इतिहासकारों द्वारा महाराणा उदयसिंह पर लगाए गए व्यर्थ आरोप :- कई इतिहासकारों ने महाराणा उदयसिंह को दूरदर्शी व योग्य शासक बताया है, तो कई इतिहासकारों द्वारा महाराणा उदयसिंह पर व्यर्थ के आरोप भी लगाए गए हैं, कुछ इस तरह हैं :-
कुछ इतिहासकार यहाँ तक कहते हैं कि “अगर महाराणा सांगा और महाराणा प्रताप के बीच में उदयसिंह ना होते, तो चित्तौड़ पर कभी मुगल आधिपत्य न होता” (ऐसा कहने वाले न केवल महाराणा उदयसिंह का, बल्कि महाराणा प्रताप का भी अपमान कर रहे हैं)
महाराणा सांगा के बाद अक्सर अगले महाराणा का नाम महाराणा उदयसिंह ही लिया जाता है और ये भी कहा जाता है कि महाराणा सांगा ने अपने जीवन में जो भी पाया वो महाराणा उदयसिंह ने गँवा दिया,
जबकि महाराणा सांगा का देहान्त 1527 ई. में व महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक 1540 ई. में हुआ। बीच के इन 13 वर्षों में बहुत कुछ हुआ।
1527 ई. :- खानवा का युद्ध हुआ, जिसमें महाराणा सांगा पराजित हुए और मेवाड़ की 80 फीसदी फौज वीरगति को प्राप्त हुई। कई राजपूतानियाँ सती हुईं। मेवाड़ की क्षेत्रीय सीमाएं भी पहले के मुकाबले सीमित हो गई।
1528-31 ई. :- महाराणा सांगा के पुत्र महाराणा रतनसिंह केवल 3 वर्ष ही राज कर पाए, जिससे इनके राज में मेवाड़ को कोई लाभ न हुआ।
1533-34 ई. :- गुजरात के बादशाह बहादुरशाह ने चित्तौड़गढ़ पर हमला किया और चित्तौड़ का दूसरा साका हुआ। मेवाड़ के कई योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए और क्षत्राणियों ने जौहर के मार्ग का वरण किया।
महाराणा सांगा के पुत्र महाराणा विक्रमादित्य एक अयोग्य शासक थे। इनके शासनकाल में मेवाड़ के कई सामन्तों ने मेवाड़ का साथ छोड़ दिया व मेवाड़ के बहुत से इलाके मुगलों के हाथों में चले गए।
1535 ई. :- महाराणा रायमल के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर पृथ्वीराज के दासीपुत्र बनवीर ने मेवाड़ पर कब्जा कर रही सही कसर भी निकाल ली। इसके राज में मेवाड़ की बर्बादी हुई और मेवाड़ के कई इलाके हाथ से निकल गए। इन सब बातों का दोष महाराणा उदयसिंह पर लगाया जाता है, जो कि सर्वथा अनुचित है।
“महाराणा उदयसिंह का जीवन परिचय” :- जन्म :- महाराणा उदयसिंह का जन्म 4 अगस्त, 1522 ई. को हुआ। पिता :- महाराणा उदयसिंह के पिता महाराणा सांगा थे। कुँवर उदयसिंह जब 5 वर्ष के थे, तब पिता महाराणा सांगा का देहांत हो गया।
माता :- महाराणा उदयसिंह की माता महारानी कर्णावती थीं। महारानी कर्णावती बूंदी के राव नरबद हाड़ा की पुत्री थीं। कुँवर उदयसिंह जब 12 वर्ष के थे, तब उनकी माता महारानी कर्णावती ने अनेक क्षत्राणियों के साथ जौहर किया।
कम उम्र में ही कुँवर उदयसिंह के माता-पिता का देहांत हो गया और फिर बनवीर ने भी इनको मारने के प्रयास किए, लेकिन पन्नाधाय जी ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर कुँवर उदयसिंह के प्राणों की रक्षा की।
इस प्रकार महाराणा उदयसिंह का शुरुआती जीवन काफी कष्टप्रद रहा। पन्नाधाय कुंवर उदयसिंह को लेकर कुम्भलगढ़ चली गईं व वहीं किलेदार आशा देपुरा ने 6 वर्षों तक कुँवर उदयसिंह का पालन-पोषण किया।
1537 ई. :- इस समय महाराणा सांगा के 7 पुत्रों में केवल कुंवर उदयसिंह ही जीवित थे। धीरे-धीरे मेवाड़ में ये बात फैल गई कि महाराणा उदयसिंह जीवित हैं, पर बनवीर बेखटके चित्तौड़ पर राज करता रहा।
