राव जोधा का संघर्ष :- राव जोधा मेवाड़ की सेना से बचते हुए जांगल प्रदेश में चले गए। मेवाड़ के रावत चूंडा ने मारवाड़ में कई थाने तैनात किए और फिर मेवाड़ लौट आए।
राव जोधा के चचेरे भाई नरबद राठौड़ (राव सत्ता के पुत्र) इस समय मेवाड़ में रहते थे, जिनको महाराणा ने कायलाना की जागीर दी थी।
नरबद राठौड़ ने अपने साथी राठौड़ों व महाराणा कुम्भा द्वारा दी हुई सिसोदियों की कुछ सेना लेकर राव जोधा पर आक्रमण करने हेतु मारवाड़ की तरफ कूच किया।
राव जोधा इस समय इस सेना का सामना करने की स्थिति में नहीं थे, इसलिए वे गहन मरुस्थल की तरफ चले गए। राव जोधा की अनुपस्थिति देखकर नरबद राठौड़ निराश हो गए।
जब नरबद सेना सहित लौट गए, तब राव जोधा पुनः काहुनी गांव में आ गए। धीरे-धीरे राव जोधा ने काहुनी को केंद्र बनाकर सेना एकत्र करके मंडोर जीतने के प्रयास शुरू किए।
वरजांग द्वारा राव जोधा की सहायता :- राव जोधा के चचेरे भाई वरजांग राठौड़, जो कि कपासन की लड़ाई में मेवाड़ी सेना द्वारा बन्दी बना लिए गए थे, किसी तरह कैद से छूटकर गागरोन पहुंचे।
ख्यातों में नाटकीय अंदाज़ में लिखा है कि वरजांग कैदखाने में अपने घावों पर लगाने के लिए रोज एक पट्टी मांगते थे, जब बहुत सी पट्टियां एकत्र हो गईं, तो वे उनकी रस्सी बनाकर निकल भागे।
हालांकि ये मात्र काल्पनिक बात है, क्योंकि चित्तौड़ के कैदखाने से निकलकर भागना आसान नहीं था, किले में कई द्वार थे, जहां हर पल पहरेदार चौकन्ने होकर तैनात रहते थे।
गागरोन वर्तमान में राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र के झालावाड़ जिले में स्थित है। गागरोन के स्वामी चाचिगदेव खींची चौहान ने अपनी पुत्री का विवाह वरजांग से करवाकर दहेज में अपार धन दिया।
वरजांग यह धन लेकर राव जोधा के पास आ गए। वरजांग ने सारा घटनाक्रम बताया और वह धन राव जोधा को देते हुए कहा कि आप निश्चिंत होकर मंडोर विजय का अभियान चलाइये। वरजांग द्वारा भेंट किए गए धन से राव जोधा को बड़ी उम्मीद बंधी।
राव जोधा द्वारा मंडोर पर किए गए असफल आक्रमण :- राव जोधा ने मंडोर विजय करने के कई प्रयास किए, परन्तु हर बार उन्हें असफलता मिलती। महाराणा कुम्भा प्रबल शासक थे, उनके द्वारा नियुक्त सेनाओं को परास्त करना आसान कार्य नहीं था।
राव जोधा के पास संसाधनों की लगातार कमी होती जा रही थी, उनके घोड़े व सैनिक मरते जा रहे थे। हर एक आक्रमण के बाद राव जोधा के साथी कम होते जाते और समस्याएं बढ़ती जाती।
लेकिन राव जोधा ने अनेक समस्याओं के बावजूद अपना मनोबल कम न होने दिया। समूचे मारवाड़ में बात फैलने लगी कि राव जोधा हर बार मंडोर में सिसोदियों से पराजित हो रहे हैं।
एक दिन मंडोर से पराजित होकर लौटते समय भूख से व्याकुल राव जोधा एक जाट के घर गए, जहां उस जाट की स्त्री ने उन्हें भोजन करवाया। उस स्त्री को पता नहीं कि ये राव जोधा है।
राव जोधा भूख से इतने व्याकुल थे कि सब्र नहीं हुआ। राव जोधा ने सीधे ही गरम घाट (मोठ और बाजरे की खिचड़ी) के बीच में हाथ डाला तो उनका हाथ जल गया, तब उस स्त्री ने कहा कि
