मारवाड़ नरेश राव मालदेव राठौड़ (भाग – 19)

27 जनवरी, 1557 ई. – राव जयमल राठौड़ के हाथों से मेड़ता निकलना :- राव मालदेव अपने पिता के समय से ही मेड़ता वालों से उनका राज छीनना चाहते थे। उन्होंने मेड़ता पर बार-बार आक्रमण भी किए।

हरमाड़ा के युद्ध में मेड़ता के राव जयमल राठौड़ ने महाराणा उदयसिंह की सहायता करते हुए मारवाड़ के ख़िलाफ़ लड़ाई की थी, इसलिए राव मालदेव ने मेड़ता पर आक्रमण कर दिया।

इस बार हरमाड़ा की विजय से राव मालदेव की सेना उत्साहित थी और मेड़ता पर हावी होने लगी। 27 जनवरी, 1557 ई. को राव मालदेव ने मेड़ता पर विजय प्राप्त कर ली और राव जयमल के राजमहलों को उजाड़ दिया।

इस लड़ाई के बाद उचित सहयोग देने के कारण राव मालदेव ने उदयसिंह कूंपावत को राणावास गांव जागीर में दिया।

राव मालदेव ने कुंडल में एक नया शहर बसाया और मेड़ता में मालकोट का किला बनवाकर वहां राव देवीदास जैतावत को सेना सहित नियुक्त किया।

वीरवर राव जयमल मेड़तिया राठौड़

मांडण कूंपावत को जागीर देना :- 1557 ई. में राव मालदेव राठौड़ मांडण कूंपावत को 13 गांवों सहित आसोप की जागीर दी।

अप्रैल, 1557 ई. – अकबर का अजमेर पर अधिकार :- अकबर ने अजमेर विजय करने के लिए एक फ़ौज भेजी। मुगल फौज ने हाजी खां को परास्त करके अजमेर पर अधिकार कर लिया।

अजमेर जीतने के बाद अकबर ने नागौर पर भी कब्ज़ा कर लिया। अकबर ने अजमेर में मीर कासिम व नागौर में मुहम्मद कुली खां बिरलाज को सेना सहित नियुक्त किया।

1558 ई. – जैतारण का युद्ध :- अफगान बादशाह शेरशाह सूरी से पराजित होने के बाद जैतारण भी राव मालदेव के हाथों से निकल गया था, लेकिन शेरशाह के मरने के बाद राव मालदेव ने जैतारण पर पुनः अधिकार कर लिया।

राव मालदेव ने जैतारण की जागीर खींवकरण के पुत्र रतनसिंह को दे दी। जब अकबर ने अजमेर पर आक्रमण किया था, तब वहां से भागे हुए हाजी खां को राव मालदेव ने जैतारण में शरण दी थी।

अकबर

1558 ई. में अकबर ने शाह कुली महराम, सैयद महमूद बारहा, कासिम खां आदि सिपहसलारों को सेना सहित जैतारण पर आक्रमण करने भेजा।

हाजी खां तो भागकर गुजरात चला गया और मुगलों का सामना करने के लिए राठौड़ों ने कमर कसी। इस युद्ध में रतनसिंह बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

जैतारण पर अकबर का अधिकार हो गया। अकबर द्वारा अजमेर, नागौर व जैतारण को जीतने के बाद मारवाड़ के भविष्य पर संकट मंडराने लगा।

अकबर लगातार अपने साम्राज्य को बढ़ाते जा रहा था। एक ही वर्ष में उसने राजपूताने के 3 क्षेत्रों को जीत लिया था। राव मालदेव अभी इस स्थिति में नहीं थे कि अकबर से सीधी लड़ाई लड़ सके।

जैतारण के युद्ध में राव मालदेव की तरफ से वीरगति पाने वाले योद्धाओं के नाम :- राठौड़ रतनसिंह खींवावत, मानीदास खींवावत, किशनदास जैतसीहोत, गोयनदास जैतसीहोत, साकर जैतसीहोत,

राव मालदेव राठौड़

काना जैतसीहोत, कूंपा जैतमालोत, रायसिंह सीधणोत, नारायण सांगावत, मानसिंह नगावत/नगराजोत, नगराज गांगावत, जोधा भींवोत, गौड़ आसा, गौड़ धना,

डेडरिया रणधीर, खेतसी धरवतोत, ईदा कांधल, पंवार सुरताण, सांखला दूदा, मांगलिया सेहसा, देवड़ा अचला, जैमल खींची, वीदा हिंगोला, नाई दुर्गा व भाडणा, रतड़े।

1559 ई. – मेड़ता का आधा राज्य जगमाल राठौड़ को देना :- राव जयमल के भाई जगमाल ने राव मालदेव की सहायता की थी, इसलिए 1559 ई. में राव मालदेव ने जगमाल को 71 गांवों सहित आधे मेड़ता का पट्टा जागीर में दे दिया।

1560 ई.-1561 ई. – राव मालदेव द्वारा बैरम खां का मार्ग रोकना :- मुगल साम्राज्य की नींव को मजबूती प्रदान करने वाले बैरम खां ने अकबर से नाराज़ होकर मक्का जाना तय किया। उसके लिए बैरम खां को नागौर व जोधपुर होते हुए गुजरात जाना था।

लेकिन राव मालदेव ने बैरम खां का मार्ग रोक लिया। इस वक्त बैरम खां इतना सक्षम नहीं था कि राव मालदेव से उलझ सके, इसलिए उसने मार्ग बदला और बीकानेर की तरफ चला गया।

बैरम खां

1561 ई. – राव मालदेव की जालोर विजय :- राव मालदेव ने पत्ता नागावत, कुँवर चन्द्रसेन (राव मालदेव के पुत्र) व देवीदास जैतावत को सेना सहित जालोर पर आक्रमण करने के लिए विदा किया।

इस लड़ाई में राव मालदेव की सेना ने जालोर पर विजय प्राप्त कर ली। (विश्वेश्वर नाथ रेउ ने इस विजय का वर्ष 1559 ई. लिखा है)

खींवसर ठिकाना जागीर में देना :- राव मालदेव ने 1561 ई. में राठौड़ महेश पंचायणोत करमसिंहोत को खींवसर ठिकाना दिया।

राव मालदेव द्वारा जैसा के पुत्रों को दिए गए गांव :- जोधा को वालरवौ गांव, अणदा को उचीयारड़ो गांव, भेरुदास को रामपुरा गांव, वेणीदास को खेरवा गांव दिया।

राव मालदेव द्वारा डीडवाना में दिए गए गांव :- ढीगारिया गांव चारडा को 1538 ई. में, लोखास गांव बारहठ गाडण खेतसी को 1560 ई. में दिया।

मेहरानगढ़ दुर्ग

राव मालदेव द्वारा पचपदरा में दिए गए गांव :- बनोडो गांव चारण आसिया को, इकडानिया गांव चारण मीसण अनद को, सिंहथड़ी गांव 1556 ई. में सादुल हमीरोत को, रोवाडो वारंठा गांव चारण बारहठ देवीदान को 1538 ई. में दिया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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