राव मालदेव राठौड़ के इतिहास से संबंधित इस भाग में जो भी घटनाएं लिखी गई हैं, वे सत्य हैं, परन्तु वे कब घटित हुईं ये स्पष्ट नहीं है।
अलग-अलग पुस्तकों में इनका समयकाल भी अलग-अलग मिलता है। इसलिए इस भाग में ऐसे नाम भी हैं, जिनके वीरगति पाने का उल्लेख पिछले भागों में किया जा चुका है।
मेवाड़-मारवाड़ के बीच टकराव :- खैरवा के सामन्त जैतसिंह झाला (राजराणा झाला सज्जा के पुत्र) की पुत्री स्वरुपदे मारवाड़ के राव मालदेव राठौड़ की पत्नी थीं।
राव मालदेव झाली रानी स्वरूपदे सहित अपने ससुराल खैरवा गए, जहां उन्होंने जैत्रसिंह की दूसरी पुत्री वीरबाई झाली से भी विवाह करने की इच्छा जताई, परन्तु जैत्रसिंह झाला ने मना कर दिया,
क्योंकि राव मालदेव की आयु भी अधिक थी व जैत्रसिंह अपनी बेटियों को सौत नहीं बनाना चाहते थे। रानी स्वरूपदे ने अपने पिता जैत्रसिंह से कहा कि मारवाड़ से बैर लेना खैरवा के बस की बात नहीं है,
इसलिए आप मालदेव जी का प्रस्ताव मान लीजिए। लेकिन जैत्रसिंह जी ने विवाह का खर्च नहीं होने का बहाना बना लिया। फिर राव मालदेव ने तुरंत ही 15 हज़ार का धन जैत्रसिंह जो दे दिया और विवाह की बात पक्की कर ली।
जैत्रसिंह झाला उस समय तो दबाव में पूरी तरह इनकार नहीं कर सके, लेकिन बाद में मारवाड़ का विरोध झेलने में सक्षम रियासत मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के पास वीरबाई झाली के लिए विवाह प्रस्ताव भेजा।
महाराणा उदयसिंह ने विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर कुम्भलगढ़ के समीप गुडा नामक स्थान पर विवाह कर लिया। विवाह के अवसर पर रानी वीरबाई झाली की बहन स्वरुपदे ने उनको जेवरों से भरा डिब्बा तोहफे में दिया,
लेकिन गलती से डिब्बे में राठौड़ों की कुलदेवी मां नागणेच्या जी की मूरत दे दी। महाराणा उदयसिंह मूरत देखकर काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने मां नागणेच्या की पूजा अर्चना की।
महाराणा उदयसिंह मां नागणेच्या के सम्मान में साल में 2 बार विशेष दरबार भी रखा करते थे। कुलदेवी की मूर्ति का इस प्रकार मेवाड़ जाना राव मालदेव को बहुत खटका।
गोडवाड़ का युद्ध :- राव मालदेव ने जब महाराणा उदयसिंह व रानी वीरबाई के विवाह की ख़बर सुनी, तो क्रोधित होकर मेवाड़ की तरफ़ कूूूच किया। गोडवाड़ में दोनों फ़ौजों का आमना-सामना हुआ,
जिसमें महाराणा की फ़ौज ने शिकस्त खाई। राव मालदेव ने गोडवाड़ पर अधिकार करके वहां एक थाना तैनात कर दिया और फिर जोधपुर आ गए।
महाराणा उदयसिंह द्वारा राव मालदेव को चिढाना :- महाराणा उदयसिंह ने कुम्भलगढ़ दुर्ग की चोटी पर ‘झाली रानी का मालिया’ बनवाया, जो अब तक किले में मौजूद है।
महाराणा उदयसिंह ने झाली रानी के मालिये पर एक चिराग तैयार करवाया, जो 2 मन बिनौले व तेल से जला करता था।