क्योंकि बनवीर को पूर्ण विश्वास था कि उसके हाथों से कुँवर उदयसिंह मारे जा चुके हैं। “कियो वध विक्रम को बनवीर, उदै हरि गे गिरि कुम्भल तीर। धरे बनवीर तबें सिर छत्र, सुभट्टन के थट झंझट तत्र।।”
“सरदारों की बनवीर से नाराज़गी” :- बनवीर जानता था कि मेवाड़ के सामंत एक दासीपुत्र को अधिक समय तक मेवाड़ पर शासन करता हुआ नहीं देखेंगे। इसलिए चित्तौड़ में दासीपुत्र बनवीर ने असल राजपूत बनने की बहुत कोशिश की।
एक दिन बनवीर ने सभी सरदारों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। भोजन के वक्त बनवीर ने अपनी थाल में से कोठारिया के रावत खान पूर्विया चौहान की थाली में कुछ झूठा रखकर कहा कि “इसका स्वाद बहुत अच्छा है, तुम भी चक्खो”
रावत खान ने भोजन की थाली से हाथ खींच लिया और उठकर जाने लगे, तो बनवीर ने पूछा “क्या हुआ, भोजन क्यों नहीं करते ?” रावत खान ने कहा “मैं खा चुका”। बनवीर ने कहा कि “यह तो तुम्हारा बहाना है। क्या तुम मुझे कम असल राजपूत जानकर घिन्न करते हो ?
रावत खान ने कहा “हाँ, अब तक तो हमने नहीं कहा था, पर आप खुद ही जो कहते हैं, वही सच है”। इस तरह रावत खान व अन्य सरदारों ने बनवीर से बिगाड़ करके कुम्भलगढ़ की तरफ प्रस्थान किया।
(रावत खान पूर्बिया चौहान :- रणथंभौर के वीर हम्मीरदेव चौहान के वंशज माणकचंद कोठारिया के पहले रावत साहब हुए। रावत माणकचंद के बाद क्रमशः रावत जयपाल, रावत सारंगदेव, रावत खान हुए। इस प्रकार रावत खान कोठारिया के चौथे रावत साहब थे।)
“महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक” :- रावत खान ने कुम्भलगढ़ पहुंचकर कुंवर उदयसिंह से भेंट की व सलूम्बर के साईंदास चुंडावत, केलवा के जग्गा चुण्डावत, बागोर के रावत सांगा को बुलावा भिजवाया।
(सलूम्बर के रावत साईंदास चुंडावत :- ये प्रसिद्ध रावत चुंडा के वंशज थे। रावत चुंडा के बाद सलूम्बर की गद्दी पर क्रमशः रावत कांधल, रावत रतनसिंह, रावत दूदा विराजमान हुए। फिर सलूम्बर के 5वें रावत साहब साईंदास जी हुए।)
(केलवा के रावत जग्गा चुंडावत :- केलवा राठौड़ राजपूतों का ठिकाना है, लेकिन उस समय यहां चुंडावतों का अधिकार रहा। रावत चुंडा के पुत्र रावत कांधल हुए, जिनके दूसरे पुत्र रावत सीहा हुए। रावत सीहा के पुत्र रावत जग्गा जी थे, जिनका मूल ठिकाना आमेट है।)
(बागोर के रावत सांगा :- उस समय बागोर रावत सांगा का ठिकाना था, लेकिन इनका मूल ठिकाना देवगढ़ रहा। रावत चुंडा के पुत्र रावत कांधल के छोटे पुत्र रावत सांगा हुए। रावत सांगा देवगढ़ वालों के मूलपुरुष हैं।)
सभी सर्दारों ने कुम्भलगढ़ पहुंचकर कुंवर उदयसिंह को नज़्रें दीं व उनका राज्याभिषेक कर दिया। इस तरह महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक 15 वर्ष की आयु में हुआ, लेकिन असल राज्याभिषेक तो चित्तौड़ विजय से ही सम्भव था।
वीरविनोद, अमरकाव्य वगैरह ग्रन्थों में भी महाराणा उदयसिंह के राज्याभिषेक का सही समय चित्तौड़ विजय के बाद का ही बताया है।
अगले भाग में महाराणा उदयसिंह के विवाह व मावली युद्ध के बारे में लिखा जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत ठि. लक्ष्मणपुरा (बाठरड़ा-मेवाड़)
बहुत ही शानदार
Author
धन्यवाद
Bahut sundar.
