मेवाड़ महाराणा अमरसिंह (भाग – 41)

महाराणा अमरसिंह का देहांत :- 26 जनवरी, 1620 ई. को मेवाड़ के महान शासक महाराणा अमरसिंह जी का 60 वर्ष 10 माह की आयु में देहांत हो गया। इनकी अंतिम यात्रा धूमधाम से निकाली गई थी और गंगोद्भव कुंड पर दग्ध क्रिया सम्पन्न की गई।

इनके पीछे 10 रानियाँ, 9 खवास, 8 सहेलियों सहित कुल 27 औरतें सती हुईं। महाराणा अमरसिंह की रानियां और भी थीं पर सती केवल वे ही होती थीं जिनको स्वयं ये अनुभूति होती थी कि गुज़रने वाले व्यक्ति के बाद हमारा जीवन किसी काम का नहीं। उन दिनों यह पूर्ण रूप से स्वैच्छिक होती थी।

महाराणा अमरसिंह की अंतिम क्रिया के समय हज़ारों लोग एकत्र हो गए। प्रजा को इन महाराणा के जाने का बड़ा दुःख हुआ। महाराणा अमरसिंह और उनके बाद के सभी महाराणाओं (2-3 को छोड़कर) की छतरियाँ उदयपुर के आहड़ में महासतिया नामक स्थान पर हैं।

महाराणा अमरसिंह की छतरी

आहड़ में सबसे पहली और बड़ी छतरी महाराणा अमरसिंह की है, हालांकि शासक के तौर पर ये पहली छतरी है, अन्यथा सामंत, राजपरिवार के अन्य सदस्य, मंत्रियों आदि की छतरियां वहां कुछ समय पहले ही बनना शुरू हो गई थीं।

जहांगीर अपनी आत्मकथा में लिखता है कि “जिस दिन मैंने सुल्तानपुर गांव में पड़ाव डाला, उसी दिन राणा अमरसिंह के मरने की ख़बर आई। उसकी मौत उदयपुर में हुई। उस वक्त उसका बेटा भीम और पोता जगतसिंह मेरे साथ ही थे। मैंने इनको ख़िलअतें दीं।”

कर्नल जेम्स टॉड लिखता है कि “राणा अमरसिंह उतना गौर वर्ण नहीं था, जितना अन्य महाराणा होते थे। राणा अमर को अलग-थलग रहने की ऐसी आदत थी, जिसे प्रायः विशादजन्य कहा जा सकता है। इसका कारण अवश्य ही उसे मिली विफलताएँ थीं, क्योंकि ये उसके स्वभाव के अनुसार नहीं था। उसके सामंत और सरदार उसका उन गुणों के लिए सम्मान करते थे, जिनका उनके मन में सबसे अधिक आदर था। ये गुण थे उदारता और वीरता। उसके प्रजाजन उसका उसकी न्यायप्रियता और कृपाशीलता के लिए आदर करते थे।”

ग्रंथ राणा रासो में लिखा है कि “युगारम्भ में जैसे जलमयी पृथ्वी पर एकमात्र ब्रह्म दिखाई देता है, उसी प्रकार जहांगीर के शासनकाल में एकमात्र महाराणा अमरसिंह अक्षुण्ण दिखाई देता था।” (अक्षुण्ण अर्थात न टूटा हुआ)

इतिहासकार ओझा जी लिखते हैं कि “महाराणा अमरसिंह के चरित्र पर जो लोग प्रहार करते हैं, उन्हें मरने के बाद भी अमरसिंह को अपने लोगों से प्राप्त आदर को आधार मानकर अपने मन्तव्य पर फिर से विचार करना चाहिए।”

महाराणा अमरसिंह ने राजदरबारी कवि जीवधर से ‘अमरसार’ नामक ग्रंथ लिखवाया, जिसमें काव्य रूप में महाराणा प्रताप व महाराणा अमरसिंह का इतिहास लिखा है। महाराणा अमरसिंह के आदेश से बालाचार्य के पुत्र धन्वन्तरि ने ‘अमर विनोद’ नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें मुख्य रूप से हाथियों के बारे में बहुत सी बातें लिखी हैं।

