वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (भाग – 94)

महाराणा प्रताप द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य :- महाराणा प्रताप का सारा जीवन ही संघर्ष में बीता, फिर भी महाराणा ने कई निर्माण कार्य भी करवाए। महाराणा प्रताप द्वारा किए गए निर्माण कार्यों में वैभव व आमोद-प्रमोद बिल्कुल भी नहीं है। सादगी पर विशेष बल दिया गया है और वे निर्माण कार्य करवाए गए जो उस समय के अनुसार आवश्यक थे।

महाराणा प्रताप ने विशेष रूप से बावड़ियां और बगीचे बनवाए। उनके द्वारा उस समय बनवाए गए बगीचों व बावड़ियों की संख्या निर्धारित कर पाना मुश्किल है, क्योंकि उनमें से बहुत से अब समय के साथ-साथ विलुप्त हो चुके हैं।

महाराणा प्रताप ने गोडवाड़ सूंधा में बावड़ी व बगीचा बनवाया था। बावड़ियां जलस्रोत के रूप में उस समयकाल में अतिउपयोगी होती थीं, जो प्रजा के लिए भी काम में आती। महाराणा प्रताप जहां कहीं भी कुछ दिन ठहरते, वहां एक बावड़ी का निर्माण अवश्य करवाते थे।

गोगुन्दा में महाराणा प्रताप ने कई सुंदर बगीचे बनवाए व किले का जीर्णोद्धार करवाया। इन बगीचों के कारण उन दिनों गोगुन्दा की प्रसिद्धि काफी अधिक थी। मुगल लेखकों ने भी इन बगीचों की सुंदरता की तारीफ की है। महाराणा प्रताप ने गोगुंदा में अपने पिता महाराणा उदयसिंह की स्मृति में एक छतरी भी बनवाई।

गोगुंदा में स्थित महाराणा उदयसिंह की छतरी

महाराणा प्रताप ने झाला मानसिंह की याद में बदराणा में भगवान हरिहर का मंदिर बनवाया। महाराणा प्रताप ने चावण्ड में चामुंडा माता के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। महाराणा ने चावण्ड में 16 पनाहगाह बनवाए, जिनमें महल, भवन, चतारों की ओवरी, मन्दिर आदि शामिल हैं।

महाराणा प्रताप ने चावंड में एक कुंड व वाटिका का निर्माण भी करवाया। वाटिका समय के साथ-साथ नष्ट हो गई। इतिहासकारों का मानना है कि ये वाटिका महाराणा प्रताप के महलों के दक्षिण या ईशान कोण में रही होगी।

गोगुन्दा में मायरा स्थित गुफा के पास शस्त्रागार व रहने लायक स्थान बनवाया। महाराणा ने हल्दीघाटी में स्वामीभक्त चेतक की समाधि बनवाई व रक्त तलाई में झाला मानसिंह जी की छतरी बनवाई। महाराणा ने झाड़ौल के कमलनाथ में आवरगढ़ की पहाड़ी पर किला, दरबार की बैठक का स्थान, मंदिर व कई छोटे महल बनवाए, सैनिकों के रहने हेतु मकान इत्यादि भी बनवाए।

महाराणा प्रताप ने आवरगढ़ में जलस्रोत व एक वाटिका का निर्माण भी करवाया। महाराणा प्रताप ने कोल्यारी गांव में एक उपचार केंद्र बनवाया, जहां घायल सैनिकों का इलाज किया जाता था। हल्दीघाटी युद्ध के बाद घायल सैनिकों, घोड़ों, हाथियों आदि का उपचार यहीं किया गया था।

मुगल सेनापति शाहबाज़ खां ने 1577 से 1579 ई. के मध्य में जावर माता के मंदिर को नष्ट कर दिया था, मूर्तियां खंडित कर दी थीं। महाराणा प्रताप के शासनकाल में प्रधानमंत्री भामाशाह कावड़िया ने 1593 ई. में जावर माता के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। भामाशाह जी के भाई ताराचंद कावड़िया ने मेवाड़-मारवाड़ की सीमा पर स्थित सादड़ी में बारादरी और बावड़ी का निर्माण करवाया।

