मेवाड़ के महाराणा मोकल (भाग – 2)

महाराणा मोकल द्वारा नागौर के हाकिम फिरोज़ खां को शिकस्त देना :- नागौर के हाकिम फिरोज़ खां ने मेवाड़ की सरहद पर छेड़छाड़ की, जिससे क्रोधित होकर महाराणा मोकल ने फौज समेत नागौर पर चढ़ाई कर दी। इस लड़ाई में महाराणा का घोड़ा मारा गया।

डोडिया धवल के पोते सबलसिंह ने अपना घोड़ा महाराणा को दिया और खुद वीरगति को प्राप्त हुए। महाराणा की तरफ से 3000 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए व शत्रुओं के हज़ारों सैनिक मारे गए। मेवाड़ी फौज विजयी रही, जिसका उल्लेख उसी ज़माने की प्रशस्तियों में मौजूद है।

हालांकि फ़ारसी तवारीखों में फ़िरोज़ को विजयी बताया गया है। मेवाड़ वालों की तरफ से 3 हज़ार सैनिक काम आने वाली बात भी फ़ारसी तवारीखों में ही लिखी है, इसलिए इस आंकड़े पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में फ़िरोज़ खां की सहायता के लिए महमूद द्वारा फ़ौज सहित महाराणा के विरुद्ध आने का वर्णन लिखा है। ओझाजी ने इस महमूद को गुजरात का अहमदशाह माना है, जो कि गलत है, क्योंकि कायम खां रासो में स्पष्ट रूप से इसका नाम महमूद ही लिखा है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित मंदिर

ग्रंथ वीरविनोद के अनुसार महाराणा मोकल व फ़िरोज़ खां के बीच 2 युद्ध हुए, जिनमें पहले युद्ध में महाराणा की पराजय हुई और दूसरे युद्ध में फ़िरोज़ खां पराजित हुआ। लेकिन इतिहासकार रामवल्लभ सोमानी का मानना है कि फ़िरोज़ और महाराणा मोकल के बीच एक ही युद्ध हुआ था।

1428 ई. में महाराणा मोकल ने स्वयं चित्तौड़गढ़ दुर्ग में शिलालेख खुदवाया, जिसमें लिखा है कि “महाराणा मोकल ने उत्तर के मुसलमान नरपति पीरोज पर चढ़ाई कर युद्धक्षेत्र में उसके सारे सैन्य को नष्ट कर दिया।”

मेवाड़ की शक्ति क्षीण होना :- महाराणा मोकल के शासनकाल के अंतिम दिनों में मेवाड़ की शक्ति क्षीण होने लगी। फ़िरोज़ खां ने अजमेर तक का भाग मेवाड़ वालों से छीन लिया। सिरोही के देवड़ा राजपूतों ने गोड़वाड़ का इलाका मेवाड़ वालों से छीनना शुरू कर दिया। बूंदी वालों ने मांडलगढ़ तक का इलाका मेवाड़ वालों से छीन लिया।

1433 ई. – महाराणा मोकल की हत्या :- महाराणा क्षेत्रसिंह (महाराणा मोकल के दादाजी) की पासवान करमा खातण से उनको 2 बेटे हुए थे, जिनको ‘चाचा’ व ‘मेरा’ नाम से जाना गया।

एक दिन महाराणा मोकल ने एक वृक्ष की तरफ इशारा करके चाचा और मेरा (महाराणा क्षेत्रसिंह की अवैध सन्तानों) से पूछा कि “इस वृक्ष का क्या नाम है ?”

