मेवाड़ के शासकों की वंशावली

मेवाड़ के शासक भगवान श्री राम के पुत्र कुश के वंशज बताए गए हैं। इस वंश में 6ठी सदी में गुहिल नाम के प्रतापी शासक हुए, जो मेवाड़ के गुहिल वंश के मूलपुरुष हैं।

गुहिल के बाद क्रमशः भोज, महेंद्र नाग, शिलादित्य द्वितीय (646 ई. के करीब), अपराजित (661 ई. के करीब), महेंद्र द्वितीय व बप्पा रावल हुए। प्रतापी शासक बप्पा रावल मेवाड़ के प्राचीन शासकों में सबसे प्रसिद्ध शासक हैं।

बप्पा रावल के बाद क्रमशः रावल खुमाण प्रथम, रावल मत्तट, रावल भर्तृभट्ट प्रथम शासक हुए। रावल भर्तृभट्ट के छोटे पुत्र ईशानभट्ट ने चाटसू (चाकसू) की गुहिल शाखा की नींव रखी। इस गुहिल शाखा में 12 शासकों के नाम मिलते हैं।

भर्तृभट्ट के ज्येष्ठ पुत्र सिंह मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। रावल सिंह का शासनकाल 8वीं सदी के उत्तरार्द्ध में रहा। फिर रावल खुमाण द्वितीय मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। रावल खुमाण का नाम इतना प्रसिद्ध हुआ कि बाद के शासक गर्व से स्वयं को खुमानवंशी बतलाते थे।

रावल खुमाण द्वितीय के बाद क्रमशः रावल महायक (शासनकाल 837 ई.-877 ई.), रावल खुमाण तृतीय (877-926 ई.), रावल भर्तृभट्ट द्वितीय हुए। रावल भर्तृभट्ट द्वितीय के पुत्र रावल अल्लट हुए, जिनको आहाड़ का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।

रावल अल्लट

इन्होंने प्रतिहारों को परास्त किया था। 971 ई. में रावल अल्लट के पुत्र नरवाहन मेवाड़ के शासक बने। इनके बाद शालिवाहन शासक बने, काठियावाड़ के गोहिल इन्हीं शालिवाहन के वंशज हैं।

तत्पश्चात रावल शक्तिकुमार (977-996 ई.) गद्दी पर बैठे। इनके समय परमार राजा मुंज ने आहाड़ का विध्वंस किया। फिर अम्बाप्रसाद शासक हुए। इस समयकाल में परमारों ने चित्तौड़गढ़ पर अधिकार कर लिया। अम्बाप्रसाद चौहानों से लड़ते हुए काम आए।

इनके बाद क्रमशः शुचिवर्मा, नरवर्मा, कीर्तिवर्मा नाम मिलते हैं, परन्तु ये नाम मेवाड़ की वंशावली में गलती से सम्मिलित कर लिए गए। ये नाम मालवा के परमार शासकों के हैं।

अम्बाप्रसाद के उत्तराधिकारी रावल वैराट हुए। इनके बाद क्रमशः हँसपाल, वैरिसिंह, विजयसिंह (1107-1117 ई.), अरिसिंह, चोडसिंह, विक्रमसिंह (1149 ई.) शासक हुए। इस समयकाल में चित्तौड़गढ़ पर चालुक्यों का अधिकार था।

विक्रमसिंह के बाद रणसिंह/कर्णसिंह शासक हुए। कर्णसिंह के 3 पुत्र हुए :- 1) क्षेमसिंह, जिनसे रावल शाखा चली। 2) माहप 3) राहप, जिनसे राणा शाखा चली। राणा शाखा वाले मेवाड़ के सामन्त रहे व रावल रतनसिंह के बाद मेवाड़ के शासक बने।

क्षेमसिंह के ज्येष्ठ पुत्र सामंतसिंह वागड़ चले गए। डूंगरपुर-बांसवाड़ा वाले गुहिल इन्हीं सामंतसिंह के वंशज हैं। सामंतसिंह के छोटे भाई कुमारसिंह ने चालुक्यों से सन्धि करके 1179 ई. में नाडौल के चौहान राजा कीर्तिपाल को परास्त करके मेवाड़ पर अधिकार कर लिया।

कुमारसिंह के बाद क्रमशः रावल मथनसिंह (1185 ई.), रावल पद्मसिंह (1191-1213 ई.), रावल जैत्रसिंह (1213-1253 ई.) शासक हुए। रावल जैत्रसिंह ने चौहानों, चालुक्यों व परमारों को परास्त किया, इल्तुतमिश से लड़ाइयां लड़े, नागदा विध्वंस के बाद चित्तौड़गढ़ को राजधानी बनाई। इनका युग मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्णकाल था।

रावल जैत्रसिंह

इनके बाद क्रमशः रावल तेजसिंह (शासनकाल 1253-1273 ई.), रावल समरसिंह (1273-1302 ई.), रावल रतनसिंह (1302-1303 ई.) शासक हुए। रावल रतनसिंह के छोटे भाई कुम्भकर्ण के वंश में नेपाल वालों का होना बयान किया जाता है।

