मेवाड़ महाराणा जगतसिंह द्वितीय (भाग – 2)

दिसम्बर, 1735 ई. – शाहपुरा पर चढ़ाई :- शाहपुरा के महाराज उम्मेदसिंह की गतिविधियों को देखते हुए महाराणा संग्रामसिंह ने उनको धमकाया था, लेकिन उक्त महाराणा के देहांत के बाद महाराज उम्मेदसिंह ने फिर से मेवाड़ की बर्ख़िलाफी शुरू कर दी।

महाराज उम्मेदसिंह ने मेवाड़ के दूसरे जागीरदारों को तकलीफ़ देना शुरू कर दिया। महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने महाराज उम्मेदसिंह को समझाया, पर वह नहीं माने। इन्हीं दिनों में महाराज उम्मेदसिंह ने अमरगढ़ के रावत दलेलसिंह (महाराणा उदयसिंह के पुत्र कान्हसिंह के 9वें वंशधर) को मार डाला।

इस घटना से क्रोधित होकर महाराणा जगतसिंह ने फौज समेत शाहपुरा पर चढ़ाई कर उसे घेर लिया। चढ़ाई की ख़बर सुनकर जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह भी फौज समेत महाराणा की मदद ख़ातिर उपस्थित हो गई।

असल में ये मामला इतना बड़ा नहीं था कि जयपुर की मदद दरकार हो, पर सवाई जयसिंह चाहते थे कि शाहपुरा भी उनके बेटे माधवसिंह को जागीर में मिल जावे, रामपुरा तो पहले ही महाराणा संग्रामसिंह से माधवसिंह को मिल चुका था, इस तरह यदि शाहपुरा भी मिल जाता, तो जयपुर की सरहद बढ़ जाती और बाद में कोटा व बूंदी को भी अधीन करने में कठिनाई नहीं होती।

बेगूं के रावत देवीसिंह चुण्डावत को इस बात की भनक लगी, तो उन्होंने महाराणा को समझाने के लिए उनके सामने एक कबूतर छोड़ दिया, जिसका एक पंख टूटा हुआ था। कबूतर उड़ान भरता और गिर जाता। महाराणा के पूछने पर रावत ने जवाब दिया कि “हुजूर यही हाल मेवाड़ का है, इस कबूतर का एक पंख सलूम्बर है और दूसरा पंख शाहपुरा को समझिए।”

महाराणा जगतसिंह द्वितीय

रावत देवीसिंह चुंडावत ने महाराणा को सवाई जयसिंह की कूटनीतिक योजना से अवगत कराया और रावत ने स्वयं जाकर शाहपुरा के महाराज उम्मेदसिंह को महाराणा की अधीनता स्वीकार करने के लिए समझा लिया।

महाराणा ने महाराज उम्मेदसिंह से फ़ौज खर्च के अतिरिक्त एक लाख रुपए जुर्माने के तौर पर वसूल किए और फौज का घेरा उठा लिया, ये ख़बर सुनकर महाराजा सवाई जयसिंह भी खाली हाथ वापिस लौट गए। महाराणा जगतसिंह ने महाराज उम्मेदसिंह की जागीर से 5 गांव ज़ब्त करके अमरगढ़ के रावत दलेलसिंह के पुत्र को दे दिए।

बाजीराव पेशवा का मेवाड़ आना :- समूचे हिंदुस्तान पर मराठों का परचम बुलंद करने का ख्वाब देखने वाले सेनापति बाजीराव पेशवा को मुगल बादशाह मुहम्मदशाह ने दबाव में आकर मालवा की सूबेदारी सौंप दी। मालवा पर मराठों का कब्ज़ा होते ही वे लोग मेवाड़ के आसपास के इलाकों में लूटमार करने लगे।

छत्रपति शाहू महाराज मेवाड़ की इज्जत करते थे, इस ख़ातिर जब पेशवा उदयपुर की तरफ आए, तब महाराणा ने बाजीराव पेशवा के स्वागत की ख़ातिर बाबा तख्त सिंह जयसिंहोत को लुणावाड़ा तक भेजा।