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का भीतरी दृश्य

चाचा और मेरा की मां एक खातिन थी और उस ज़माने में एक धारणा प्रचलित थी कि वृक्ष की जाति खाती ही पहचानते हैं। खाती लकड़ी का व्यवसाय करते थे। हालांकि महाराणा मोकल ने ये बात शुद्ध रूप से पूछी थी, ना कि उनको चिढ़ाने के लिए।

पर ये बात उन दोनों भाइयों को चुभ गई और वे महाराणा को मारने का मौका ढूंढने लगे। इन्हीं दिनों गुजरात के बादशाह अहमदशाह ने बड़ी फौज के साथ मेवाड़ पर चढाई की। उसने डूंगरपुर, देलवाड़ा, केलवाड़ा वगैरह मेवाड़ी इलाके लूट लिए।

अहमदशाह झीलवाड़ा की तरफ गया और वहां के मंदिर तोड़ने लगा। महाराणा मोकल भी मेवाड़ी फौज के साथ चित्तौड़ से निकले। महाराणा के साथ चाचा व मेरा भी थे, जो महाराणा को मारने की फिराक में थे।

चाचा व मेरा ने महाराणा के बहुत से आदमियों को अपनी तरफ मिला लिया। चाचा व मेरा ने महाराणा मोकल के खास मलेसी डोडिया को अपने पक्ष में करना चाहा। मलेसी डोडिया ने पूछा कि “क्या करना होगा ?” तो इन षड्यंत्रकारियों ने कहा कि “महाराणा को ज़हर देना होगा।”

मलेसी तो महाराणा के हितैषी थे, इसलिए सारी बात महाराणा को बता दी। मौका देखकर षड्यंत्रकारियों ने महाराणा के खेमे की तरफ कूच किया।

चाचा, मेरा को आते देख मलेसी ने महाराणा से कहा कि “ये खातण वाले इधर ही आ रहे हैं, ये आप पर चूक (षड्यंत्र) करना चाहते हैं। गेहूं के साथ जौ का रहना ठीक नहीं है।” महाराणा ने कहा कि “इन हरामखोरों को यही समय मिला था चूक करने का ?”

महाराणा की तरफ वाले राजपूत अचानक हुए हमले से संभल न सके और हमलावरों को महाराणा के खेमे की तरफ जाने का मौका मिल गया। चाचा, मेरा व महपा पंवार ने अपने 20-30 आदमियों के साथ महाराणा के खेमे में प्रवेश करना चाहा, पर डोडिया मलेसी ने रोकने की कोशिश की।

सब लोग महाराणा के खेमे में पहुंचे। महाराणा मोकल, महारानी हाड़ी व मलेसी डोडिया, इन तीनों ने अपनी तलवारें निकालीं और शत्रुओं पर टूट पड़े। महाराणा का शिविर रक्त से सन गया।

घाव पर घाव लगते रहे, परन्तु तलवारें हाथ से नहीं छूट रही थीं। महारानी हाड़ी ने भी ऐसी वीरता दिखाई कि शत्रु भी हैरान रह गए। बूंदी की हाड़ी रानियां यूँ ही इतिहास में प्रसिद्ध नहीं हुई, वीरता उनके लहू में थी।

महाराणा मोकल

एक के बाद एक शत्रु की लाश से शिविर भरता जा रहा था, परन्तु संख्या में अधिक होने के कारण शत्रु हावी होते जा रहे थे। महाराणा मोकल, महारानी हाड़ी व मलेसी डोडिया अपने लहू की अंतिम बून्द तक लड़ते रहे।

ये तीनों कुल 19 दगाबाजों को मारकर वीरगति को प्राप्त हुए, जिनमें से महाराणा मोकल के हाथों 9, महारानी हाड़ी के हाथों 5 व मलेसी डोडिया के हाथों 5 दगाबाज कत्ल हुए।

चाचा व महपा पंवार जख्मी होकर अपने बाल-बच्चों समेत कोटड़ी चले गए, परन्तु उन्होंने जो अपराध किया था, वह अक्षम्य था। उन्होंने महाराणा मोकल की हत्या ऐसे समय में कर दी, जब महाराणा उस गुजराती बादशाह को धूल चटाने की ठान चुके थे।

इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है कि “महाराणा मोकल जैसे सुयोग्य शासक की मृत्यु आपसी वैमनस्य के कारण हो गई, जो बड़े दुःख का विषय है।”

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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