नाडौल का युद्ध व राव मालदेव की कुंभलगढ़ पर चढ़ाई :- चिराग की बात सुनकर राव मालदेव ने कुम्भलगढ़ पर हमला करने का फैसला किया।
इन्हीं दिनों राव मालदेव के एक सरदार सूजा बालेचा, मालदेव जी से बिगाड़ करके मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के पास चले गए। महाराणा ने सूजा बालेचा को नाडोल की जागीर दी।
राव मालदेव ने नगा राठौड़ भारमलोत को 500 घुड़सवार व 500 पैदल सैनिकों समेत नाडोल पर हमला करने भेजा। मारवाड़ की ख्यातों के अनुसार इस समय सूजा बालेचा के पास 2 हज़ार सैनिक थे।
सूजा बालेचा विजयी हुए और राव मालदेव की तरफ से राठौड़ बाला, धन्ना, बीजा सहित 140 योद्धा काम आए। नगा राठौड़ घायल हो गए।
फिर कुछ समय बाद राव मालदेव ने नाडौल, जोजावर व बीसलपुर में थाने कायम कर दिए। राठौड़ पचायण कर्मसिंहोत, राठौड़ बीदा भारमलोत बालावत आदि सरदारों के साथ राव मालदेव ने कुम्भलगढ़ दुर्ग पर हमला किया,
पर दुर्ग की मज़बूती के कारण एक महीने के पड़ाव के बावजूद अधिकार नहीं कर पाए। लौटते वक्त राव मालदेव मेवाड़ के कुछ इलाके में लूटमार करते हुए मारवाड़ चले गए।
अजमेर का बखेड़ा :- मुगल बादशाह अकबर ने पीर मुहम्मद सरवानी को फ़ौज समेत मेवात (अलवर) पर हमला करने भेजा, जहां हाजी खां मेवाती का राज था। हाजी खां भागकर अजमेर आ गया।
इन्हीं दिनों मारवाड़ के राव मालदेव ने राव पृथ्वीराज जैतावत को हाजी खां के विरुद्ध फ़ौज समेत अजमेर पर हमला करने भेजा।
जोधा रतनोत की ख्यात के अनुसार राव पृथ्वीराज के साथ रतनसिंह खींवकरणोत व कुँवर चन्द्रसेन भी थे। (हालांकि कुँवर चन्द्रसेन की आयु इस समय मात्र 15 वर्ष थी)
हाजी खां ने महाराणा उदयसिंह को संदेश भेजकर कहा कि “राव मालदेव मुझ को मारने आ रहा है और मैं आपकी पनाह में आया हूँ। आप मेरी मदद करें”
महाराणा उदयसिंह हाजी खां की सहायता के लिए बूंदी के राव सुर्जन हाडा, मेड़ता के राव जयमल राठौड़, रामपुरा के दुर्गा सिसोदिया आदि के साथ 5000 की फ़ौज लेकर अजमेर की तरफ रवाना हुए। हाजी खां ने बीकानेर नरेश से भी सहायता मांगी थी।
बीकानेर और मारवाड़ में पहले से शत्रुता तो थी ही, इसलिए बीकानेर के राव कल्याणमल राठौड़ ने महाजन के स्वामी ठाकुर अर्जुनसिंह, जैतपुर के स्वामी रावत किशनदास, सेवारा के स्वामी नारण के नेतृत्व में 5000 की फ़ौज भेजी।
मेवाड़ के 5000 राजपूत, बीकानेर के 5000 राजपूत और हाजी खां के 5000 पठानों की फ़ौजें देखकर मारवाड़ के राजपूतों ने राव पृथ्वीराज जैतावत से कहा कि
“मारवाड़ के अच्छे-अच्छे योद्धा पहले ही शेरशाह सूरी की फ़ौज से लड़ते हुए काम आ चुके हैं। हम भी काम आ गए तो राव मालदेव बहुत निर्बल हो जाएंगे। इतनी बड़ी सेना का सामना करना कठिन है, इसलिए लौट जाना ही बेहतर है”
राव पृथ्वीराज जैतावत विचार करके फ़ौज समेत लौट गए, तो महाराणा व बीकानेर की फ़ौजें भी बिना लड़े ही लौट गईं।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)