रमाबाई जी के मेवाड़ आने से संबंधित ऐतिहासिक भ्रम व वास्तविक कारण :- कुंवर पृथ्वीराज कुम्भलगढ़ पहुंचे। वहां उन्हें खबर मिली की महाराणा कुम्भा की पुत्री व कुंवर पृथ्वीराज की भुआ रमाबाई, जिनका विवाह गिरनार के राजा मंडलीक से हुआ।
रमाबाई व उनके पति में झगड़े हुआ करते थे। राजा मंडलीक रमाबाई को बहुत दुख देते। कुंवर पृथ्वीराज को पता चलते ही बड़े क्रोध में उसी वक्त गिरनार की तरफ रवाना हुए।
कुंवर पृथ्वीराज ने राजा के माफी मांगने पर जीवनदान दिया पर कुंवर ने जाते वक्त राजा का एक कान काट दिया और रमाबाई को पालकी में बिठाकर कुम्भलगढ़ आ गए।
रमाबाई को उनके भाई महाराणा रायमल ने जावर का परगना दिया। रमाबाई ने अपना शेष जीवन मेवाड़ में ही बिताया। रमाबाई ने रामस्वामी का मन्दिर, रामकुण्ड, विष्णु मन्दिर आदि बनवाए।
मेवाड़ की ख्यातों में राजा मंडलीक द्वारा रमाबाई जी को दुख देने व उडणा पृथ्वीराज द्वारा अपनी भुआ/बुआ रमाबाई जी को मेवाड़ ले आने की बातें लिखी हैं, जो काल्पनिक हैं।
क्योंकि रमाबाई जी द्वारा बनवाए गए विष्णु मंदिर की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि उनके व राजा मंडलीक के बीच संबंध अच्छे थे।
इतिहासकार रामवल्लभ सोमानी जी व ओझा जी के अनुसार राजा मंडलीक ने महमूद बेगड़ा के हमले में परास्त होकर मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए रमाबाई जी सदा-सदा के लिए मेवाड़ आ गईं। एक अन्य कारण ये भी हो सकता है कि राजा मंडलीक के देहांत के बाद रमाबाई जी मेवाड़ आ गई हों।
कुंवर पृथ्वीराज की हत्या :- कुंवर पृथ्वीराज की बहन आनन्दबाई का विवाह सिरोही के राव जगमाल देवड़ा से हुआ था। राव जगमाल आनन्दबाई को बहुत दुख देते थे। कहते हैं कि वे सोते वक्त पलंग के पाये को आनन्दबाई के हाथ पर रखा करते थे।
राव जगमाल ने कई बार आनंदबाई से कहा कि “कहाँ है तेरा बहादुर भाई ? बुला उसको”। पर आनंदबाई ने ये बात अपने भाई कुँवर पृथ्वीराज को नहीं बताई।
कुंवर पृथ्वीराज को किसी तरह यह बात मालूम पड़ी, तो उन्होंने अपने साथियों समेत सिरोही की तरफ़ कूच किया। कुँवर ने अपने साथियों को सिरोही गांव से बाहर तैनात रखा और अकेले ही आधी रात को राव जगमाल के महल में घुसकर जो सुना था वो देख भी लिया।
कुँवर ने जगमाल को ठोकर मारकर कहा कि “राव, तुम मेरी बहन को इस तरह तकलीफ देकर चैन से कैसे सो सकते हो ?”
कुंवर पृथ्वीराज अपनी तलवार से राव जगमाल को मारने ही वाले थे कि तभी आनन्दबाई की विनती पर उन्हें जीवित छोड़ दिया। राव जगमाल ने भोजन की तैयारी की और कुँवर को आमंत्रित किया।
भोजन के बाद कुंवर पृथ्वीराज कुम्भलगढ़ के लिए निकलने वाले थे कि तभी राव जगमाल ने कुछ विशेष माजून की 3 गोलियाँ दीं।
कुम्भलगढ़ के करीब पहुंचकर कुंवर पृथ्वीराज ने ये गोलियां खा ली, जिससे किले में जाकर इनका देहान्त हुआ।
इस तरह मेवाड़ की गद्दी का घोषित योग्यतम उतराधिकारी जो एक निर्भीक वीर, अदम्य साहसी, अप्रतिम शौर्य का प्रतीक, दृढ निश्चयी, दुश्मन पर तीव्रता से आक्रमण करने वाला, जिसकी हिन्दुतान को भविष्य में जरुरत थी, अपने बहनोई के विश्वासघात की बलि चढ़ गया।
इन राजकुमार की एक छतरी तो जहां इनका देहान्त हुआ वहां है व दूसरी छतरी मामादेव कुण्ड के पास है जहां इनका दाह संस्कार हुआ। इनकी छतरी 12 खंभों की है। कुंवर पृथ्वीराज की 16 पत्नियां सती हुई।
कर्नल जेम्स टॉड लिखता है “उसका अनुमान करना भी असंभव है, तो भी एक बात निश्चित है कि यदि अपनी प्रारंभ की पराजयों के पश्चात बाबर को सांगा के स्थान पर पृथ्वीराज का सामना करना पड़ता तो बहुत संभव है कि 1527 में खानवा की लड़ाई में बाबर हार जाता और भारत भूमि उत्तर-पश्चिम के आक्रमणकारियों से फिर एक बार मुक्त हो जाती”
जेम्स टॉड का ये कथन अतिश्योक्ति से भरा हुआ नहीं है। उसकी कल्पना वास्तव में सत्य के नज़दीक है कि बाबर का सामना पृथ्वीराज से होता तो बाबर की पराजय सम्भव थी। बाबर जैसे शत्रुओं का सामना करने के लिए कुटिल बुद्धि का होना भी आवश्यक था।
कुँवर पृथ्वीराज युद्धों को केवल विजय पाने के लिए लड़ते थे, ना कि वीरगति जैसे गौरव को लक्ष्य बनाकर। गयासुद्दीन खिलजी को उसके शिविर में घुसकर बन्दी बनाकर किले में लाकर उन्होंने अपना कौशल दर्शाया था।
मेरा अनुमान है कि यदि बाबर से कुँवर पृथ्वीराज का सामना होता, तो खानवा युद्ध की नौबत ही न आती, क्योंकि बयाना में ही बाबर को निर्णायक रूप से पराजित कर दिया जाता।
कुँवर पृथ्वीराज के देहांत के बाद महाराणा रायमल के लिए भी समस्या बढ़ गई, क्योंकि सबसे बड़े कुँवर पृथ्वीराज का देहांत हो गया, दूसरे कुँवर जयमल भी मारे गए व तीसरे कुँवर संग्रामसिंह लापता थे। नतीजतन महाराणा रायमल ने अपने चौथे पुत्र कुँवर जयसिंह को उत्तराधिकारी घोषित किया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)