2 अप्रैल, 1679 ई. को औरंगज़ेब ने अपनी सल्तनत में जज़िया कर लागू कर दिया। जज़िया हिंदुओं से वसूल किया जाने वाला एक अपमानजनक कर था। जज़िया चुकाने वाले को जिम्मी कहा जाता था। जिम्मी को नंगे पैर जज़िया वसूल करने वाले अफ़सर के पास जाकर जज़िया चुकाना पड़ता था।
एक दिन यमुना नदी किनारे औरंगज़ेब का दरबार लगा, तो कई हिंदू जजिया हटाने की विनती लेकर वहां गए, पर औरंगज़ेब ने कुछ ध्यान न दिया। कुछ समय बाद औरंगज़ेब मस्जिद के लिए निकला तो हजारों हिन्दुओं की भीड़ ने रास्ता रोक लिया, जिसके चलते औरंगज़ेब ने हाथियों को छोड़ दिया, जिससे बहुत से लोग कुचले गए।
हिंदुस्तान भर में जज़िया के विरोध में प्रदर्शन होने लगे, लेकिन फिर भी जज़िया निर्दयता से वसूला जाने लगा। हिंदुस्तान की ऐसी स्थिति देखकर भला धर्मरक्षक महाराणा राजसिंह कैसे चुप रहते। महाराणा राजसिंह ने औरंगज़ेब को समझाने के लिए एक ज़ोरदार ख़त लिखा।
महाराणा राजसिंह द्वारा फ़ारसी में लिखवाकर भेजा गया ये पत्र कुछ इस तरह है :- “आदाब अल्काब के बाद ज़ाहिर हो कि मैं आपका खैरख्वाह, हालांकि आपके हुज़ूर से दूर हूँ, आपसे वो अर्ज़ करता हूँ, जो आपकी और दुनिया वालों की बेहतरी है। ये बातें नीचे लिखी जा रही हैं, उम्मीद है कि आप ध्यान देंगे :-
मैंने सुना है कि आपने बहुत सा रुपया मुझ खैरख्वाह की ख़राबी की तदबीरों में ख़र्च किया है और हुज़ूर ने अपना खज़ाना भरने के लिए जज़िया का महसूल लगाया है। हुज़ूर पर रोशन है कि मुहम्मद जलालुद्दीन अकबर, जो कि आपके बाप दादाओं में से थे, आधी सदी तक किसी ख़ास मज़हब के साथ ऐसी ज़्यादती नहीं की।
नूरुद्दीन नुहम्मद जहांगीर ने 22 बरस तक बिना जज़िया के हुकूमत की। मशहूर शाहजहां ने भी 32 बरस तक बग़ैर ज्यादती के हुकूमत चलाई। हिंदुओं के साथ इस क़दर की ज्यादती न होने के सबब से ही आपके पुरखों ने जहां कदम उठाया, वहां फतह मिली।
पर आपके राज में बहुत से जिले बादशाहत से निकल गए हैं। इसी तरह ज्यादती होती रही, तो आगे भी बहुत से जिले हाथ से जाते रहेंगे। आपकी प्रजा कंगाली और तकलीफ़ में फंसी हुई है। आपके राज में खराबी फैलती जाती है और मुश्किलें बढ़ती जाती हैं।
जब गरीबी ने बादशाहों और शहज़ादों के घर में कदम रखा हो, तो प्रजा का तो ईश्वर ही मालिक है (अर्थात औरंगज़ेब के घर में भी गरीबी आ गई होगी, तभी जज़िया वसूल किया जा रहा है)। सिपाही शिकायत करते हैं और सौदागर फरियादी हैं।
हिन्दू लोग तो इस क़दर तंग आ गए हैं कि शाम के वक्त का खाना नहीं मिलता और सारे दिन दुःख से बेचैन रहते हैं, यहां तक ज़कात के वसूले जाने से मुसलमान तक आपसे खफ़ा हैं। यह कब हो सकता है कि जो बादशाह अपनी कंगाल प्रजा पर सख्त से सख्त महसूल डालता है, कायम रहे।
पूर्व से पश्चिम तक यह बात फैली है कि हिंदुस्तान का बादशाह हिन्दू पुजारियों से जलन के कारण सब ब्राह्मणों, जोगियों, सन्यासियों, वैरागियों से ज़बरदस्ती महसूल लेना चाहता है। वह (औरंगज़ेब) अपने खानदान की इज़्ज़त का ख्याल न करके लाचार कोने में बैठने वाले पुजारियों पर अपना ज़ोर दिखाना चाहता है।
अगर आप उस किताब पर विश्वास रखते हैं, जिसको कलामि इलाही समझा जाता है, तो उसमें साफ़ लिखा है कि ‘ख़ुदा सिर्फ मुसलमानों का ही मालिक नहीं है, बल्कि सारे जगत को पालने वाला है।’ हिन्दू और मुसलमान उसकी नज़र में एक हैं, रंग और सूरत का फ़र्क़ ईश्वर की कुदरत से है और वही सबको पैदा करने वाला है।
मुसलमानों के इबादतखाने में भी उसी का नाम लिया जाता है और मंदिरों में भी मूर्ति के सामने जहां घण्टे बजते हैं, उसी की तारीफ़ और पूजा होती है। दूसरी कौमों के मज़हबों और रीतों को दूर करना ईश्वर की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ है। जब हम किसी तस्वीर का मुंह बिगाड़ते हैं, तो वास्तव में हम उसको बनाने वाले को नाराज़ करते हैं।
किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि ‘खुदाई कारखाने में ऐतराज न करो’, मतलब यह कि हिंदुओं पर जो जज़िया का महसूल लगाया है, इंसाफ से दूर है और मुल्की इंतिज़ाम से भी दुरुस्त नहीं है। उससे मुल्क गरीब और तबाह हो जावेगा। इसके सिवाय वह एक नई घडन्त है और हिंदुस्तान के पुराने दस्तूरों के ख़िलाफ़ है।
अगर आपको जज़िया वसूल करना ही है तो मुझसे कीजिए, पर चींटी और मक्खियों को तकलीफ़ देना फिजूल है, जो कि हिम्मतवर और बहादुरों के लायक नहीं है। ताज़्ज़ुब की बात है कि आपके पढ़े-लिखे वज़ीरों ने आपको ये सलाह नहीं दी।”
इस तरह महाराणा राजसिंह का ये ख़त जब औरंगज़ेब के पास पहुंचा, तो उसके क्रोध की कोई सीमा न रही और उसने फ़ौज को दुरुस्त करने का हुक्म दे दिया। मेवाड़ के बहादुर भी जज़िया की कीमत अपनी तलवारों से चुकाने के लिए तैयार थे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)