फिर पेशवा ने उदयपुर में आकर आहड़ गांव के निकट स्थित चंपाबाग में अपना डेरा लगाया। पेशवा ने वहां से एक पत्र लिखकर महाराणा को भेजा, जिसमें लिखा था कि “जब मैं आपके सामने हाजिर होऊं, तब आप मुझको अपनी राजगद्दी पर अपने साथ बिठाकर सम्मानित करावें”

महाराणा ने जवाब में अपना एक संदेश पहुंचाया, जिसके तहत बाजीराव से कहा गया कि “तुम सतारा के नौकर हो, मेवाड़ के राजसिंहासन पर ख़ुद सतारा का राजा भी नहीं बैठ सकता, तुम अगर हिंदुस्तान के बादशाह भी होते, तब भी तुम्हें ये गद्दी नसीब न होती, इसलिए एक खास प्रधान के बराबर तुम्हारी ख़ातिरदारी की जावेगी”

बाजीराव पेशवा

बाजीराव पेशवा ने जवाब में कहलवाया कि “मैं एक ब्राह्मण हूं, इसलिए मेरी इज्जत कुछ बढ़ानी चाहिए”। महाराणा ने पेशवा की बात मानकर अपनी गद्दी के सामने 2 गदेले रखवा दिए, जिनमें से एक पर बाजीराव पेशवा को बिठाया गया व दूसरी गद्दी पर मेवाड़ के राजपुरोहित को बिठाया।

इसी दिन से मेवाड़ के दरबार में महाराणा की गद्दी के सामने राजपुरोहित के बैठने का प्रचलन शुरू हुआ था, जो बाद वाले महाराणाओं के समय भी यथावत जारी रहा। बातचीत में पेशवा ने कहा कि हम महाराणा को छत्रपति शाहू महाराज की तरह मानकर उनके हुक्म मानते रहेंगे।

महाराणा जगतसिंह और पेशवा बाजीराव के बीच अच्छे ढंग से वार्तालाप हुआ था, बूंदी के ग्रंथ वंश भास्कर में सूर्यमल्ल मिश्रण ने बहुत सी गलतियों भरा इतिहास लिख दिया, जिससे इतिहासकार ओझा जी भी ज्यों का त्यों लिखते गए।

इनके अनुसार बाजीराव पेशवा को महाराणा जगतसिंह मरवाना चाहते थे, ये ख़बर बाजीराव को पता लगी, तो वो क्रोधित होकर मेवाड़ से 5 लाख का धन लेकर चले गए। यह बात पूरी तरह बेबुनियाद है। सबसे पहला कारण तो ये की मेवाड़ में मेहमानों को दगा करके मारने का रिवाज़ कभी नहीं रहा। ऊपर से महाराणा जगतसिंह रहमदिल महाराणा थे।

दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण ये कि जिस समय मराठों का दबदबा सारे हिंदुस्तान में फैलने लगा था, उस समय उनके मुख्य सेनापति को मरवाकर महाराणा समूचे मराठों से दुश्मनी मोल लेने की बेवकूफ़ी कभी न करते।

महाराणा जगतसिंह द्वितीय

तीसरा कारण ये कि छत्रपति शाहू महाराज मेवाड़ का सम्मान करते थे, उनसे बग़ैर पूछे बाजीराव पेशवा मेवाड़ से कर वसूली नहीं कर सकते थे। वास्तव में महाराणा जगतसिंह ने बाजीराव पेशवा को अच्छे ढंग से विदा किया और पेशवा ने जयपुर की तरफ प्रस्थान किया, जहां से उन्होंने दिल्ली जाकर लूटमार की।

कई पुस्तकों में ये लिखा है कि जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने मुगल बादशाह की रही सही शक्ति को भी नष्ट करने के लिए ही बाजीराव पेशवा को आमंत्रित किया था। यदि इसे सत्य माना जाए, तो बाजीराव पेशवा किसी भी हालत में मेवाड़ से कर वसूली नहीं कर सकते थे, क्योंकि इन दिनों जयपुर व मेवाड़ रियासतों में अच्छे संबंध थे।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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