मारवाड़ नरेश राव चूंडा राठौड़ (भाग – 1)

मारवाड़ नरेश राव चूंडा राठौड़ :- ये राव वीरम के पुत्र थे। विश्वेश्वर नाथ रेउ के अनुसार राव चूंडा का जन्म 1377 ई. में हुआ। राव चूंडा 1383 ई. में अपने पिता के देहांत के बाद राजगद्दी पर बैठे। राव चूंडा का अन्य नाम चामुंडराय भी था।

राव चूंडा की माता ने सती होने से पहले उनको धाय को सौंपकर आल्हा चारण के यहां ले जाने को कहा था, इसलिए राव चूंडा का पालन पोषण कालाऊ गांव में आल्हा चारण के यहां हुआ।

राव चूंडा पर सर्प द्वारा फण से छाया करने की घटना का वर्णन 2 बार मिलता है। एक बार तो जब वे 1 वर्ष के थे तब व दूसरी बार आल्हा चारण ने राव चूंडा के बाल्यकाल में जंगल में यह दृश्य देखा।

आल्हा चारण राव चूंडा को महेवा के रावल मल्लीनाथ के पास ले गए, जहां मल्लीनाथ जी ने उनको सालोड़ी गांव जागीर में दिया।

राव चूंडा राठौड़

(जिन पाठकों ने मेरे पिछले लेख पढ़े हैं, उनके मन में प्रश्न आ सकता है कि मल्लीनाथ जी के देहांत का वर्णन तो पहले आ चुका है, फिर यहां पुनः उनका वर्णन कैसे आया।

वास्तव में मारवाड़ के पिछले 3-4 शासकों का जो उल्लेख किया गया है, वे अलग-अलग पीढ़ी से ना होकर भाई-बन्धु ही थे, जिनके खेड़ और महेवा पर अलग-अलग राज रहे। राव चूंडा के पिता राव वीरम मल्लीनाथ जी के ही भाई थे।)

चूंडा जी की आयु कम होने के कारण मल्लीनाथ जी ने सालोड़ी का संरक्षक ईंदा पड़िहार शिखरा को बनाया। शिखरा ने लूटपाट से बहुत सा धन जमा कर लिया, इस बात की सूचना रावल मल्लीनाथ को मिली, तो वे सालोड़ी पहुंचे।

मल्लीनाथ जी के आने की सूचना चूंडा जी को पहले ही मिल गई, जिससे वे सतर्क हो गए और उन्होंने लुटे हुए घोड़े, धन आदि वहां से अन्यत्र स्थान पर गुप्त रूप से रख दिए। चूंडा जी ने बढ़िया सत्कार करके मल्लीनाथ जी को प्रसन्न कर दिया।

एक अन्य ख्यात में लिखा है कि चूंडा जी के उपद्रव से पिंड छुड़ाने के लिए मल्लीनाथ जी ने उनको सालोड़ी की जागीर दी, परन्तु यह सही नहीं है, क्योंकि अधिकतर ख्यातें उस समय उनकी आयु बहुत कम बताती हैं।

चूंडा जी की सेवा से प्रसन्न होकर मल्लीनाथ जी ने चूंडा को ईंदा राजपूतों के साथ गुजरात के निकट एक सीमा चौकी की रक्षा करने के लिए नियुक्त किया। ख्यातों में थाने का नाम ‘काछा का थाना’ लिखा है, सम्भवतः ये कच्छ के निकट कोई थाना रहा होगा।

एक दिन राव चूंडा ने एक सौदागर के घोड़े छीनकर अपने राजपूतों में बांट दिए, जिसकी शिकायत उस सौदागर ने दिल्ली जाकर सुल्तान से की। सुल्तान ने अपने सैनिकों को मल्लीनाथ जी के पास भेजकर घोड़े मांगे, तो मल्लीनाथ जी ने राव चूंडा से कहलवाया कि घोड़े लौटा दो।

मल्लीनाथ जी

तब राव चूंडा ने कहा कि घोड़े तो मैंने बांट दिए, बस अपनी सवारी के लिए ये जो एक घोड़ा रखा है, चाहो तो इसे ले जाओ। मल्लीनाथ जी को हर्जाने स्वरूप घोड़ों की रकम सुल्तान को चुकानी पड़ी।

इस बात से नाराज होकर मल्लीनाथ जी ने राव चूंडा को अपनी सेवा से निकाल दिया। राव चूंडा ईंदावाटी चले गए, जहां ईंदा राजपूतों के सहयोग से साथी एकत्र करने लगे। कुछ दिन बाद राव चूंडा ने डीडणा नामक गाँव लूट लिया।

मंडोवर पर राव चूंडा का अधिकार :- मुसलमानों ने पड़िहारों से मंडोवर को छीन लिया था, जिसके बाद वहां के मुसलमान हाकिम ने अपने घोड़ों के लिए सभी गांवों से 2-2 गाड़ी भरकर घास मंगवाई थी।

ईंदावाटी से भी घास मंगवाई गई, तब ईंदा राजपूतों ने राव चूंडा से कहा कि हमें किसी तरह मंडोवर पर अधिकार करना चाहिए। राव चूंडा ने घास की गाड़ियां भरवाई और हर एक गाड़ी में 4-4 हथियारबंद राजपूतों को छिपाए रखा।

साथ ही हर एक गाड़ी के साथ 2 राजपूत आगे व पीछे चलने वाले रखे। ऐसी लगभग 100 गाड़ियां तैयार करके वे मंडोवर के गढ़ के बाहर पहुँच गए।

द्वारपाल ने एक गाड़ी की जांच करने के लिए भाले को घास में मारा, जिससे एक राजपूत ज़ख्मी हो गया। हालांकि उस राजपूत ने आवाज नहीं निकाली, जिससे द्वारपाल को शक नहीं हुआ और सब गाड़ियां मंडोवर के गढ़ में दाखिल हो गईं।

रात के वक्त 500 राजपूतों ने अचानक गाड़ियों से निकलकर छापामार हमला किया, जिससे मुसलमानों को सम्भलने का अवसर नहीं मिला। भारी अफरा-तफरी मची, जिसमें कई मुसलमान मारे गए।

राव चूंडा ने ईंदा राजपूतों के सहयोग से मंडोवर का गढ़ जीतकर इतिहास रच दिया। यह घटना 1394 ई. की है। ईंदा राजपूतों की बहादुरी से किले पर तो अधिकार हो गया, पर अब वहां का शासक किसे बनाया जावे।

इस बात पर विचार किया जाने लगा। ईंदा राजपूतों ने तय किया कि यदि चूंडा जी हमारे 84 गांवों में दखल ना देने की शपथ लें, तो हम उन्हें मंडोवर की गद्दी पर बिठा देंगे।

राव चूंडा राठौड़

ईंदों ने अपने मुखिया राणा उगमसी की पौत्री व गगदेव की पुत्री का विवाह चूंडा जी से करवा दिया और दहेज में मंडोवर का किला सौंप दिया। (ग्रंथ वीरविनोद में गगदेव की जगह रायधवल नाम लिखा है)

इस संबंध में एक दोहा प्रसिद्ध है :- ईंदा रो उपकार, कमधज कदे न वीसरे। चूंडो चँवरी चाड़, दियो मंडोवर दायजे।।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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