सिंगोली का युद्ध :- अब तक मेवाड़ 2 बार सीधे तौर से दिल्ली सल्तनत से युद्ध कर चुका था। पहली बार रावल जैत्रसिंह ने इल्तुतमिश को टक्कर दी थी व दूसरी बार रावल रतनसिंह ने अलाउद्दीन खिलजी को।
अब महाराणा हम्मीर जैसे प्रबल शासक मेवाड़ की गद्दी पर विराजमान थे और दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा था सुल्तान मुहम्मद तुगलक।
सिंगोली का युद्ध कब हुआ, इसकी तिथि निश्चित नहीं है। परन्तु अनुमान है कि यह युद्ध महाराणा हम्मीर की चित्तौड़ विजय के बाद ही हुआ होगा अर्थात 1335 ई. के बाद।
महाराणा हम्मीर ने सोनगरा चौहानों और तुग़लक की सम्मिलित सेना को पराजित करके चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर विजय प्राप्त की। जालोर का राव जैसा सोनगरा चौहान महाराणा हम्मीर से पराजित होकर मुहम्मद तुगलक के पास पहुंचा और पराजय की ख़बर सुनाई।
मुहम्मद तुगलक महाराणा हम्मीर की चित्तौड़ विजय जैसी बड़ी घटना सुनकर क्रोधित हो गया और फ़ौज सहित मेवाड़ की तरफ रवाना हुआ। इस फ़ौज के साथ सोनगरा राजपूत भी थे।
मुहम्मद तुगलक बादशाही फौज के साथ मेवाड़ आया। महाराणा हम्मीर ने मेवाड़ी फौज (राजपूत, भील आदि) के साथ तुगलक का सामना किया।
सिंगोली गांव के पास हुई इस लड़ाई में मुहम्मद तुगलक पराजित होकर महाराणा हम्मीर द्वारा कैद हुआ। इस लड़ाई में जालोर वालों के एक सहयोगी हरिदास का सामना महाराणा हम्मीर से हुआ, तो महाराणा ने हरिदास को मार दिया।
महाराणा हम्मीर ने मुहम्मद तुगलक को 3 माह तक कैद में रखा। मुहम्मद तुगलक महाराणा को रणथम्भौर, शिवपुर आदि जिले, 50 लाख का धन व 100 हाथी देकर कैद से छुटा।
यहाँ महाराणा हम्मीर की हिम्मत देखनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने मुहम्मद तुगलक को छोड़ते वक्त उससे ये करार नहीं करवाया कि वह फिर से मेवाड़ पर हमला नहीं करेगा।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित महावीर स्वामी मंदिर के शिलालेख (1438 ई.) में महाराणा हम्मीर को असंख्य मुसलमानों को रणखेत में मारकर कीर्ति सम्पादन करने वाला कहा गया है। इस शिलालेख का संकेत इसी युद्ध की तरफ है।
1341 ई. – बून्दी के हाड़ाओं की सहायता :- बंगदेव हाड़ा के पुत्र देवा हाड़ा भैंसरोड में रहते थे। देवा हाड़ा ने अपनी पुत्री का संबंध महाराणा हम्मीर से करवा दिया। महाराणा हम्मीर विवाह करने पहुंचे, तो विवाह के पश्चात महाराणा ने पूछा कि “आप यहां क्यों रहते हो, हमारे यहीं चले आओ”।
इस पर देवा हाड़ा ने कहा कि “बून्दी की उपजाऊ भूमि पर मीणों का अधिकार है, अगर आप फौजी मदद देवें तो उनको मारकर यहीं अपना राज्य स्थापित करके बून्दी को आपके अधीन ले आऊं।”
महाराणा हम्मीर ने उनको फौजी मदद दे दी, जिससे देवा हाड़ा ने बून्दी पर मीणों को मारकर अधिकार किया और हाड़ा राजपूतों का सदैव के लिए बून्दी पर अधिकार हो गया।
महाराणा ने देवा हाड़ा से पूछा कि और कुछ चाहो तो बताओ। इस पर देवा हाड़ा ने अर्ज किया कि “4 माह के लिए 500 घुड़सवार मिल जावें तो बेहतर रहेगा।”
महाराणा हम्मीर 500 घुड़सवार देवा हाड़ा के सुपुर्द कर चित्तौड़ के लिए रवाना हुए। देवा हाड़ा ने इन घुड़सवारों की मदद से बून्दी के छोटे ज़मींदारों में से जो जो बगावत पे उतर आए उनको मार डाला, फिर शेष ज़मीदार भाग निकले और पूर्ण रूप से बून्दी देवा हाड़ा का हुआ।
धीरे-धीरे देवा हाड़ा ने स्वयं की फौज बना ली और महाराणा के घुड़सवारों को विदा किया। दशहरे के दिन देवा हाड़ा चित्तौड़ आये और महाराणा हम्मीर को मुजरा किया। मुहणौत नैणसी ने इस घटना का अरीसिंह के समय होना लिख दिया, जो कि बिल्कुल अनुचित है।
बनवीर चौहान का महाराणा हम्मीर की शरण में आना :- जालोर के मालदेव सोनगरा के तीसरे बेटे बनवीर ने महाराणा की अधीनता स्वीकार की।
महाराणा हम्मीर ने बनवीर से कहा कि “अब तक तुम दिल्ली सल्तनत की अधीनता में रहे, पर अब तुम हमारी शरण में आए हो, इसलिए तुम्हें पूरे मन से मेवाड़ का हितैषी होना पड़ेगा, तभी तुम मेवाड़ के लिए कुछ अच्छा कर सकोगे।”
महाराणा ने बनवीर को नीमच, रत्नपुर व खैराड़ की जागीर दी। बनवीर ने भैंसरोड़ पर हमला कर उसे मेवाड़ में मिलाया। बनवीर को गोडवाड़ की जागीरी भी दी गई। महाराणा हम्मीर को प्रसन्न करने के लिए सोनगरा चौहानों की तरफ से एक तोहफा महाराणा के लिए भेजा गया।
तोहफे में तलवार थी, जो आज तक उदयपुर सिटी पैलेस में मौजूद है। हर वर्ष आश्विन की नवरात्रियों में इस तलवार का पूजन होता है।
झीलवाड़ा पर महाराणा हम्मीर का अधिकार :- चेलाख्यपुर/चेलावट (वर्तमान में झीलवाड़ा) पर पहाड़ी भीलों का कब्ज़ा था, जिनका सरदार राघव नामक भील था। झीलवाड़ा वर्तमान में राजसमन्द जिले में स्थित है व सोलंकी राजपूतों का ठिकाना है।
एकलिंगमाहात्म्य नामक ग्रंथ के अनुसार राघव बहुत अहंकारी था। भीलों को परास्त कर महाराणा हम्मीर ने झीलवाड़ा पर अधिकार किया। गोपीनाथ शर्मा ने राघव को भीलवाड़ा का स्वामी बताया है।
अगले भाग में महाराणा हम्मीर द्वारा करवाए गए निर्माण कार्यों व महाराणा हम्मीर के देहांत का वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
मैं स्वयं “हमारा इतिहास फिर से” श्रंखला हिंदी प्रतिलिपि डॉट कॉम पर लिख रहा हूँ. इसके अतिरिक्त महाराणा प्रताप जी पर चार भागों की श्रंखला लिखी है जिसमें दिवेर के युद्ध को भी समाहित किया गया है. मैं अपने लेखों में स्रोत भी देता हूँ. आप भी कृपया स्रोत देंगे तो अच्छा लगेगा. इसके अतिरिक्त अकबर महान या शैतान भी लिखा है. सादर