राव सूजा राठौड़ :- राव सूजा के पिता राव जोधा थे। राव सूजा का जन्म 2 अगस्त, 1439 ई. को रविवार के दिन हुआ था।
राव जोधा ने कुँवर सूजा को सोजत भेज दिया था, जहां 1488 ई. में सूजा की लड़ाई मुसलमानों से हुई। उस लड़ाई में मुसलमान परास्त हुए, लेकिन सूजा को गहरे घाव लगे थे।
1491 ई. में मारवाड़ नरेश राव सातल व अजमेर के हाकिम मल्लू खां के बीच हुए युद्ध में सूजा भी राव सातल के पक्ष में लड़े थे। कर्नल जेम्स टॉड ने उस युद्ध में सूजा का मारा जाना लिख दिया, जो कि बिल्कुल गलत है।
राव सूजा का राज्याभिषेक :- राव सातल के देहांत के बाद उनके छोटे भाई राव सूजा मारवाड़ की राजगद्दी पर बिराजे। राव सातल के कोई पुत्र नहीं था, तब उन्होंने अपने छोटे भाई सूजा के पुत्र नरा राठौड़ को गोद लिया था।
इस दृष्टि से देखा जाए, तो वास्तविक उत्तराधिकारी नरा ही थे। परन्तु नरा की माता लक्ष्मी ने उनको समझा-बुझाकर फलौदी भेज दिया। नरा की माता लक्ष्मी जैसलमेर के रावल केहर भाटी के पुत्र कलकर्ण की पुत्री व हरभू जी सांखला की दोहिती थीं।
एक अन्य ख्यात में लिखा है कि नरा ने अपने छोटे भाई ऊदा को कष्ट दिया, जिससे नाराज होकर राव सूजा ने उनको फलौदी भेज दिया।
मुझे इनमें से पहला कारण ही उचित लगता है, क्योंकि लक्ष्मी जी ने देखा होगा कि कहीं राजगद्दी के लिए पिता-पुत्र में बैर न हो जाए, इसलिए उन्होंने अपने पति राव सूजा का पक्ष लेकर बेटे नरा को फलौदी भेज दिया होगा।
12 अप्रैल, 1491 ई. को राव सूजा का राजतिलक हुआ। राव सूजा के गद्दी पर बैठते ही उनके राज्य पर बीकानेर की सेना ने चढ़ाई कर दी।
राव बीका राठौड़ की जोधपुर पर चढ़ाई :- राव जोधा ने अपने पुत्र व बीकानेर के संस्थापक राव बीका से कहा कि तुम कभी जोधपुर पर अधिकार मत करना, तब राव बीका ने राव जोधा से उनकी तलवार आदि कुछ वस्तुएं लेने की प्रार्थना की थी।
राव जोधा ने कहा कि जोधपुर जाकर मैं ये सामान भिजवा दूंगा। लेकिन राव जोधा के देहांत तक यह सामान नहीं भिजवाया जा सका, राव सातल के समयकाल में भी सामान नहीं भिजवाया गया।
आखिरकार राव सूजा के समय में राव बीका ने यह सामान लेना तय किया। राव बीका ने पड़िहार बेला को राव सूजा के पास भेजा और उक्त वस्तुओं की मांग की, परन्तु राव सूजा ने मना कर दिया।
राव बीका ने अपने सरदारों से सलाह की और जोधपुर पर ससैन्य चढ़ाई कर दी। द्रोणपुर के स्वामी बीदा राठौड़ (राव सूजा व राव बीका के भाई) 3 हज़ार सैनिकों सहित राव बीका की फ़ौज में शामिल हो गए।
राव कांधल के पुत्र अरड़कमल, राजासर के राजसी, चाचाबाद के वणीर, भाटी व जोहिया आदि भी अपनी-अपनी सेनाओं सहित राव बीका की फ़ौज में शामिल हो गए।
इस भारी भरकम फ़ौज के साथ राव बीका देशनोक होते हुए जोधपुर पहुंचे। इस समय राव सूजा मेहरानगढ़ दुर्ग में थे। राव सूजा ने किले से एक सेना भेजी, जो कि थोड़ी ही देर में राव बीका द्वारा परास्त कर दी गई।
राव बीका के आदेश से जोधपुर नगर को लूटा गया और फिर मेहरानगढ़ की घेराबंदी कर दी गई। किले में पानी के स्रोत ज्यादा नहीं थे, जिससे थोड़े ही दिनों में पानी की कमी के कारण किलेवालों को घबराहट होने लगी।
तब राव सूजा की माता हाड़ी जसमादे ने राव बीका से कहलवाया कि तुम अपने कुछ खास लोगों को किले में भेजकर सन्धि की शर्तें तय कर लो। राव बीका ने अपने मंत्रियों को किले में भेजा, चर्चा भी हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
दो दिन बाद राव सूजा ने अपनी माता से कहा कि आप स्वयं ही राव बीका के पास जाइये। फिर राजमाता जसमादे हाड़ी किले से बाहर निकलकर राव बीका से मिलने पहुंचीं। माता जसमादे ने राव बीका से कहा कि
“तूने तो अपना राज्य स्थापित कर लिया है, अब अपने छोटे भाइयों के राज भी रहने देना चाहिए”। राव बीका ने कहा कि “माजी, मैं तो केवल उन पूजनीक वस्तुओं को चाहता हूँ, जिन्हें देने का वचन स्वयं पिता राव जोधा ने दिया था।”
तब माता जसमादे के आदेश से निम्नलिखित पूजनीक वस्तुएं राव बीका को दे दी गईं :- राव जोधा की ढाल व तलवार जो कि राव जोधा को लोकदेवता हरभू जी सांखला ने दी थी, सिंहासन, चंवर, छत्र, कटार, करड,
हिरण्यगर्भ लक्ष्मीनारायण की मूर्ति, 18 भुजाओं वाली कुलदेवी माँ नागणेच्या जी की मूर्ति, भवर ढोल, वैरिशाल नगाड़ा, दलसिंगार घोड़ा, भुजाई की देग। इनमें से जो भी अस्त्र-शस्त्र थे, उनकी पूजा बीकानेर नरेश द्वारा हर विजयादशमी पर की जाती रही।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)