar
    December 6, 2020 / 1:12 pm

    महाराणा उदय सिंह जी के इतिहास के साथ साथ शानदार फ़ोटो और दोहों के साथ इस लेख को पढ़ने में और भी मजा आया |

    ताणा दुर्ग भी शायद पहली बार देखा है | बनवीर के द्वारा कराए गए महल , मंदिर , शिलालेख वगैराह पर क़ियां गया कार्य प्रशंसनीय है | बनवीर के द्वारा ढाले सिक्कों की भी थोड़ी ज्यादा जानकारी मिल जाती तो अच्छा होता |

    हुमायूं – शेरशार युद्ध की जानकारी देकर आपने अप्रत्यक्ष रूप से दिल्ली सल्तनत और हिंदुस्तान की राजनैतिक स्थिति का काफी बड़ी सफाई से उल्लेख किया है | निश्चित ही पाठकों को मेवाड़ – अफगान , मेवाड़ – मुग़ल संबन्ध समझने में थोड़ी सहुलियत होगी |

    एक काम ये भी अच्छा क़ियां की राव मालदेव राठौड़ द्वारा की गई इन नाका बंदियों का उल्लेख कर दिया इससे राव मालदेव की राजपुताना के प्रति राज्य विस्तार की नीति दिखाई देती है , जो कहीं न कहीं मेवाड़ के लिए एक कठिन स्थिति पैदा कर देती है |

    कुल मिलाकर , काफी अच्छा काम किया है | इसके लिए आपकी मेहनत कबीले तारीफ़ है |

    जय महाराणा उदय सिंह जी

    • December 6, 2020 / 1:16 pm

      बेहतरीन विश्लेषण…. सहृदय धन्यवाद आपका।

    • Tanisha Gupta
      December 7, 2020 / 7:13 am

      Really Rajputana’s history is amazing….the courage shown by Maharana Udaisingh ji is praise worthy and should be remembered from generations to generations….and u presented every event so systematically…great work jai Mewar

  3. Alla
    December 6, 2020 / 1:39 pm

    How many zones are there in Rajasthan? I don’t know how to explain but which current area is called Mewar and Marwad.

    • December 6, 2020 / 1:46 pm

      Udaipur, rajsamand, bhilwara, chittorgarh – Mewar

      Jodhpur, barmer, Jalore, Pali, Nagore – Marwar

  4. Parveen
    December 6, 2020 / 3:25 pm

    बहुत खूब वर्णन
    ऐसा लग रहा है सब कुछ आंखो के सामने घट रहा है
    इतनी अच्छी जानकारी
    इतिहास की किसी पुस्तक में नहीं होगी
    धन्य वाद
    सोचा नहीं था कि fb per itni जानकारी मिल सकी

    • December 7, 2020 / 2:37 am

      उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद सा।

  5. Virbhadrasinh jadeja
    December 6, 2020 / 4:19 pm

    Jay bhavani

  6. Malu Singh Shaktawat
    December 9, 2020 / 1:52 pm

    Thank s hukm
    Jay marwad jay Akleg gi

  7. Narendar Singh
    December 13, 2020 / 7:10 am

    Very nice 🎉🎉

error: Content is protected !!