जावर माता मंदिर

उदयपुर से दक्षिण में 65 किलोमीटर की दूरी पर ऋषभदेव में उदय की पहाड़ियां हैं, जहां महाराणा प्रताप ने कुछ समय बिताने के लिए अपना निवास स्थान बनाया। यहीं पास में उन्होंने एक बावड़ी का निर्माण भी करवाया। इस बावड़ी का आकार चूहे के बिल के समान है। यहां जंगली जानवर भी आसानी से पानी पी सकते हैं। यहीं पहाड़ी के ऊंचे भाग पर महाराणा प्रताप ने सैन्य क्षेत्र भी बनाया।

महाराणा प्रताप ने उदय की पहाड़ियों में सैनिकों के पानी पीने के लिए 50 मीटर वर्गाकार में लगभग 20 फीट गहरा हौद खुदवाया, यहीं पास में हाथी भी बांधे जाते थे। इसी स्थान के पास महाराणा प्रताप ने एक अन्य बावड़ी का भी निर्माण करवाया, जिसका प्रयोग पेयजल के साथ-साथ सिंचाई के लिए भी होता था।

महाराणा प्रताप ने चोर-बावड़ी नामक गाँव में एक बावड़ी बनवाई, जो दासियों को समर्पित की गई और इसका नाम ‘दासियों की बावड़ी’ रखा गया। बाद में यह बावड़ी वीरान हो गई और ये चोरों का अड्डा बन गई। फिर इसका नाम चोर बावड़ी पड़ गया। बाद में स्थानीय देवड़ा राजपूतों ने चोरों को मार भगाया, लेकिन इसका नाम चोर बावड़ी ही पड़ गया। इस गांव का नाम बदलने की कवायद भी जारी है।

महाराणा प्रताप ने रोहिड़ा, आहोर आदि गांवों में रहने लायक महल आदि बनवाए। पीपली, ढोलाण, टीकड़ आदि गांव, जो मुगलों द्वारा जला दिए गए, उन्हें फिर से बसाकर महाराणा प्रताप ने वहां जलस्रोत आदि बनवाए। जिन पहाड़ी किलों को मुगलों ने नुकसान पहुंचाया, उनकी भी आवश्यकतानुसार मरम्मत करवाई गई। इस प्रकार मुगलों द्वारा किए गए नुकसान की भरपाई भी की गई।

महाराणा प्रताप द्वारा उन दिनों करवाए गए निर्माण कार्यों का बहुत कम विवरण ही उपलब्ध है, फिर भी यह कहा जा सकता है कि इन निर्माण कार्यों में जनसाधारण की आवश्यकताओं पर विशेष बल दिया गया था। ये महाराणा प्रताप के जीवन का वो पहलू है, जिस तरफ बहुत कम इतिहासकारों का ध्यान गया है।

महाराणा प्रताप व उनकी जनता के बीच संबंधों के बारे में इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा लिखते हैं कि “जन जागरण तथा जन संगठन की क्षमता महाराणा प्रताप में खूब थी। सम्पूर्ण पहाड़ी भागों में घूम-घूमकर तथा कष्टसाध्य जीवन को बिताकर उन्होंने जनता के नैतिक स्तर को बनाए रखा। महाराणा प्रताप ने जनता के जीवन की समस्या को अपने जीवन की समस्या बनाया। वे कई दिन ग्रामीण जनता के बीच में विचरण करते रहते और जन आंदोलन के द्वारा मेवाड़ को सजग बनाए रखा। मुग़लों लिए ऐसे नए संगठन का मुकाबला करना बहुत कठिन था।”

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. जामा कोलर
    July 20, 2021 / 3:08 pm

    जय हो एकलिंगजी की
    जीवन में थका हार इंसान सिर्फ महाराणा प्रताप जी का सिमरन मात्र से जीवन में नयी उर्जा का संसार कर सकता है
    श्री राम डरे न त्रिलोक कि शक्तिशाली सेना से
    न डरे न डिगें श्री महाराणा प्रताप विश्व की शक्तीशाली सेना से
    एक शुक हुई अपने राजपुताने के वीरो से न सहयोग करा महाराणा जी का न करा तो न सही
    पर लुटेरे हत्यारे अकबर के इसारे पर न नाचें होते तो तो राजपुताने के वीरो का इतिहास कुछ और होता🙏🙏

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