गवर्नर जनरल लॉर्ड लिटन से मुलाकात :- महाराणा सज्जनसिंह ने दिल्ली में बहुत से राजा-महाराजाओं से बातचीत की। फिर 26 दिसम्बर को भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड लिटन से मुलाकात हुई। महाराणा के साथ इस समय ये 9 सरदार थे :-
बेदला के राव बख्तसिंह चौहान व उनके पुत्र तख्तसिंह चौहान, बेगूं के रावत मेघसिंह चुंडावत तृतीय, मेजा के रावत अमरसिंह, पारसोली के राव लक्ष्मणसिंह चौहान, करजाली के महाराज बाबा सूरतसिंह, सरदारगढ़ के ठाकुर मनोहरसिंह डोडिया, पीपलिया के रावत कृष्णसिंह, ताणा के राज देवीसिंह झाला।
लॉर्ड लिटन पेशवाई हेतु आगे आया। 27 दिसम्बर को लॉर्ड लिटन महाराणा सज्जनसिंह से मिलने आया, लेकिन महाराणा से पहले झालावाड़ नरेश से मिला।
दरअसल हुआ ये था कि पिछली बार महाराणा सज्जनसिंह ने अंग्रेज सरकार के बम्बई दरबार में भाग नहीं लिया था, जिसके बाद अंग्रेज सरकार ने बैठक व मिलन के मामले में क्रमानुसार व्यवस्था ही समाप्त कर दी।
इस वक्त महाराणा के साथ उपर्युक्त 9 सरदारों के अलावा निम्न सरदार, अहलकार आदि मौजूद थे :- कविराजा श्यामलदास, हमीरगढ़ के रावत नाहरसिंह, केलवा के जागीरदार औनाडसिंह, रतनसिंह चौहान, अमरसिंह चौहान, भैरवसिंह चौहान, मेघसिंह शक्तावत,
पृथ्वीसिंह राठौड़, गोगुन्दा के राजराणा मानसिंह के पुत्र अजयसिंह झाला, बावलास के बाबा हमीरसिंह के पुत्र भोपालसिंह, भींडर के महाराज हमीरसिंह के छोटे पुत्र रतनसिंह शक्तावत, आढा रामलाल चारण, बारहट चतुर्भुज चारण, महता पन्नालाल, बदनमल, सेठ जवाहरमल, जानी मुकुन्दलाल।
किशनगढ़, जोधपुर, रीवां व जयपुर के राजाओं से भेंट :- 28 दिसम्बर को शाम के वक्त किशनगढ़ के महाराजा पृथ्वीसिंह राठौड़ महाराणा सज्जनसिंह से मिलने उनके शिविर में आए। फिर महाराणा सज्जनसिंह जोधपुर महाराजा जसवन्तसिंह राठौड़ के शिविर में जाकर उनसे मिले।
31 दिसम्बर की शाम को रीवां के महाराजा रघुराजसिंह महाराणा से मिलने उनके शिविर में आए। उनके जाने के बाद किशनगढ़ के महाराजा मिलने के लिए आए और थोड़ी देर बाद जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह कछवाहा मिलने आए।
दिल्ली का केसरी दरबार :- 1 जनवरी, 1877 ई. को दिल्ली दरबार हुआ, जिसे केसरी दरबार भी कहा जाता है। इस वक़्त यहां जो दरबारी हुज़ूम उमड़ा, उसमें शामिल लोगों की संख्या 2 लाख से ज्यादा बताई जाती है।
इस दरबार में भारतवर्ष के 63 राजाओं ने भाग लिया था, जिसमें राजपूत, मराठा, जाट, मुसलमान, सिख राजा सम्मिलित थे। गुर्जरों की एकमात्र रियासत समथर के राजा ने भी इसमें भाग लिया। इन सभी राजाओं की सूची मौजूद है, परन्तु यहां केवल मेवाड़ का इतिहास ही लिखा जा रहा है, इसलिए इन राजाओं की सूची यहां नहीं लिखी जा रही है।
तोपों की सलामी में बढ़ोतरी :- इस वक्त से हमेशा के लिए मेवाड़, जयपुर, जम्मू, ग्वालियर, इंदौर व त्रावणकोर के राजाओं के सम्मान में तोपों की सलामी बढ़ाकर 21 कर दी गई।
इस दरबार में महाराणा सज्जनसिंह अपने 9 सरदारों सहित विराजमान रहे व 8 पासवान पीछे लवाजमा लेकर खड़े रहे। कई राजाओं व सरदारों को अलग-अलग उपाधियां दी गईं और फिर दरबार बर्खास्त हुआ।
2 जनवरी को घुड़दौड़ का आयोजन हुआ, जिसमें जोधपुर महाराजा के घोड़ों की जमकर तारीफ हुई। 3 जनवरी को राजपूताने के ए.जी.जी वाल्टर ने महाराणा सज्जनसिंह से मुलाकात की।
इसी दिन मंडी (जिला पंजाब) के राजा विजयसेन महाराणा सज्जनसिंह से मिलने आए। ये राजा बड़े ही मिलनसार और खुशमिजाज थे। इन राजा का कद छोटा था। महाराणा ने उनको इत्र पानी आदि देकर विदा किया।
शाम के वक्त इंदौर के महाराजा तुकाजीराव होल्कर महाराणा से मिलने आए। इंदौर के महाराजा ने साथ में भोजन करने की इच्छा जाहिर की, तो दोनों शासकों ने साथ भोजन किया।
4 जनवरी को महाराणा सज्जनसिंह ने क्रमशः इंदौर महाराजा व रीवां महाराजा के शिविर में जाकर उनसे मुलाकात की। तत्पश्चात महाराणा ने लाल किले के निकट यमुना नदी में स्नान किया।
लाल किले का भ्रमण :- 6 जनवरी को महाराणा सज्जनसिंह की इच्छा हुई कि जिन मुगलों से मेरे पूर्वजों ने वर्षों तक संघर्ष किया, उनका किला देखा जाए, तो महाराणा ने इस दिन लाल किला देखा और अगले दिन 7 जनवरी को स्पेशल ट्रेन में सवार होकर उदयपुर के लिए रवाना हो गए।
महाराणा का जयपुर पधारना :- 8 जनवरी को महाराणा सज्जनसिंह जयपुर स्टेशन पर पहुँचे, जहां जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह कछवाहा व जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह राठौड़ ने महाराणा से मुलाकात की।
फिर जोधपुर महाराजा तो वहां से जोधपुर की तरफ रवाना हो गए। जयपुर महाराजा व महाराणा बग्घी में सवार होकर रामबाग की सैर करते हुए जयपुर के राजमहलों में गए। शाम को जयपुर महाराजा ने स्टेशन तक आकर महाराणा को विदा किया।
9 जनवरी को नसीराबाद में कुछ देर ठहरने के बाद 10 जनवरी को महाराणा नाहरमगरा पहुंचे। नाहरमगरा में कुछ दिन ठहरने के बाद महाराणा 20 जनवरी को उदयपुर पहुंचे।
23 फरवरी को साह जोरावरसिंह सुराणा के घर महाराणा सज्जनसिंह मेहमान के तौर पर पधारे। 26 फरवरी, 1877 ई. को सलूम्बर के रावत जोधसिंह चुंडावत ने महाराणा को जनाने सहित अपनी हवेली पर मेहमान के तौर पर आमंत्रित किया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)