1673 ई. में बहलोल खां 12,000 की फौज समेत मराठा फौज का सामना करने निकला। सेनापति प्रतापराव के पास तकरीबन 15,000 की फौज थी। उमरानी के निकट दोनों फौजों का आमना-सामना हुआ। दोनों तरफ के कई फौजी आदमी कत्ल हुए। ये लड़ाई एक दिन तक चली और इसका कोई परिणाम नहीं निकला।
सेनापति प्रतापराव ने बहलोल खां तक पहुंचने वाली रसद रोक दी। वहां तक पानी पहुंचना भी मुश्किल हो गया। फिर बहलोल खां ने सेनापति प्रतापराव को घूस देकर कहा कि तुम हमें भागने दो, फिर भले ही हमारे खेमे लूट लेना। सेनापति ने ऐसा ही किया। बहलोल के भागने की ख़बर सुनकर शिवाजी महाराज सेनापति पर बहुत क्रोधित हुए।
अक्टूबर, 1673 ई. में शिवाजी महाराज ने स्वयं फौज समेत बीजापुर में प्रवेश किया और बीजापुर के कई इलाके लूट लिए। शिवाजी महाराज ने कनड़ा में 6000 की फौज तैनात की, लेकिन बीजापुरी फ़ौज हावी रही। बंकापुर में एक मराठा फौज बहलोल खां से पराजित हुई। एक और मराठा फौज शर्जा खां से चांदगढ़ में पराजित हुई।
सेनापति प्रतापराव ने तेलंगाना, बरार, गोलकुंडा के इलाके लूट लिए और वापसी के दौरान उन्हें बहलोल खां के पड़ाव की खबर मिली। जनवरी, 1674 ई. में शिवाजी महाराज ने प्रतापराव को खत लिखा कि “बहलोल खां फिर आ गया है। उसका सामना करो और उसे खत्म करो। ये युद्ध निर्णायक होना चाहिए, वरना मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना।”
सेनापति प्रतापराव के पास कम फौज बची थी, इससे मराठा फौज पीछे ही रही। शिवाजी महाराज के आदेश का पालन करने के लिए प्रतापराव ने मात्र 6 मराठा घुड़सवारों के साथ ही हजारों की बीजापुरी फौज पर हमला कर दिया। ये 7 वीर बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
सेनापति को मारकर बीजापुरी फ़ौज का उत्साह बढ़ा और उन्होंने मराठों पर हमला कर दिया, इस लड़ाई में मराठे परास्त हुए। शिवाजी महाराज ने आनंदराव को सेनापति बनाकर बीजापुरी फ़ौज से लड़ने भेजा।
23 मार्च, 1674 ई. को आनंदराव ने साँप नामक बीजापुरी इलाके से 7 लाख रुपए लूटे। फिर उन्होंने बहलोल खां और खिज्र खां की फौज को हराकर 500 घोड़े, 2 हाथी और धन संपदा लूट ली। अप्रैल, 1574 ई. में शिवाजी महाराज ने हंसाजी मोहिते को सर्वोच्च सेनापति पद पर नियुक्त किया।
शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक :- शिवाजी महाराज को उन दिनों बीजापुर का एक आश्रित जागीरदार ही माना जाता था। मुगलों की नज़रों में भी वे जागीरदार के बागी बेटे ही थे। उन्हें एक राजा के नजरिए से नहीं देखा जाता था। शिवाजी महाराज ने अपना राज्याभिषेक इसलिए करवाया, क्योंकि उन्हें इस वक्त ये जरुरी लगा। साथ ही साथ शिवाजी महाराज के सिपहसालारों की भी यही राय थी।
उस वक्त एक नियम था कि केवल क्षत्रिय का ही हिन्दु विधि से राज्याभिषेक हो सकता था और उसके लिए साक्ष्य की आवश्यकता पड़ी। तब शिवाजी महाराज ने बालाजी आवजी को अन्य ब्राम्हणों सहित महान सिसोदिया वंश की रियासत मेवाड़ की राजधानी उदयपुर में भेजा।
उस समय मेवाड़ की गद्दी पर महाराणा राजसिंह जी आसीन थे। महाराणा ने बालाजी आवजी का स्वागत सत्कार करवाकर उन्हें साक्ष्य आदि उपलब्ध करवा दिए। इस साक्ष्य के अनुसार छत्रपति शिवाजी महाराज की वंशावली कुछ इस तरह है :- मेवाड़ के महाराणा हमीर सिंह जी के काका अजयसिंह जी के पुत्र सज्जन सिंह जी सतारा की तरफ जाकर बस गए, जिनकी 18वीं पीढ़ी में छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म हुआ। सज्जनसिंह जी का वंश कुछ इस तरह चला :- सज्जनसिंह, दिलीपसिंह, सिद्धसिंह, भैरवसिंह, देवराज, उग्रसेन, शुभकरण, रूपसिंह, भूमिन्द्र, रापाजी, बरहटजी, खेलाजी, कर्णसिंहजी, संभाजी, बाबाजी, मालोजी, शाहजी, छत्रपति शिवाजी महाराज।
बाद में कई और जातियों ने भी शिवाजी महाराज को उनकी जाति से जोड़ना शुरू कर दिया, परन्तु इस प्रकार की क्रमानुसार वंशावली अन्य जातियों में अब तक प्रकाश में आई हो, ऐसा नहीं लगता। मेवाड़ के प्रसिद्ध इतिहासकार कविराज श्यामलदास लिखते हैं कि “मरहटा कौम की बुनियाद डालने वाला शख्स शिवा मरहटा मेवाड़ के सिसोदिया वंश का था”
‘मरहटों की तवारिख’ में लिखा है कि “चित्तौड़ के खानदान से उदयपुर का राजघराना निकला और उदयपुर के राजघराने से मरहटा कौम की बुनियान डालने वाला पैदा हुआ”। इसी प्रकार अंग्रेज इतिहासकार एचिसन लिखता है कि “मरहटा लोगों के ताकत की बुनियाद डालने वाला सेवाजी (शिवाजी) उदयपुर के राजघराने से निकला था”
उस समय मथुरा के एक पंडित गागा भट्ट बड़े पहुंचे हुए विद्वान थे। शिवाजी महाराज ने बालाजी आवजी को गागा भट्ट के पास भेजा और ये प्रमाण दिए कि वे मेवाड़ के प्रसिद्ध व सबसे प्राचीन सिसोदिया वंश के वंशज हैं, जो की भगवान श्री रामचन्द्र के वंशज कहलाते हैं।
गागा भट्ट ने इस प्रमाण को स्वीकार किया और शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक करने के लिए मथुरा से प्रस्थान किया। शिवाजी महाराज खुद सतारा पहुंचे और वहां से गागा भट्ट को आदर सहित ले आए। राज्याभिषेक की तैयारियां शुरु की गईं। पूरे हिन्दुस्तान के कोने कोने से कईं ब्राह्मणों को आमंत्रण दिया गया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
बहुत ही अच्छी जानकारी है कभी इतिहास मे पढ़ने को नहीं मिली । पर आपके द्वारा सच्चाई जानकर हर्ष हुआ ।धन्यवाद ।