मेवाड़ का प्रारंभिक इतिहास (भाग – 12)

रावल मथनसिंह :- मेवाड़ के रावल कुमारसिंह के उत्तराधिकारी रावल मथनसिंह हुए। इस समय मेवाड़ का आहाड़ क्षेत्र चालुक्यों के अधीन था।

आट के शिवालय का शिलालेख (1182 ई.) :- रावल मथनसिंह के समय का 1182 ई. का शिलालेख मिला, जो आट के शिवालय में लगा हुआ था। रावल मथनसिंह के आदेश से 1183 ई. में आमेट में पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण हुआ।

ईसवाल के विष्णु मंदिर का शिलालेख (1185 ई.) :- रावल मथनसिंह के समय का एक शिलालेख 1185 ई. का मिला है, जो ईसवाल के विष्णु मंदिर में लगा हुआ था। इस मंदिर का मूल नाम वोहिघस्वामी प्रासाद था। यह मंदिर पंचायतन शैली का मंदिर है।

कुंडेश्वर के विष्णु मंदिर का शिलालेख (1185 ई.) :- इस शिलालेख में 661 ई. में अपराजित के मंत्री वराहसिंह की पत्नी यशोमति द्वारा बनवाए गए विष्णु मंदिर का जीर्णोद्धार करवाए जाने का उल्लेख है।

वीरपुरा गातोड़ का ताम्रपत्र (1185 ई.) :- रावल मथनसिंह के शासनकाल का एक ताम्रपत्र वीरपुरा गातोड़ (सलूम्बर) से मिला है, जो कि 9 नवम्बर, 1185 ई. का है। इस ताम्रपत्र में खेती की जानकारी है।

रावल मथनसिंह

वीरपुरा गातोड़ क्षेत्र में रहट से सिंचाई होने का उल्लेख है। यहां एक रहट को ‘ल्हसाड़िया’ नाम से जाना जाता था, जिससे चावल के खेत की सिंचाई की जाती थी। ‘ऊँबरूआ’ व ‘ढीकोल’ नामक रहट का ज़िक्र भी इस ताम्रपत्र में किया गया है।

शासनकाल रावल मथनसिंह का था, परन्तु यह शिलालेख चालुक्य राजा भीमदेव प्रथम का है। इससे मालूम पड़ता है कि इस स्थान पर भी राजा भीमदेव का अधिकार था।

कुम्भलगढ़ के शिलालेख में रावल मथनसिंह का नाम महणसिंह लिखा है। इन्होंने ब्राह्मण टांडेड़ जाति के उद्धरण को मेवाड़ की राजधानी नागदा का तलारक्ष (नगर रक्षक या कोतवाल) नियुक्त किया।

चीरवा के शिलालेख में उद्धरण को दुष्टों का सबक सिखाने में व शिष्टों की रक्षा करने में कुशल बताया गया है। उद्धरण के 8 पुत्र हुए, जिनमें से 2 का नाम योगराज व रतभू था। रतभू का पुत्र केल्हण हुआ। केल्हण का पुत्र उदयी हुआ व उदयी का पुत्र कर्मण हुआ।

कर्मण या कर्माजी को चीरवा गाँव का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है। मेवाड़ के शासक ने कर्माजी को सालेरा गांव भी भेंट किया, लेकिन कर्माजी ने एकलिंगनाथ जी मंदिर के समीप रहने की इच्छा से सालेरा गांव पुनः मेवाड़ के शासक को लौटा दिया।

कर्माजी के 3 पुत्र हुए :- विया, पुना व नेता। उद्धरण के सबसे बड़े पुत्र योगराज थे। मेवाड़ के शासक रावल मथनसिंह के पुत्र पद्मसिंह हुए, जो कि मेवाड़ के अगले शासक बने।

रावल पद्मसिंह (शासनकाल 1191 – 1213 ई.) :- रावल पद्मसिंह ने उद्धरण के सबसे बड़े पुत्र योगराज को नागदा का तलारक्ष नियुक्त किया। पद्मसिंह ने योगराज को बड़ी आय वाला गांव चिरकूप (वर्तमान चीरवा गांव) जागीर में दिया।

रावल पद्मसिंह

योगराज ने योगेश्वर नाम से भगवान शिव व योगेश्वरी नाम से देवी के मंदिर बनवाए। योगराज की छतरी बाघेला तालाब गणेश घाटा द्वार के पास से श्री धारेश्वर जी के लिए बने मार्ग के पास स्थित है।

योगराज के 4 पुत्र हुए :- पमराज, महेंद्र, चंपक और क्षेम। चंपक के पुत्र राज हुए। महेंद्र के 3 पुत्र हुए :- बलाक, आल्हादन और वयजा। क्षेम के 2 पुत्र हुए :- रतन व मदन।

रावल पद्मसिंह के समय का एक शिलालेख गोगुन्दा के नरसिंहपुरा गांव के वल्कलेश्वर शिवालय से मिला है, जिसमें पद्मसिंह को ‘महाराजा’ कहा गया है। यह शिलालेख 1194 ई. में खुदवाया गया।

कदमाल का ताम्रपत्र (1194 ई.) :- कदमाल गांव के ताम्रपत्र से जानकारी मिलती है कि रावल पद्मसिंह के मंत्री जगसिंह की आज्ञा से आराघर के पुत्र शिवगुण को कदमाल गांव में ‘गाजण’ नामक रहट से सिंचित होने वाली भूमि प्रदान की गई।

यह भूमिदान चैत्र के चंद्रग्रहण पर किया गया। इस ताम्रपत्र में मेवाड़ के शासक पद्मसिंह के राज्य के ही एक चौहान अधिकार (सामन्त वर्ग) राउल बाहड़ का नाम दिया है। साथ ही ताम्रपत्र जारी करते समय साक्षी (गवाह) के तौर पर काल्हण, सोलंकी वील्हण, मेहरू रामूण, वणिक कालउ के नाम लिखे हैं।

रावल पद्मसिंह के शासनकाल का एक ताम्रपत्र 1206 ई. का मिला है। इसमें जानकारी है कि उदयपुर के आहाड़ क्षेत्र में रहट से सिंचाई की जाती थी। यहां ‘माउवा’ नामक रहट था। आहाड़ में होने वाली वर्षाकालीन फसलों को ‘हरा’ व शीतकालीन फसलों को ‘सरा’ कहते थे।

दोनों फसलों से प्राप्त अनाज का 9वां हिस्सा स्थानीय भायलस्वामी मंदिर को भेंट किया जाता था। भूमि पर भाग, भोग, कर, हिरण्य नामक टैक्स वसूल किए जाते थे।

आहाड़ के आदिवराह मंदिर पर उत्कीर्ण प्रतिमाएं

यह ताम्रपत्र पद्मसिंह के शासनकाल का अवश्य है, परन्तु इस समय उदयपुर के आहाड़ क्षेत्र पर चालुक्यों का राज था। इस ताम्रपत्र को चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय ने ही जारी किया था। रावल पद्मसिंह के शासनकाल में 1194 ई. में जारी एक दानपत्र में रावल पद्मसिंह को ‘महाराजाधिराज’ कहा गया है।

रावल पद्मसिंह के समयकाल तक मेवाड़ चालुक्यों, चौहानों आदि से जूझता रहा, परन्तु रावल पद्मसिंह के पुत्र रावल जैत्रसिंह ने गुहिलवंश का ऐसा रुतबा कायम किया, जिसे बड़े-बड़े राजवंश तो क्या, सल्तनतें तक नहीं हिला सकीं। अगले भाग से रावल जैत्रसिंह का गौरवशाली इतिहास लिखा जाएगा।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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