1818 ई. – कर्नल जेम्स टॉड द्वारा मेवाड़ के बागी सामन्तों को महाराणा के अधीन करना :- मेवाड़ में प्रजा को आबाद करने में कर्नल जेम्स टॉड सफल रहा, पर जिन सामंतों ने मेवाड़ के परगने कब्जे में कर रखे थे, उनसे परगने छीनना टेढ़ी खीर थी।
असल मुद्दा ये था कि जब मेवाड़ की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई, तब मेवाड़ के अधिकतर सामन्तों ने महाराणा की आज्ञा मानना बन्द कर दिया था। सामंत अपनी मनमानी करने लगे, जिससे प्रजा में असंतोष व्याप्त होने लगा।
मई, 1818 ई. में जेम्स टॉड ने महाराणा भीमसिंह की सलाह लेकर एक कौलनामा तैयार कर सरदारों को बुलाया। बेगूं के रावत ने सबसे पहले हस्ताक्षर किए, पर देवगढ़ रावत गोकुलदास ने इस कौलनामे का विरोध किया लेकिन कुछ दिन बाद हस्ताक्षर कर दिए।
शक्तावतों ने सबसे अंत में हस्ताक्षर किए। 15 घण्टों तक चले वाद-विवाद के बाद कौलनामा स्वीकृत हुआ। इस तरह प्रथम व द्वितीय श्रेणी के सभी सामंतों ने हस्ताक्षर कर दिए।
महाराणा भीमसिंह की सलाह लेकर कर्नल जेम्स टॉड ने जो कौलनामा तैयार किया, वह मेवाड़ के बागी सामंतों व महाराणा के आदेश न मानने वालों पर लगाम कसने में सक्षम था। इस कौलनामे की शर्तें कुछ इस तरह थीं :-
(1) खालसे (महाराणा के अधीन) की भूमि व एक-दूसरे सरदार की दबाई हुई भूमि पर हक़ छोड़ना होगा। (2) तमाम नई रखवाली, भोम, लागत छोड़नी होगी। (3) चुंगी व बिस्वा छोड़ने होंगे। ये हक़ केवल महाराणा के रहेंगे।
(4) सामंत अपने ठिकानों में चोरी न होने देंगे। यदि चोरी हुई, तो उसका हर्जाना वे स्वयं भरेंगे। (5) व्यापारी व बनजारे, काफिले, देशी या परदेशी सौदागर जो भी राज्य में प्रवेश करेंगे, उनकी रक्षा की जाएगी।
(6) मेवाड़ में या उसके बाहर महाराणा की आज्ञानुसार आचरण करना होगा। सरदार 4 भागों में विभक्त किए जाएंगे। प्रत्येक भाग के सरदारों को 3-3 माह तक दरबार की सेवा में उपस्थित रहना होगा, फिर वे अपने ठिकानों में जा सकेंगे।
प्रतिवर्ष सरदारों को दशहरे से 10 दिन पूर्व से लेकर दशहरे के 20 दिन बाद तक उदयपुर में उपस्थित रहना होगा। इसके अतिरिक्त जरूरी मौकों पर या आवश्यकता पड़ने पर दरबार की सेवा में हाजिर रहना होगा।
(7) कोई भी सरदार अपनी प्रजा पर किसी भी प्रकार का ज़ुल्म नहीं करेगा। (8) उन पटायतों, संबंधियों व बंधु-बांधवों को दरबार की सेवा में आवश्यकता पड़ने पर हाजिरी देनी होगी, जिन्हें दरबार से जागीरें मिली हैं।
(9) जो सामंत इस कौलनामे को नहीं मानेगा, उसे दंड देने में महाराणा दोषी नहीं समझे जाएंगे और उस पर एकलिंग जी व श्री दरबार की शपथ होगी।
इस कौलनामे का नतीजा ये हुआ कि देवगढ़ वालों द्वारा चुंगी वसूली और भींडर सरदार द्वारा कब्जे में लिए हुए 43 गांव उन्हें छोड़ने पड़े। आमेट, भदेसर, डाबला, लावा के सरदारों द्वारा कब्ज़े में लिए हुए गढ़ों को छोड़ना पड़ा। इस प्रकार जेम्स टॉड महाराणा भीमसिंह को उनका वास्तविक हक़ दिलाने में सफल रहा।
1818 ई. – सेठ जोरावरमल को राज्य का खजांची नियुक्त करना :- कर्नल जेम्स टॉड की सलाह पर महाराणा भीमसिंह ने इंदौर से सेठ जोरावरमल को उदयपुर बुलाया, जो कि जैसलमेर के मूलनिवासी थे और व्यापार के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त थे।
सेठ जोरावरमल, सेठ गुमानचन्द बापना के चौथे पुत्र थे। गुमानचन्द बापना ने ही जैसलमेर की प्रसिद्ध पटवों की हवेलियों का निर्माण करवाया था। महाराणा ने सेठ जोरावरमल की दुकान उदयपुर में कायम करवाई।
महाराणा ने जोरावरमल से कहा कि “राज्य की आय अब तुम्हारे यहां जमा रहेगी और जो भी खर्च हो वो तुम्हारे यहां से दिया जाएगा”। जोरावरमल ने उदयपुर में नए खेड़े बसाए, किसानों को सहायता दी, चोरों व लुटेरों को दंड दिलवाकर राज्य में शांति स्थापित की।
अक्टूबर, 1818 ई. – मेरों का उत्पात :- वर्ष 1818 ई. में मराठा सरदार दौलतराव सिंधिया को सन्धि के ज़रिए अजमेर का इलाका अंग्रेज सरकार को सौंपना पड़ा था। इन्हीं दिनों मेर जाति के लोगों ने मेवाड़, मारवाड़ और अजमेर के इलाकों में उपद्रव करना शुरू कर दिया।
इसी वर्ष अंग्रेजों ने नसीराबाद में एक छावनी की स्थापना कर दी। मेरवाड़ा का जो हिस्सा मेवाड़ के अंतर्गत आता था, उसकी रक्षा ख़ातिर जेम्स टॉड ने महाराणा भीमसिंह की सम्मति से रूपाहेली के ठाकुर सालिमसिंह की अध्यक्षता में बदनोर, देवगढ़, आमेट, बनेड़ा के सरदारों व मेवाड़ के पूर्वोत्तर भाग के सभी सरदारों, जागीरदारों, भोमियों, ग्रासियों आदि को फौज समेत भेजा।
मेरों ने पहाड़ी इलाकों में नाकेबंदी कर दी, जिससे सालिमसिंह ने पहाड़ों पर हमला करने का विचार छोड़ दिया। उन्होंने समतल जगहों पर स्थित गांवों में थाने बिठाए और मेरों का दमन आरम्भ किया और रामपुरा में मुख्य थाना कायम किया।
जेम्स टॉड द्वारा जहाजपुर का परगना महाराणा को दिलाना :- झाला जालिमसिंह ने मेवाड़ के परगने जहाजपुर पर कब्ज़ा कर लिया था। फरवरी, 1819 ई. में कर्नल जेम्स टॉड ने झाला जालिमसिंह से लिखा-पढ़ी करके उक्त परगना मेवाड़ के अंतर्गत शामिल कर लिया। टॉड ने इस परगने के मीणों से हथियार छीन लिए और शांति स्थापित की।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)