मेवाड़ महाराणा शम्भूसिंह (भाग – 1)

महाराणा शम्भूसिंह का परिचय :- महाराणा शम्भूसिंह का जन्म 22 दिसम्बर, 1847 ई. को हुआ। ये बागोर के महाराज शेरसिंह के पौत्र थे व महाराज शार्दूलसिंह के पुत्र थे।

व्यक्तित्व :- महाराणा शम्भूसिंह की लंबाई 5 फुट साढ़े 4 इंच, रंग गेहुंवा, चौड़ी पेशानी, आंखें बड़ी थीं। नम्र, मृदुभाषी, संकोचशील, विद्यानुरागी, बुद्धिमान, सुधारप्रिय, प्रजारक्षक, बातचीत में चतुर, स्पष्टवक्ता व मिलनसार थे।

इन महाराणा को हिंदी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान था और हिंदी में कविताएं लिखने का शौक था। इन महाराणा को क्रोध नहीं आता था। सरदारों पर किसी भी प्रकार की ज्यादती नहीं करते थे। सरदारों के साथ मेवाड़ महाराणा के चले आ रहे झगड़ों को काफी हद तक महाराणा शम्भूसिंह ने शांत किया।

ये महाराणा अपनी प्रजा की आवश्यकताओं का ध्यान रखते थे। महाराणा शम्भूसिंह ने अपने शासनकाल में बहुत से सुधार कार्य व निर्माण कार्य करवाए। गुणों के साथ ही खामियां भी हर इंसान में होती है। ये महाराणा कान के कच्चे थे।

बुरी संगत के चलते शराब की लत लग गई और चापलूसों ने अपने काम इनसे निकलवाने चाहे, लेकिन कोठारी केसरीसिंह व कविराजा श्यामलदास जैसे योग्य सलाहकार के होने से चापलूसों के काम न बने। ये मेवाड़ के पहले महाराणा हैं, जिनके वास्तविक फोटो मौजूद हैं।

महाराणा शम्भूसिंह

कुंवर शम्भूसिंह को मेवाड़ का युवराज घोषित करना :- महाराणा स्वरूपसिंह का कोई पुत्र नहीं था, इसलिए उन्होंने अपने देहांत से पहले अपने नज़दीकी रिश्तेदार बागोर के महाराज शेरसिंह व शिवरती के महाराज दलसिंह के पुत्रों के जन्मपत्र मंगवाए।

फिर 13 अक्टूबर, 1861 ई. को शम्भूसिंह को मेवाड़ का उत्तराधिकारी घोषित किया गया। शम्भूसिंह उन सभी में सबसे अधिक योग्य थे। वे महाराज शार्दूलसिंह के पुत्र थे। बागोर वाले मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के वंशज हैं।

मेवाड़ में ये नियम था कि मेवाड़ की राजगद्दी के उत्तराधिकारी को घोषित करने के समय वहां सलूम्बर रावत की उपस्थिति व सहमति आवश्यक होती थी। जब शम्भूसिंह को उत्तराधिकारी घोषित किया जा रहा था, तब वहां सलूम्बर रावत केसरीसिंह मौजूद नहीं थे।

उनके काका कुराबड़ रावत ईश्वरीसिंह ने कहा कि “जब तक रावत केसरीसिंह मंज़ूर न करे, तब तक शम्भूसिंह को उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया जा सकता।”

महाराणा स्वरूपसिंह ने बेदला के राव बख्तसिंह चौहान से पूछा कि “मैं नहीं चाहता कि मेरे मरने के बाद इस रियासत में उत्तराधिकारी को लेकर बखेड़ा पैदा हो, इसलिए तुम बताओ, इस मामले में तुम्हारी क्या राय है ?”

राव बख्तसिंह ने कहा कि “हुज़ूर, शम्भूसिंह तो हक़दार है, अगर आप किसी गैर हक़दार को भी उत्तराधिकारी बना देंगे, तब भी वो मेवाड़ का मालिक बन जाएगा।” इतना कहकर राव बख्तसिंह ने दस्तूर के अनुसार युवराज शम्भूसिंह को नज़र दी। फिर आसींद के रावत खुमाणसिंह और प्रधान केसरीसिंह कोठारी ने भी नज़र दी।

फिर महाराणा स्वरूपसिंह ने युवराज शम्भूसिंह को बहुत कुछ बातें सिखाई और रियासती कामकाज का ज्ञान देने के लिए कुछ अनुभवी व वृद्ध ज्ञानियों को युवराज का सहयोगी बना दिया।

उदयपुर सिटी पैलेस

महाराणा शम्भूसिंह का राज्याभिषेक :- 17 नवम्बर, 1861 ई. को महाराणा स्वरूपसिंह का स्वर्गवास हो गया। मेवाड़ में नियम था कि जब महाराणा का देहांत हो जाए, तो उसी दिन उनका उत्तराधिकारी गद्दी पर बिठाया जावे और उत्तराधिकारी स्वर्गीय महाराणा के दाह संस्कार में भाग ना लेवे।

इस प्रकार शम्भूसिंह तो राजमहलों में ही रहे और बागोर के महाराज शेरसिंह के चौथे पुत्र सोहनसिंह ने महाराणा स्वरूपसिंह का दाह संस्कार किया। जब शंभूसिंह के राज्याभिषेक का समय हुआ, तो सरदारों ने आसींद के रावत खुमाणसिंह के पास बुलावा भिजवाया, क्योंकि वे उस वक्त मौजूद थे, जब शम्भूसिंह को उत्तराधिकारी घोषित किया गया।

रावत खुमाणसिंह ने कहला भेजा कि “सलूम्बर रावत केसरीसिंह चुंडावत की मौजूदगी में ही शम्भूसिंह का राज्याभिषेक हो सकता है, वरना केसरीसिंह का गुस्सा कौन झेल सकता है ?”

तब बेदला के राव बख्तसिंह चौहान ने आसींद रावत को कहलवाया कि “आपको आना हो, तो जल्दी चले आवें, वरना शम्भूसिंह का राज्याभिषेक करने के लिए मैं तैयार हूं।”

महाराणा शम्भूसिंह

ये बात सुनकर रावत खुमाणसिंह उदयपुर राजमहलों में आए और सबको ऐसा न करने को कहा। तब राव बख्तसिंह ने कहा कि “क्या केसरीसिंह को ये ज्ञात नहीं है कि युवराज का राज्याभिषेक होने जा रहा है ? अगर ये जानते हुए भी वो नहीं आ सकते हैं, तो सदियों से चला आ रहा ये नियम आज मैं तोड़ता हूँ।”

इतना कहकर राव बख्तसिंह ने 17 नवम्बर, 1861 ई. की संध्या को युवराज शम्भूसिंह को मेवाड़ की राजगद्दी पर बिठा दिया और शम्भूसिंह के सिर से शोक की सफ़ेद चादर उतारकर ज़ेवर पहनाए और नज़र दी। फिर आसींद के रावत खुमाणसिंह को भी आगे आना ही पड़ा और महाराणा शम्भूसिंह को नज़र दी।

फिर धीरे-धीरे वहां मौजूद सभी सामंतों ने नज़रें दीं। रियासती कारखानों के दारोगाओं ने अपने-अपने कारखाने की चाबियां महाराणा को नज़र कीं, तो महाराणा ने पुनः वे चाबियां उन्हीं दारोगाओं को लौटा दीं। इस तरह 14 वर्षीय महाराणा शम्भूसिंह का राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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