“तू भी जोधा की तरह कोई मूर्ख ही लगता है। जोधा भी सीधे मंडोवर पर हमला करता है। बिना ये जाने कि पहले मंडोवर के पास की भूमि पर अधिकार करना चाहिए।”
इस घटना से राव जोधा ने सीख ली और तय किया कि अब सीधे मंडोर पर आक्रमण करने की बजाय उसके आसपास की वो भूमि, जहां सिसोदियों की पकड़ ज़रा भी कमजोर दिखाई दे, वहां हमला किया जावे।
हंसाबाई जी द्वारा राव जोधा की सहायता करने का प्रयास :- राव जोधा की दयनीय दशा देखकर मेवाड़ के महाराणा की दादी हंसाबाई (राव रणमल की बहन व राव जोधा की भुआ) ने महाराणा कुम्भा से कहा कि
“मेरे चित्तौड़ ब्याहे जाने से राठौड़ों का हर तरह से नुकसान ही हुआ है। भाई रणमल ने मोकल के हत्यारे चाचा और मेरा को मारा, मुसलमानों को हराया, मेवाड़ का नाम ऊंचा किया, पर वह भी मरवाया गया और अब उसका बेटा जोधा मरूभूमि में कष्ट भोग रहा है”
हंसाबाई जी के कहने का आशय महाराणा कुम्भा समझ गए, परन्तु यह बात रावत चूंडा को स्वीकार्य नहीं थी। हंसाबाई जी की बात सुनकर महाराणा कुम्भा ने कहा कि
“मैं रावत चुंडा के ख़िलाफ़ तो नहीं जा सकता, क्योंकि जोधा के पिता रणमल ने रावत चूंडा के भाई राघवदेव की हत्या की, इसलिए रावत चूंडा को ये बात अब तक खटकती है। पर आप जोधा से कह दीजिए कि वह मंडोवर पर अधिकार कर ले, मेरी तरफ से कोई मनाही नहीं।”
राव जोधा का हौंसला बढ़ना :- हंसाबाई जी के प्रयासों से राव जोधा को बड़ी हिम्मत मिली। राव जोधा ने रावत चूंडा द्वारा मारवाड़ में नियुक्त कुछ सरदारों को अपनी तरफ मिला लिया।
वैसे तो भाटी और राठौड़ राजपूतों में लंबे समय तक संघर्ष रहा था, लेकिन राव जोधा को भाटियों का समर्थन मिला, क्योंकि भाटियों में उनका ननिहाल था। इसी बीच 1453 ई. में मेवाड़ के रावत चूंडा सिसोदिया का देहांत हो गया।
यह खबर सुनकर राव जोधा को बड़ी तसल्ली हुई, क्योंकि रावत चूंडा, राव जोधा के विजय अभियान में सबसे बड़ी बाधा बने हुए थे। राव जोधा के सामने अब सबसे बड़ी समस्या ये थी कि उनके पास घोड़े बहुत कम थे। उन्होंने किसी प्रकार घोड़े एकत्र करना शुरू किया।
प्रसिद्ध लोकदेवता हरभू जी का राव जोधा का सहायक बनना :- हरभू जी सांखला भी इस मुहिम में राव जोधा के साथ हो गए। हरभू जी भुण्डेल के महाराज के पुत्र थे व बाबा रामदेवजी के मौसेरे भाई थे।
हरभू जी ने रामदेवजी की प्रेरणा से अस्त्र-शस्त्र त्यागकर गुरु बालीनाथ से दीक्षा ली थी। मरुस्थल की प्रजा पर हरभू जी का बड़ा प्रभाव था। राव जोधा हरभू जी के पास पहुंचे और आशीर्वाद लिया।
हरभू जी ने आशीर्वाद देकर कहा कि जोधा का राज्य जांगलू तक फैलेगा। इस तरह हरभू जी भी राव जोधा के सहायक बन गए।
अगले भाग में राव जोधा द्वारा सिसोदियों के थानों पर आक्रमण करने का वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
बडला (वर्तमान ओसियां के पास) के रावल बीकम जी राव जोधा के साथ रहे थे। जो रतनगढ़ सिंगोली से जीरण से सावा से राणा मोकल के समय से मेवाड़ी सेना द्वारा संचालित नागौर विजय कर रणमल को मंडोर पर अधिकार दिलवाया था। (सौजन्य: बडवाजी स्व श्री दूल्हे सिंह गांव तिलोली आसींद जो बडला जागीर की बही रखते हैं)
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