1857 की क्रांति – नीमच में विद्रोह :- 28 मई, 1857 ई. को नसीराबाद में विद्रोह हुआ और ख़बर मिली कि अब नीमच में विद्रोह होगा। कर्नल ऐबट और नीमच व जावद के सुपरिंटेंडेंट कप्तान लॉयड ने कप्तान शावर्स को खत लिखकर कहा कि फ़ौज समेत नीमच की तरफ आओ।
(“1857 क्रांति में राजपूत शासकों की परिस्थितियों का विश्लेषण” नामक शीर्षक से लिखे गए मेरे लेख में यह पहले ही विस्तृत रूप से बता दिया गया है कि क्रांति के वक्त महाराणा ने अंग्रेजों का साथ क्यों दिया, अधिक जानकारी के लिए उक्त लेख पढ़ें)
29 मई, 1857 ई. को कप्तान शावर्स महाराणा स्वरूपसिंह के पास आया, तो महाराणा ने उसको 4 सरदारों सहित जगमंदिर में ठहराया। शावर्स ने महाराणा से कहा कि “अब तक हमने इस रियासत को मराठों और पिंडारियों से बचाया है, पर अब पहली दफ़ा हमें आपसे फ़ौजी मदद की ज़रूरत है।”
महाराणा ने बेदला के राव बख्तसिंह चौहान को फ़ौज समेत कप्तान शावर्स के साथ नीमच के लिए रवाना किया। नीमच के तोपखाने का अफ़सर बार्नस भी इस फ़ौज से मिल गया। कप्तान ब्रुक और कप्तान एंसली ने खेरवाड़ा की भील कोर्प्स को काबू में रखकर बाग़ी नहीं होने दिया।
कप्तान शावर्स को ख़बर मिली कि उसके सहयोगियों के परिवारों की 40 औरतों और बच्चों को जान का खतरा है, जो कि डूंगला गांव में ठहरे हुए थे। शावर्स व राव बख्तसिंह चौहान फ़ौज सहित डूंगला गए और उन औरतों-बच्चों को वहां से छुड़वा लिया।
राव बख्तसिंह ने उन सबको पालकियों व हाथी-घोड़ों पर बिठाकर उदयपुर की तरफ़ रवाना कर दिया। महाराणा ने उन सब औरतों और बच्चों को पिछोला झील में स्थित जगमंदिर में ठहराया और प्रधान महता गोकुलचंद को उनकी देखरेख के लिए नियुक्त किया।
महाराणा ने अंग्रेजों के छोटे बच्चों को 2-2 अशर्फियाँ दी। शाम को महाराणा उन बच्चों को महारानी के पास ले गए, जहां फिर से उन्होंने 2-2 अशर्फियाँ दी और महारानी ने भी 2-2 अशर्फियाँ दी।
3 जून को नीमच में अंग्रेजों की छावनी जला दी गई। नीमच में इस वक्त डॉक्टर मरे, डॉक्टर गेन, तोपखाना का सार्जेंट सपल व उनके परिवार वाले मौजूद थे। सार्जेंट सपल की पत्नी व 2 बच्चे इस विद्रोह में मार दिए गए।
उक्त दोनों डॉक्टर अपने बीवी-बच्चों के साथ भागकर छोटी सादड़ी (वर्तमान में राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले की एक तहसील) में स्थित केशून्दा नामक स्थान पर पहुंचे।
केशून्दा के पटेल ने कुछ रियासती सिपाहियों के साथ मिलकर इनकी रक्षा की और इनसे कहा कि “आप हमारी शरण में आए हैं, अगर आप हमारे दुश्मन होते, तब भी इस वक्त हम आपकी हिफ़ाज़त करते”
अगले दिन सादड़ी के हाकिम ने केशून्दा में फ़ौजी मदद भिजवा दी, जिससे इन दोनों डॉक्टरों और उनके परिवारों की जान बच गई। महाराणा स्वरूपसिंह ने पटेल की कार्रवाई से खुश होकर उसको एक खिलअत व कुछ ज़मीन बख्शी।
बाद में अंग्रेज सरकार ने उक्त पटेल व उसके गांव वालों के लिए एक कुंआ खुदवाकर भेंट किया। इस वाकिये के 5 वर्ष बाद डॉक्टर मरे ने एक ख़त कप्तान शावर्स को लिखा, जिसमें उसने लिखा कि हम महाराणा साहिब के एहसानमंद हैं, अगर वे न होते तो हमारी औरतें और बच्चे बुरी तरह मारे जाते।
नीमच से क्रांतिकारियों के जाने के बाद कप्तान शावर्स, लेफ्टिनेंट स्टेपुलटन और अर्जुनसिंह उनका पीछा करते हुए चित्तौड़ जा पहुंचे। फिर वहां से रवाना होकर नीमच और नसीराबाद के डाकखानों का बंदोबस्त किया।
शावर्स ने कप्तान लॉयड और कर्नल ऐबर्ट को खत लिखकर कहा कि नीमच में जो औरतें और बच्चे हैं, उनको उदयपुर पहुंचा दो। 15 जून को मेवाड़ी फ़ौज के साथ कप्तान शावर्स ने कूच किया और सांगानेर में पड़ाव डाला।
सांगानेर में हमीरगढ़ और महुवा के जागीरदार भी वहां आ पहुंचे। कप्तान शावर्स शाहपुरा पहुंचा, पर शाहपुरा के राजा ने ना दुर्ग के द्वार खोले और ना उसको किसी तरह की कोई मदद दी।
शावर्स ने यह इरादा किया कि नीमच जाकर विद्रोहियों का मुकाबला करें, लेकिन तब तक विद्रोहियों की फ़ौज नीमच से रवाना होकर देवली का थाना भी जला चुकी थी। देवली से 1 अंग्रेज, 10 औरतें और बच्चे जान बचाकर भागे, जिनको जहाजपुर में महाराणा के मुलाजिम ने शरण दी।
महाराणा के आदेश से बेगूं के रावत महासिंह चुंडावत ने मंदसौर से भागकर आए हुए अंग्रेजों के परिवारों को शरण दी।
इन्हीं दिनों नीमच में यह अफ़वाह फैलाई गई कि अंग्रेजों ने धर्म भ्रष्ट करने के लिए आटे में जानवरों की हड्डियां पीसकर मिलाई है। फिर मेवाड़ के वकील कायस्थ अर्जुनसिंह ने आटे को अपनी ज़बान पर रखकर वहां के लोगों का संदेह दूर कर दिया।
15 अगस्त को नीमच में मेवाड़ की फ़ौज वालों से बग़ावत की गई, जिसके बाद 3 बाग़ी पकड़े गए और तोप से उड़ा दिए गए। इन्हीं दिनों क्रांति की आड़ में फ़िरोज़ नामक एक शख्स ने ख़ुद को मुगल बादशाह का वंशज बताकर प्रसिद्धि हासिल कर ली, जिसका वर्णन अगले भाग में लिखा जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)