रावल रतनसिंह के समय अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण करके चित्तौड़गढ़ दुर्ग जीत लिया, किले में रानी पद्मिनी के नेतृत्व में जौहर हुआ। रावल रतनसिंह मेवाड़ की रावल शाखा के अंतिम शासक हुए।

राणा राहप के वंशज महाराणा हम्मीर ने 1335 ई. के बाद चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर पुनः विजय प्राप्त की और मेवाड़ के उद्धारक कहलाए। महाराणा हम्मीर के बाद क्रमशः महाराणा क्षेत्रसिंह (1364-1382 ई.), महाराणा लाखा (1382-1420 ई.), महाराणा मोकल (1420-1433 ई.), महाराणा कुम्भा (1433-1468 ई.) शासक हुए।

महाराणा कुम्भा ने मालवा और गुजरात के सुल्तानों को परास्त करके, 32 दुर्गों का निर्माण करवाकर व अनेक ग्रंथों की रचना करके इतिहास रच दिया। महाराणा कुम्भा के छोटे भाई क्षेमकर्ण के वंशज प्रतापगढ़ के सिसोदिया हैं।

महाराणा कुम्भा की हत्या करके उनके ज्येष्ठ पुत्र उदयसिंह प्रथम ने मेवाड़ की गद्दी हथिया ली। तत्पश्चात उदयसिंह के छोटे भाई रायमल ने उदयसिंह को परास्त किया। महाराणा रायमल (1473-1509 ई.) के बाद परमप्रतापी शासक महाराणा सांगा (1509-1528 ई.) मेवाड़ के शासक बने।

महाराणा सांगा के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र महाराणा रतनसिंह (1528-1531 ई.) शासक बने। 1531 ई. में रतनसिंह के छोटे भाई विक्रमादित्य गद्दी पर बैठे, जिनके शासनकाल में गुजरात के बहादुरशाह ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया और रानी कर्णावती के नेतृत्व में जौहर हुआ।

दासीपुत्र बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी। विक्रमादित्य के छोटे भाई महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने 1540 में बनवीर को परास्त कर दिया। 1568 ई. में अकबर ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया, तब मेवाड़ के सामन्त रावत पत्ता की पत्नी फूल कंवर के नेतृत्व में जौहर हुआ।

1572 ई. में महाराणा उदयसिंह के देहांत के बाद वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप गद्दी पर बैठे, जिनके नाम से आज हिंदुस्तान का बच्चा-बच्चा परिचित है। महाराणा प्रताप के बाद महाराणा अमरसिंह (1597-1620) हुए, जिन्होंने जहांगीर से 17 बड़ी लड़ाइयां लड़ी

महाराणा प्रताप

फिर क्रमशः महाराणा कर्णसिंह (1620-1628), महाराणा जगतसिंह (1628-1652), महाराणा राजसिंह (1652-1680) शासक हुए। महाराणा राजसिंह ने औरंगज़ेब से लड़ाइयां लड़ी और राजसमन्द झील बनवाई।

महाराणा राजसिंह के बाद महाराणा जयसिंह (1680-1698) हुए, जिन्होंने जयसमन्द झील बनवाई। महाराणा जयसिंह के बाद क्रमशः महाराणा अमरसिंह द्वितीय (1698-1710), महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय (1710-1734), महाराणा जगतसिंह द्वितीय (1734-1751),

महाराणा प्रतापसिंह द्वितीय (1751-1754), महाराणा राजसिंह द्वितीय (1754-1761), महाराणा अरिसिंह (1761-1773), महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय (1773-1778), महाराणा भीमसिंह (1778-1828) शासक हुए। महाराणा भीमसिंह के शासनकाल में 1818 ई. में मेवाड़ व अंग्रेजों के बीच सन्धि हुई।

महाराणा भीमसिंह के बाद क्रमशः महाराणा जवानसिंह (1828-1838), महाराणा सरदारसिंह (1838-1842), महाराणा स्वरूपसिंह (1842-1861), महाराणा शम्भूसिंह (1861-1874), महाराणा सज्जनसिंह (1874-1884), महाराणा फतहसिंह (1884-1930) हुए।

महाराणा फतहसिंह के पुत्र महाराणा भूपालसिंह रियासतकालीन मेवाड़ के अंतिम महाराणा हुए। महाराणा भूपालसिंह के बाद महाराणा भगवतसिंह गद्दी पर बैठे और उनके पुत्र महाराणा महेंद्रसिंह मेवाड़ के वर्तमान महाराणा हैं।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

3 Comments

  1. Amar deep rajput
    April 2, 2022 / 4:13 pm

    Kya jaiswar bhati ke bare me kuch history batayenge

  2. प्रभात चतुर्वेदी
    April 3, 2022 / 6:05 am

    कृपया श्री तनवीर सिंह जी सारंगदेवोत के टेलीफोन नंबर दिरावें।मैं लेखक हूं मेरी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। मैं मेवाड़ के इतिहास पर एक उपन्यास लिख रहा हूं, कुछ बिन्दुओं पर चर्चा करना चाहता हूं। मेरा फोन 9001055356 है।

  3. Kartik
    April 9, 2022 / 4:02 pm

    Inke paas itni detail kaise hai kya aapne bhi koi book likhi hai shri sanrangdev

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