महाराणा अमरसिंह द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य :- महाराणा अमरसिंह ने भीलवाड़ा में अमरगढ़ नाम का एक किला बनवाया। महाराणा के शासनकाल में उदयपुर की शहरपनाह का कार्य शुरू कर दिया गया था। महाराणा ने अमरचंदिया नामक एक तालाब भी बनवाया। महाराणा अमरसिंह के समय उदयपुर के राजमहलों में अमर महल नाम से एक महल बनवाया गया।

अमरगढ़

महाराणा अमरसिंह ने अपने पिता के नाम से मातृकुंडिया में प्रतापेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया। महाराणा अमरसिंह ने अपने पिता की स्मृति में उनकी निर्वाण स्थली चावंड में 8 खम्भों की छतरी बनवाई। महाराणा अमरसिंह ने आहड़ में भामाशाह जी की छतरी बनवाई।

उदयपुर के धूलेव गांव में स्थित ऋषभदेव के मंदिर में तीसरे द्वार के बाहर भगवान शिव व माता सरस्वती की मूर्तियां हैं। इन मूर्तियों के आसनों पर 1619 ई. के लेख खुदे हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि ये मूर्तियां महाराणा अमरसिंह के शासनकाल में स्थापित करवाई गई।

महाराणा अमरसिंह ने अपने जीवन के लगभग 61 वर्षों में से 5 वर्ष महाराणा उदयसिंह के समय, 25 वर्ष महाराणा प्रताप के समय व 18 वर्ष स्वयं के शासनकाल में जंगलों व छोटे-छोटे महलों में रहकर बिताए। अपने जीवन के अंतिम 5 वर्ष इन महाराणा ने एकांतवास में बिताए। 53 वर्ष का कष्टप्रद जीवन जीने के बाद भी इन महाराणा को वो स्थान नहीं मिला, जो महाराणा प्रताप का है।

महाराणा अमरसिंह अपने शासनकाल में 17 बड़ी लड़ाइयां लड़े व 100 से अधिक मुगल चौकियों पर अधिकार किया। इसके अलावा इन महाराणा ने अपने कुँवरपदे काल में भी दिवेर, मालपुरा जैसी बहुत सी लड़ाइयां लड़ी। जिन विशाल सेनाओं को देखकर ही बड़े-बड़े योद्धाओं के हृदय कमजोर पड़ जाते थे, उन सेनाओं का महाराणा अमरसिंह ने चट्टान की मानिंद खड़े रहकर न केवल सामना किया है, बल्कि कई बार खदेड़ा भी है।

मेवाड़ नरेश महाराणा अमरसिंह जी

सिर्फ़ एक संधि का दोष देकर हमें इतिहास के इस महान योद्धा के चरित्र, व्यक्तित्व, त्याग, बलिदान, स्वाभिमान, पितृभक्ति व बहादुरी पर संदेह करने का कोई अधिकार नहीं है। हे महाराणा अमरसिंह जी, आप युगों युगों तक जीवित रहो।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

3 Comments

  1. Bhagwan Singh Sodha
    August 13, 2021 / 7:36 am

    महाराणा अमर सिंह जी मेवाड़ के सभी शासको में से महान थे इन्होने जितना संघर्ष किया उतने की कोई और शासक कल्पना भी नहीं कर सकता मेवाड़ के सभी शासको से सर्वाधिक कष्टपर्द जीवन जिया महाराणा अमर सिंह जी ने इनको महाराणा प्रताप के बराबर समान मिलना चाहिए महाराणा अमर सिंह जी के महान् कार्यों को भुलाया नहीं जा सकता महाराणा अमर सिंह जी जैसे महान् योद्धा के साथ इतिहास मे सरासर अन्याय हुआ है

  2. Amit Kumar
    August 13, 2021 / 9:32 am

    इतने बड़े योद्धा को ऐसे भुलाया कि कभी नाम भी न सुना। मुगलो की पीढ़ीयो रटाए गये अपने हमने भूला दिए। पर अब हम इसे नही दोहराएंगे।

  3. kalyan singh
    August 13, 2021 / 12:05 pm

    हे क्षात्रवीर आपको शत शत नमन
    इतना गौरवशाली इतिहास होते हुए भी
    सरकारों ने इसे छुपाये रखा

error: Content is protected !!