1527 ई. – कुँवर विक्रमादित्य व कुँवर उदयसिंह को रणथंभौर की जागीर मिलना :- महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के देहान्त के बाद कुंवर रत्नसिंह मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने।
1527 ई. में जब बूंदी के राव नारायणदास हाड़ा का देहांत हुआ और उनके पुत्र राव सूरजमल हाड़ा गद्दी पर बैठे, तब महाराणा सांगा ने उनके लिए लाललश्कर नामक एक घोड़ा जिसकी कीमत उस ज़माने में 20 हज़ार रुपए की थी व 60 हज़ार रुपए का मेघनाद नामक हाथी भेंट किया।
मेरे विचार से इतनी ज्यादा कीमत नहीं रही होगी, परन्तु ये घोड़ा व हाथी सोने-चांदी के सामान सहित भेंट किया गया होगा। इन राव सूरजमल (सूर्यमल) की बहन रानी कर्मावती महाराणा सांगा की पत्नी थीं।
महाराणा सांगा को उनकी दूसरी रानी कर्मावती हाड़ी से अधिक लगाव था। रानी कर्मावती के 2 पुत्र थे :- विक्रमादित्य व उदयसिंह। एक दिन रानी कर्मावती ने महाराणा सांगा से कहा कि
“दीवाण (महाराणा) बहुत वर्ष तक सलामत रहें, परन्तु आपके बाद रतनसिंह गद्दी पर बैठेगा। सम्भव है कि वह मेरे पुत्रों विक्रम और उदय को जागीर न दे, इस ख़ातिर आप पहले ही उनको जागीर दिलवा दें, तो तसल्ली हो जाएगी और बाद में कोई बखेड़ा भी न होगा”
महाराणा सांगा ने पूछा कि “कौनसी जागीर चाहिए ?” तो रानी कर्मावती ने कहा कि “रणथंभौर का किला परगनों सहित इन दोनों के नाम करके मेरे भाई बूंदी के मालिक सूरजमल हाड़ा को इनका संरक्षक बना दिया जावे, तो दोनों कुँवर की बुनियाद मज़बूत हो जाने में कोई संदेह न रहेगा”
एक दिन महाराणा सांगा ने राजधानी से बाहर किसी जगह दरबार लगाया और राव सूरजमल हाड़ा से कहा कि “हम तुम्हारे भाणजे विक्रम और उदय को रणथंभौर की जागीर देकर तुम्हें उनका हाथ पकड़ाते हैं”
सूरजमल हाड़ा ने कहा “अगर आपके हुक्म से मैं इन दोनों का संरक्षक बनूं, तो कल हो सकता है कि कुँवर रतनसिंह को ये नागवार गुजरे और वो रणथंभौर पर हमला कर दे। इस खातिर कुँवर रतनसिंह की इजाज़त भी मिल जाती, तो बेहतर रहता”
महाराणा सांगा ने कुँवर रतनसिंह को बुलावा भिजवाया और पूछा तो रतनसिंह ने हाँ कर दी। (अपने परम प्रतापी पिता महाराणा सांगा के आदेश के विरुद्ध जाने का हौंसला न होने के कारण रतनसिंह को हां में हां मिलानी पड़ी)
मुगल बादशाह बाबर का परिचय :- बाबर तीमूर के वंशज उमरशेख मिर्ज़ा का बेटा था। बाबर की माँ चंगेज़ खां की वंशज थी। उमरशेख के मरने के बाद बाबर 11 वर्ष की आयु में फरगाना की गद्दी पर बैठा।
कम उम्र से ही बाबर ने लड़ाइयों में बहादुरी दिखाना शुरू कर दिया और कभी कोई प्रदेश जीतता तो कभी हार जाता, पर अपनी हार से वह निराश नहीं होता था। 1504 ई. में उसने काबुल पर कब्ज़ा किया।
1505 में उसने हिंदुस्तान में प्रवेश करने के लिए कदम आगे बढ़ाए और सिंधु को पार किए बग़ैर ही आसपास के प्रदेशों को लूटता हुआ काबुल लौट गया। 1507 में शैबानी खां से पराजित होकर बाबर हिंदुस्तान की तरफ़ आया, लेकिन इस बार भी वह कुछ समय रुककर काबुल लौट गया।
1516 ई. में बाबर ने तीसरी बार हिंदुस्तान में प्रवेश किया और इस बार सियालकोट तक चला आया। सैयदपुर में उसने 30 हज़ार लोगों को क़ैद किया और काबुल लौट गया।
1524 ई. में पंजाब के हाकिम दौलत खां लोदी ने इब्राहिम लोदी से विद्रोह करके बाबर को हिंदुस्तान में आमंत्रित किया।
1526 ई. में पानीपत की लड़ाई हुई, जिसमें बाबर ने 40,000 की फ़ौज का नेतृत्व किया और दिल्ली के बादशाह इब्राहिम लोदी को परास्त किया। इस लड़ाई में इब्राहिम मारा गया और दिल्ली पर बाबर का कब्ज़ा हो गया।
इब्राहिम लोदी नाममात्र का बादशाह था। बाबर जानता था कि उसे अगर हिंदुस्तान में अपना रुतबा कायम करना है, तो ये काम मेवाड़ के महाराणा सांगा के जीवित रहते सम्भव नहीं।
हुमायूं की पूर्व की तरफ चढ़ाई :- अपनी आत्मकथा बाबरनामा में बाबर लिखता है “पूर्व का बागी अमीर नसीर खां 40-50 हज़ार की फ़ौज लेकर गंगा किनारे आ गया। दूसरी तरफ़ राणा सांगा खंडार के किले पर फ़साद करने की तैयारी में है। बरसात का मौसम भी
सिर पर है, इस ख़ातिर अब बागियों पर चढ़ाई करनी चाहिए या राणा सांगा पर। मैंने सब अमीरों (सिपहसालारों, मंत्रियों) को पूछा, तो उन्होंने कहा कि राणा सांगा तो दूर है, मालूम नहीं कि पास आ भी सकेगा
या नहीं, पर ये बागी तो पास आ गए हैं इसलिए इनको मिटाना जरूरी है। पर हुमायूं ने अर्ज किया कि बागियों से निपटने के लिए मैं ही कूच करता हूँ, तो मैंने उसको फ़ौज समेत रवाना किया”
मालूम नहीं कि डॉ. ओझा जैसे इतिहासकारों ने बाबर के फौजी आंकड़े कम क्यों लिखे। उन्होंने पानीपत की लड़ाई के वक्त बाबर की फौज 12000 होना बयान किया है, जबकि बाबर की फौज इससे कहीं अधिक थी। बाबर के वास्तविक फौजी आंकड़ों पर आगे विस्तार से लिखा जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
Hello Tanveer Singh Sanrangdevot Ji,
Your contents are great to understand the historical terms of the Mewar Dynasty. It helped me a lot to understand the mistakes of historical knowledge.
Thank you for providing such valuable material on the History.
Also, I would like to personally meet you & congratulate on the same
Author
Thank you so much for the appreciations. We will meet whenever time comes. I live in udaipur