Author
Thanks
Thank u so much for giving us knowledge about ऐतिहासिक धरोहर
Author
Most welcome
Jai mewad
jai Maharana uday singh ji
jai rajput
शानदार हुकुम
जय महाराणा उदय सिंह जी
Author
धन्यवाद सा
सहृदय धन्यवाद
Author
आभार आपका
Bahut hi acha hkm
Keep it up
Author
Thank you
Nice
Waah Bahut hi shandaar. Aap Ek kitab bhi likhe
Bhot bhot sundar
बहुत ही विस्तृत रूप से आप जानकारी उपलब्ध करवा रहे हैं इसके लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद।
सोशल मीडिया के माध्यम से सही जानकारी आम लोगों तक पहुंच पाएगी इसके लिए आप साधुवाद के पात्र हैं गलत पाठ्यक्रमों के द्वारा लोगों में सही जानकारी का अभाव था।आपका यह विस्तृत व निष्पक्ष इतिहास संकलन इतिहास को एक नई दिशा देगा। मेवाड़ वंश से जुड़े वंशानुक्रम की शाखाओं को तो पर्याप्त ज्ञान पीढ़ी दर मिला है लेकिन मानव समाज के अन्य वर्ग इतिहास पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहते थे और है क्योंकि उनके पास गलत जानकारी पाठ्यक्रमों के अनुसार मिली थी। आपका यह प्रयास एक नई सोच को व इतिहास की सत्यता को उजागर करेगा।
Author
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद हुकम
Appreciated. I am always interested in our glorious history and its only your page reveals the best. You are honest genius. May I ask you something? Do you belong to any one of the dynasty?
Author
Thank you.
Yes I belong to sisodiya dynasty of Mewar but I am not from royal family. A common rajput from this dynasty.
भ्राता मे ये आपकी पोस्ट को कॉपी-पेस्ट कर सकता हू ।
Author
जी, आप शेयर कर सकते हैं। कॉपी यहां से होगा नहीं।
इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
Author
आभार आपका
मेवाड़ के इतिहास की गहराइयों में उतारने के लिए साधुवाद, महाराणा उदय सिंह जी ने मेवाड़ की रक्षा के लिए बहुत संघर्ष किया है, परन्तु आपने उसे सही और प्रामाणिक रूप से रखने का बीड़ा उठाया है ।एकलिंगजी आपको शक्ति प्रदान करें।
Author
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद सा।
जय एकलिंग जी
Jai mata ki ki hukam
Khamma ghani
Maharaja uday Singh ji ke upar galat itihas la pane sahi chitran kiya he
Aapko Kofi Kofi sadhuwad avan abhar
Bahut khub
Author
Thanks
hukum..mja aa gya.. history ko jaan kr or hamare dimag me jo mithya itihas bhara he usko nikala..koti koti dhnyawad sa..gyanwardhan ke liye
Author
आभार आपका।
कोठारिया वाले मैनपुरी से राणा सांघा के खानवा युद्ध के बाद आये