राव सूजा का देहांत :- राव सूजा की आयु 76 वर्ष की हो चुकी थी, अपने ज्येष्ठ पुत्र कुँवर बाघा के देहांत ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था।
इस आयु में वे यह पीड़ा सहन न कर सके व 2 अक्टूबर, 1515 ई. को अपने प्राण त्याग दिए। जोधपुर, फलौदी, पोकरण, सोजत व जैतारण परगनों पर राव सूजा का अधिकार रहा।
राव सूजा की रानियां :- राव सूजा की 4 रानियों की जानकारी मिली है, जो कुछ इस तरह है :- (1) रानी लक्ष्मी भटियाणी :- इनका नाम रानी लिखमी व रानी सारंगदे भी था।
डॉक्टर ओझा ने इनको भाटी जीवा उर्जनोत की पुत्री लिखा है, जबकि मुंशी देवीप्रसाद व मुहणौत नैणसी ने इनको जैसलमेर के रावल केहर भाटी की पुत्री लिखा है।
ख्यातों में वर्णन है कि लिखमी (लक्ष्मी) का विवाह राव सूजा से हुआ, उस समय जैसलमेर से कई ब्राह्मण, बनिये आदि भी जोधपुर आ गए और यहीं बस गए।
रानी लक्ष्मी भटियाणी अपने साथ क्षेत्रपाल गोरा को भी ले आई, जिन्हें लोकदेवता मानकर पूजा की जाती रही। रानी लक्ष्मी ने कुँवर बाघा व कुँवर नरा को जन्म दिया।
(2) राव तेजसिंह चौहान की पौत्री, जिन्होंने कुँवर शेखा/सेखा व कुँवर देवीदास को जन्म दिया। (3) रानी सहोदरा सांखली :- इन्होंने कुँवर पृथ्वीराव व कुँवर नापा को जन्म दिया।
(4) रानी सरबगदे मांगलियाणी :- ये राणा पातू की पुत्री थीं। इन्होंने कुँवर ऊदा, कुँवर प्रयाग व कुँवर सांगा को जन्म दिया।
राव सूजा के पुत्र :- (1) कुँवर बाघा राठौड़ :- कुँवर बाघा का जन्म 23 अप्रैल, 1457 ई. को हुआ। मारवाड़ की ख्यात में एक काल्पनिक घटना लिखी है कि एक बार मेवाड़ के राणा सांगा ने सोजत पर आक्रमण किया था,
तब कुँवर बाघा ने राणा सांगा को इस तरह पराजित किया कि दोबारा उन्होंने कभी सोजत पर आक्रमण करने का साहस नहीं किया। यह सम्पूर्ण कथन ही काल्पनिक है और यह बात पाठक सामान्य रूप से भी समझ सकते हैं।
जिन महाराणा सांगा ने दिल्ली के सुल्तान को दो बार परास्त किया हो, मांडू के सुल्तान को बंदी बना लिया हो, मुगल बादशाह बाबर को भी एक बार शिकस्त दी हो, वे भला मारवाड़ के कुँवर से सोजत जैसे छोटे क्षेत्र की लड़ाई में कैसे परास्त हो सकते थे।
यहां तक कि महाराणा सांगा व कुँवर बाघा के बीच किसी भी तरह के युद्ध का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है, ना ही लड़ाई में मारे जाने वालों के नाम कभी सामने आए।
बहरहाल, 57 वर्ष की आयु में कुँवर बाघा का देहांत अपने पिता राव सूजा के जीवित रहते ही हो गया था। अपने देहांत से कुछ देर पहले कुँवर बाघा ने अपने पिता राव सूजा को अपने पास बुलवाया और कहा कि
“मेरी इच्छा है कि मेरे बाद आपका उत्तराधिकारी मेरे पुत्र को बनाया जावे।” राव सूजा ने अपने तीसरे पुत्र कुँवर सेखा को अपने पास बुलाकर उनकी सहमति ली, तो कुँवर सेखा ने अपनी सहमति दे दी।
कुँवर बाघा के 7 पुत्र हुए :- वीरमदे, गांगा, सीधण, भीम, जैतसी, प्रतापसिंह, खेतसी। भीम ने दसौर के कोट का निर्माण करवाया।
(2) कुँवर नरा :- ये राव सातल के वास्तविक उत्तराधिकारी थे, क्योंकि इनको राव सातल ने गोद लिया था। लेकिन कुँवर नरा को राजगद्दी नहीं मिल सकी।
(3) कुँवर सेखा :- इनसे सेखावत राठौड़ों की शाखा चली। बांकीदास री ख्यात के अनुसार कुँवर सेखा के कुछ वंशजों का धर्मपरिवर्तन करवाकर उन्हें मुस्लिम बना दिया गया। उक्त ख्यात के अनुसार कुँवर सेखा के वंशज नाहरगढ़ के नवाब कहलाए।
(4) कुँवर देवीदास :- इनके वंशज देवीदासोत राठौड़ कहलाए। कुँवर देवीदास के पुत्र अचल व हरराज हुए। (5) कुँवर सांगा :- इनके वंशज सांगावत राठौड़ कहलाए।
(6) कुँवर प्रयाग/प्रागदास :- इनके वंशज प्रागदासोत राठौड़ कहलाए। कुँवर प्रयाग को जैतारण परगने का गांव देवली दिया गया था।
(7) कुँवर नापोजी :- इनके वंशज नापावत राठौड़ कहलाए। (8) कुँवर पृथ्वीराव (9) कुँवर तिलोकसी :- इनके वंशज तिलोकसियोत राठौड़ कहलाए। कुँवर तिलोकसी के पुत्र रामा हुए, जिनके वंशज रामोत राठौड़ कहलाए।
(10) कुँवर ऊदा :- राव सूजा ने जैतारण जीतकर कुँवर ऊदा को दिया था। कुँवर ऊदा ने सींधल राठौड़ों को वहां से निकालकर जैतारण पर पूर्ण अधिकार कर लिया। इनके वंशज ऊदावत राठौड़ कहलाए।
ऊदावतों के 74 ठिकाने हैं, जिनमें से कालियाटड़ा, वरपाँती समेत 16 ठिकानों को ताजीम का अधिकार प्राप्त था। इन ठिकानों में रायपुर, नींवाज व रास ये तीन सिरायत हैं। इन तीनों को दीवानी व फौजदारी अधिकार प्राप्त रहे।
लाम्बिया, पालासणी व सैसड़ा ठिकानों को हाथ के कुरब का सम्मान प्राप्त था। देवली, बांसियो, देवरियो, पीह, गूंदोच, डेह, मोरला इन सात ठिकानों को बांह पसाव के कुरब का सम्मान प्राप्त था। राव सूजा की 4 रानियों से 7 पुत्रियां भी हुईं, लेकिन उनके नाम नहीं मिले हैं।
राव सूजा द्वारा दान में दिए गए गांव :- राव सूजा ने सोजत परगने के बावड़ी व नेतड़ा नामक गांव सेवड़ पुरोहितों को दान में दे दिए। राव सूजा ने सोजत परगने के धेनावस व धणला नामक गाँव ब्राह्मण तेजमाल को दान में दिए।
यह धणला गांव वही है, जो मेवाड़ के महाराणा लाखा ने राव रणमल राठौड़ को जागीर में दिया था। राव सूजा ने फलौदी परगने के बावड़ी खुर्द व बावड़ी कला नामक गाँव पुरोहितों को दान में दिए।
राव सूजा ने जोधपुर परगने के डोली-काकाणी व मोड़ी-मनाणा गांव पुरोहितों को दान में दिए। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)